हमारे भीतर ही है प्रेरणा

हमारे रोजमर्रा के जीवन में चलने वाले अप्रत्यक्ष संग्राम को किसी हथियार से नहीं, बल्कि अपने भीतर छिपी शक्ति से ही जीता जा सकता है। स्वामी विवेकानंद के इस कथन के मुताबिक जब प्रेरणा अंदर से आएगी, तभी आप अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकेंगे...

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 29 May 2015 10:28 AM (IST) Updated:Fri, 29 May 2015 10:51 AM (IST)
हमारे भीतर ही है प्रेरणा

हमारे रोजमर्रा के जीवन में चलने वाले अप्रत्यक्ष संग्राम को किसी हथियार से नहीं, बल्कि अपने भीतर छिपी शक्ति से ही जीता जा सकता है। स्वामी विवेकानंद के इस कथन के मुताबिक जब प्रेरणा अंदर से आएगी, तभी आप अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ सकेंगे...

बच्चा रोज स्कूल के मैदान में फुटबॉल की प्रैक्टिस करता, लेकिन हर बार उसे टीम में नहीं लिया जाता। प्रैक्टिस के दौरान उसके पिता मैदान से दूर बैठते और उसके आने का इंतजार करते। जब टूर्नामेंट के लिए ट्रायल्स हुए,

तो वह न तो क्वार्टर फाइनल की टीम में चुना जा सका और न ही सेमी फाइनल्स के दल में। जब फाइनल के लिए टीम तय की जा रही थी, तो बच्चा कोच के पास पहुंचा और बोला, ‘सर, आपने मुझे टीम में खेलने का कभी मौका नहीं दिया, लेकिन आज मुझे खेलने दें।’ कोच ने कहा, ‘बेटा, मैं तुम्हें टीम में जगह नहीं दे सकता, क्योंकि तुमसे अच्छे प्लेयर्स हैं मेरे पास। दूसरे, यह फाइनल मैच है। मैं कोई जोखिम लेकर स्कूल की प्रतिष्ठा दांव पर नहीं लगा

सकता।’ तब बच्चे ने कोच से निवेदन किया कि, ‘सर, मैं आपका सम्मान कम नहीं होने दूंगा। कृपया आज मुझे खेलने दें।’ कोच ने इससे पहले बच्चे को कभी भी इस तरह अनुरोध करते हुए नहीं देखा था। उन्होंने कहा, ‘अच्छा, आज तुम मैदान पर खेलो, लेकिन एक बात याद रखना कि स्कूल की इज्जत दांव पर है और मैंने तुम्हारे लिए अपना फैसला बदला है।’

गलत साबित हुए कोच फाइनल मैच में बच्चा किसी मंझे हुए खिलाड़ी की तरह खेला। जब भी उसे बॉल मिलती, वह उसे गोल में तब्दील कर देता। देखते ही देखते वह मैच का स्टार बन गया। टीम को जबर्दस्त सफलता मिली।

जब मैच खत्म हुआ, तो कोच उसके पास गए और बोले, ‘बेटा, मैं गलत कैसे हो सकता हूं? मैंने पहले कभी तुम्हें ऐसे खेलते हुए नहीं देखा। ऐसा क्या हुआ कि आज तुम इतना शानदार खेले?’ बच्चे ने जवाब दिया, ‘सर, आज मेरे पिता मुझे देख रहे हैं।’ कोच ने पलटकर उस जगह पर देखा, जहां उसके पिता बैठा करते थे।

आज वहां कोई भी नहीं था। बच्चे ने कहा, ‘सर, मेरे पिता ब्लाइंड थे, उन्हें कुछ नहीं दिखता था। चार दिन पहले उनका निधन हो गया। आज वे पहली बार मुझे आसमान से देख रहे हैं। आज मुझे खुद को साबित

करना ही था।’ उस बच्चे ने अपने भीतर से मिली प्रेरणा की बदौलत वह कर दिखाया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। उसके भीतर की शक्ति ने आग पैदा कर दी थी। जीत मिलेगी भीतरी शक्ति से ‘मानव जीवन का संग्राम एक ऐसा युद्ध है, जिसे किसी हथियार से कभी नहीं जीता जा सकता। वह तो मनुष्य के भीतर छिपी शक्ति को जगाकर ही जीता जा सकता है।’ स्वामी विवेकानंद के इन शब्दों में आंतरिक प्रेरणा पर खासा जोर है। चर्चित

युवा उपन्यासकार चेतन भगत भी कहते हैं कि सफलता के लिए अपने भीतर आग पैदा करनी पड़ती है। जिंदगी में हर बार सफलता नहीं मिलती, लेकिन हार में इतनी ताकत नहीं कि आपको मैदान छोड़ने पर मजबूर कर

सके। यदि आपमें आंतरिक प्रेरणा है तो जीत आपकी है। जानी-मानी वैज्ञानिक और महिला व्यवसायी स्वाति पीरामल ने भी अनुभवों के आधार पर लिखा है कि प्रेरणा आपको अंदर से मिलती है। इसके लिए सपने देखें, क्योंकि सपने आपकी आंतरिक इच्छाओं पर आधारित होते हैं।

मत सोचें कि आप कमजोर हैं महान दार्शनिक कन्फ्यूशियस कहते हैं कि महान व्यक्ति जिन चीजों कों ढूंढ़ते हैं, वे उन्हें अपने अंदर ही प्राप्त हो जाती हैं। कमजोर ही दूसरों का मुंह ताका करते हैं। आचार्य महाप्रज्ञ ने भी कहा है कि आत्मप्रेरित इंसान कभी खाली नहीं बैठ सकता। वह खुद को और दूसरों को भी सुखी बनाता है। सफल एंटरप्रेन्योर और राइटर विक्टोरिया एडिनो का विचार है कि एक क्षण के लिए भी यह मत सोचो कि तुम कमजोर हो, हम सभी के भीतर आंतरिक शक्ति का भंडार छिपा है। विश्वकप 2011 में प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट

रहने वाले क्रिकेट खिलाड़ी युवराज ने कैंसर से जूझने के बाद भी टीम इंडिया में वापसी की। उन्होंने तब कहा था, ‘हर बार क्रिकेट के लिए मेरा जुनून मुझे वापसी को प्रेरित करता रहा। वापस आकर खेलने का जज्बा मेरे भीतर

से कभी गया ही नहीं। उसी ने मुझे इन चुनौतियों का सामना करने की ऊर्जा दी।’ पुराणों में जिस कल्प- वृक्ष की कल्पना की गई है, सच पूछें तो वह हमारे भीतर ही बसता है। हमारा संकल्प ही प्रेरणा का स्रोत बन जाता है।

सामने अनंत आकाश ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता एचएस हॉडिंस और सीआर नी अपने शोध में कहते

हैं कि जब आपको अंदर से काम करने की प्रेरणा मिलती है तो आपको संभावनाओं का अनंत आकाश नजर आता है। इस प्रेरणा के कारण ही आप ज्यादा से ज्यादा काम करने को उत्सुक होते हैं। यह अंदरूनी प्रेरणा कामयाबी के

करीब ले जाती है। इसलिए भीतर छिपी प्रेरणा को पहचानना जरूरी है। जब एक विद्यार्थी ने अपने शिक्षक से पूछा कि आपके भीतर इतनी प्रेरणा कैसे है? आप वर्षों से लोगों को कैसे प्रेरित करते आ रहे हैं, मैं तो थोड़े से ही हताश हो रहा हूं।

तो शिक्षक ने मुस्कुराते हुए विद्यार्थी को एक जलती हुई मोमबत्ती दिखाई और पूछा, ‘क्या तुम उस मोमबत्ती को बुझा सकते हो...? विद्यार्थी ने फूंक मारकर मोमबत्ती बुझा दी। ‘बढ़िया, अब इस आग को भी उसी तरह बुझा दो’, शिक्षक ने कहा। विद्यार्थी ने कहा, ‘मैं आग को नहीं बुझा सकता।’ तो फिर शिक्षक ने कहा, ‘जब तुम्हारी आंतरिक प्रेरणा उस मोमबत्ती की लौ जितनी छोटी होती है, तो उसे बुझाना बहुत आसान होता है, लेकिन जब वह इस धधकती हुई आग की तरह होती है तो उसे कोई नहीं बुझा सकता।’

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