आठवीं शक्ति स्वरूपा महागौरी आदि शक्ति हैं

देवी दुर्गा के नौ रूपों में महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। महागौरी आदि शक्ति हैं इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाश-मान होता है इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी है। महागौरी की अराधना से भक्तों को सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 01 Oct 2014 01:46 PM (IST) Updated:Wed, 01 Oct 2014 01:46 PM (IST)
आठवीं शक्ति स्वरूपा महागौरी आदि शक्ति हैं

नई दिल्ली, [प्रीति झा]। देवी दुर्गा के नौ रूपों में महागौरी आठवीं शक्ति स्वरूपा हैं। दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। महागौरी आदि शक्ति हैं इनके तेज से संपूर्ण विश्व प्रकाश-मान होता है इनकी शक्ति अमोघ फलदायिनी है। महागौरी की अराधना से भक्तों को सभी कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी का भक्त जीवन में पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी बनता है।

नवरात्र के दसों दिन कुवारी कन्या भोजन कराने का विधान है परंतु अष्टमी के दिन का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। देवी गौरी की पूजा का विधान भी पूर्ववत है अर्थात जिस प्रकार सप्तमी तिथि तक आपने मां की पूजा की है उसी प्रकार अष्टमी के दिन भी देवी की पंचोपचार सहित पूजा करें।

महाष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद व्यक्ति को देवी भगवती की पूरे विधि विधान से पूजा करनी चाहिए।

हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा नवरात्र में कन्या-पूजन का विधान इसलिए बनाया गया, ताकि हम कन्याओं-महिलाओं के प्रति आदर का भाव रखें। उन्हें सम्मान और सुरक्षा देने से ही हमारा और हमारे समाज का जागरण हो सकेगा।

नवरात्र को आद्याशक्ति की आराधना का सर्वश्रेष्ठ पर्वकाल माना गया है। शक्तिसंगम नामक ग्रंथ में माता पार्वती के पूछने पर भगवान शंकर नवरात्र का परिचय इस प्रकार देते हैं-

नवशक्तिभि- संयुक्तम् नवरात्रं तदुच्यते। एकैव देव-देवेशि नवधा परितिष्ठता॥ अर्थात नवरात्र नौ शक्तियों से संयुक्त है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रतिदिन एक शक्ति की पूजा का विधान है। सृष्टि की संचालिका कही जाने वाली आदिशक्ति की नौ कलाएं (विभूतियां) नवदुर्गा कहलाती हैं। मार्कण्डेय पुराण में नवदुर्गा का शैलपुत्री, ब्रहमचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री के रूप में उल्लेख मिलता है।

देवीभागवत में नवकुमारियों को नवदुर्गा का साक्षात् प्रतिनिधि बताया गया-

उसके अनुसार, नवदुर्गा-स्वरूपा नवकुमारियां भगवती के नवरूपों की प्रत्यक्ष जीवंत मूर्तियां हैं। इसके लिए दो से दस वर्ष की अवस्था वाली कन्याओं का चयन किया जाता है। दो वर्ष की कन्या कुमारिका कही जाती है, जिसके पूजन से धन-आयु-बल की वृद्धि होती है। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति की पूजा से घर में सुख-समृद्धि का आगमन होता है। चार वर्ष की कन्या कल्याणी के पूजन से सुख मिलता है। पांच वर्ष की कन्या रोहिणी की पूजा से स्वास्थ्य-लाभ होता है। छ: वर्ष की कन्या कालिका के पूजन से शत्रुओं का शमन होता है। सात वर्ष की कन्या चण्डिका की पूजा से संपन्नता एवं ऐश्वर्य मिलता है। आठ वर्ष की कन्या शांभवी के पूजन से दुख-दरिद्रता का नाश होता है। नौ वर्ष की कन्या दुर्गा की पूजा से कठिन कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं। दस वर्ष की कन्या सुभद्रा के पूजन से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

देवीभागवत में इन नौ कन्याओं को नवदुर्गा की साक्षात् प्रतिमूर्ति माना गया है। तभी तो भक्त प्राय: नवरात्र के नौ दिन तक कन्याओं का पूजन करते हैं, परंतु जो व्यक्ति नवरात्र में नित्य कन्या-पूजन नहीं कर पाते, वे अष्टमी अथवा नवमी में कुमारिका-पूजन करते हैं। कन्या-पूजा के बिना भगवती महाशक्ति कभी प्रसन्न नहीं होती। देवीभक्त को कन्याओं के प्रति सदा आदर का भाव रखना चाहिए तथा स्त्री-वर्ग पर कभी कोई अत्याचार नहीं करना चाहिए।

नवरात्र में शक्ति के उपासक को यह संकल्प लेना चाहिए कि वह आजीवन बच्चियों और महिलाओं को सम्मान देगा और उनकी सुरक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहेगा, तभी सही अर्थो में नवरात्र की शक्ति-पूजा संपन्न होगी। तभी हमारा भी जागरण हो सकेगा और समाज में भी जागरण होगा। कन्या-पूजन के माध्यम से ऋषि-मुनियों ने हमें स्त्री-वर्ग के सम्मान की ही शिक्षा दी है।

संवत्सर (वर्ष) में दो नवरात्र होते हैं- वासंतिक (चैत्र शुक्लपक्ष में) शारदीय (आश्‌िर्र्वन शुक्लपक्ष में), किंतु शाक्तों की साधना में शारदीय नवरात्र को विशेष महत्व दिया गया है। दुर्गा सप्तशती में देवी स्वयं कहती हैं-

सर्वबाधा विनिर्मुक्तो धन-धान्य-सुतान्वित:।

मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥

अर्थात जो मेरे माहात्म्य (दुर्गासप्तशती) को भक्ति-भाव के साथ सुनेगा, वह मनुष्य मेरी अनुकंपा से सब बाधाओं से मुक्त होकर धन, धान्य एवं पुत्रादि से संपन्न होगा-इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

नवरात्र शक्ति-जागरण का पर्वकाल है। सृष्टि के कण-कण में शक्ति की सत्ता विद्यमान है। हमारे भीतर भी शक्ति है, जो हमारा संचालन कर रही है। वही शक्ति ही तो मां जगदंबा हैं।

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