आज है आरोग्य का पर्व शरद पूर्णिमा, इस रात चंद्रमा की रश्मियों से अमृत बरसता है

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (15 अक्टूबर) को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 14 Oct 2016 02:22 PM (IST) Updated:Sat, 15 Oct 2016 01:02 PM (IST)
आज है आरोग्य का पर्व शरद पूर्णिमा,  इस रात चंद्रमा की रश्मियों से अमृत बरसता है

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रश्मियों से अमृत बरसता है। इसी रात्रि को भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग महारास किया था.. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा (15 अक्टूबर) को शरद पूर्णिमा या रास पूर्णिमा कहा जाता है। शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है।

इस रात्रि में चंद्रमा का ओज सबसे तेजवान और ऊर्जावान होता है। नारद पुराण के अनुसार, शरद पूर्णिमा की धवल चांदनी में मां लक्ष्मी अपने वाहन उल्लू पर सवार होकर अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए रात्रि में पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। वह यह देखती हैं कि अपने कत्र्तव्यों को लेकर कौन जाग्रत है। इसीलिए इस रात मां लक्ष्मी की उपासना की जाती है। मान्यता यह भी है कि भगवान श्रीकृष्ण ने राधा और गोपियों के संग दिव्य रास शरद पूर्णिमा को रचाया था।

रासलीला वास्तव में लीला पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण का दुनिया को दिया गया प्रेम का संदेश है। कुछ लोग रासलीला का अर्थ भोग-विलास समझते हैं जो कि सर्वथा अनुचित है। रासलीला का अर्थ पूर्णत: आध्यात्म से जुड़ा है। ऐसा कहते हैं कि जब श्रीकृष्ण ने व्रज की गोपियों के साथ रासलीला की तो जितनी भी गोपियां थीं उन्हें यही प्रतीत हो रहा था कि श्रीकृष्ण उसी के साथ रास रचा रहे हैं। ऐसी अनुभूति होने पर उन सभी को परमानंद की प्राप्ति हुई। जीवन में नृत्य के द्वारा मिलने वाला आध्यात्मिक सुख उस महारास का ही एक रूप है।

भगवान कृष्ण ने यही संदेश बचपन में ही गोपियों और गोपियों के माध्यम से जगत को दिया। रासलीला में हर गोपी को कृष्ण के उनके साथ ही नृत्य करने का एहसास ईश्वर के सर्वव्यापक होने का भी प्रमाण है। व्रज में शरद पूर्णिमा के अवसर पर आज भी रासलीला का मंचन कर श्रीकृष्ण की लीलाओं का आनन्द लिया जाता है। इसे रातोत्सव या कौमुदी महोत्सव भी कहते हैं।

मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों से अमृत बरसता है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है, ‘पुष्णामि चौषधि सर्वा:सोमो भूत्वा रसात्यमक:।’ अर्थात मैं रसस्वरूप अर्थात अमृतमय चंद्रमा होकर संपूर्ण औषधियों को अर्थात वनस्पतियों को पुष्ट करता हूं।

शरद पूर्णिमा की शीतल चांदनी में खीर रखने का विधान है। खीर में मिश्रित दूध, चीनी और चावल धवल होने के कारक भी चंद्रमा ही हैं। अत: इनमें चंद्रमा का प्रभाव सर्वाधिक रहता है। इस दिन लोग खीर को चांदनी में रख देते हैं और सुबह उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं। क्योंकि मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों के कारण यह खीर अमृततुल्य हो जाती है, जिसे खाने से व्यक्ति वर्ष भर निरोगी रहता है। इसलिए इसे आरोग्य का पर्व भी कहते हैं।

जिनके घर ये वस्तुएं होती उनके घर में धन और सुख की कमी नहीं होती है

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