नया करने को रहें तत्पर

खतरे उठाने वाले बहुत से काम हम सभी अपने बचपन में करते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, झाड़ियों में घुसना, अंगारों से खेलना, खंडहरों में घुस जाना। कभी कौतूहलवश और कभी जोश में आकर हम खुद को खतरे में डालकर नया सीखते थे। बड़े होने पर हमने यह सब करना बंद

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 18 Sep 2015 11:14 AM (IST) Updated:Fri, 18 Sep 2015 11:23 AM (IST)
नया करने को रहें तत्पर

खतरे उठाने वाले बहुत से काम हम सभी अपने बचपन में करते हैं। पेड़ों पर चढ़ना, झाड़ियों में घुसना, अंगारों से खेलना, खंडहरों में घुस जाना। कभी कौतूहलवश और कभी जोश में आकर हम खुद को खतरे में डालकर नया सीखते थे। बड़े होने पर हमने यह सब करना बंद कर दिया। इसकी सबसे बड़ी वजह यह थी कि हमने सिद्धांतत: बहुत सी बातें समझ ली थीं, उन्हें आजमा कर परखने की जरूरत खत्म हो गई।

दूसरे, हर चीज को करके देखने के लिए हमने जो दर्द सहे, उनके एवज में हम उनसे अपना बचाव करना सीख गए। इससे हम तो खुद को महफूज रखने में कामयाब रहे, पर बाद में भी खतरे उठाने वाले फायदे में रहे। जिन्होंने यथास्थितिवाद को उचित माना, उनकी दुनिया वहीं थम गई। मुश्किल तो यह है कि वे समझ ही नहीं पाते कि दूसरे उनसे आगे क्यों निकल गए। मैं उस व्यक्ति को दूसरों से आगे मानता हूं जो हर पल कुछ-नकुछ सीखता और आतंरिक विकास करता रहता है, न कि दूसरों से ज्यादा कमाई करता है।

ग्रीक दार्शनिक अनाक्सागोरस ने कहा था, च्हाथों की उपस्थिति के कारण ही मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वाधिक

बुद्धिमान है।ज् चीजों को बेहतर तरीके से उठाने और थामने की हमारी योग्यता हमें अपने परिवेश में सबसे आगे रखती है। अपने अंगूठे और अंगुलियों की मदद से हम दाना चुनने से लेकर हथौड़ा पीटने जैसे काम बखूबी अंजाम देते हैं और हमारा दिमाग इस तथ्य को जानता है कि हमें कौन-सा काम किस तरह करना है। अपने दिमाग को प्रशिक्षित करने के लिए हमें बचपन की तरह ही विविधतापूर्ण काम करके देखने चाहिए।

कुछ भी नया करते समय भीतर से भय का स्वर उठता है। इस भय का सामना करना किसी भी उम्र में सीखा जा

सकता है। खुद को यह बार-बार कहने की जरूरत है, च्इसे करके देखना चाहिए, यह इतना मुश्किल भी नहीं लगता कि मैं कर न सकूं। करके देखते हैं, ज्यादा से ज्यादा नाकामयाब ही तो रहेंगे!ज् हम मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वाधिक तेजी से सीखते हैं। अपनी गलतियों से सबक लेने में हमें महारत हासिल है। हमने अपनी भौतिक सीमाओं का अतिक्रमण करना सीख लिया है, केवल मानसिकता ही हमें अक्सर पीछे धकेल देती है। प्रयोगधर्मिता मनुष्यों का बहुत महत्वपूर्ण गुण है। यही सफल व्यक्ति को असफल से पृथक करता है। दफ्तर में पिछले दस सालों से काम करने के नाते मैं जानता हूं कि जो व्यक्ति प्रयोगधर्मी होता है, वह कार्यकुशल भी होता है और अपने कार्य का बेहतर निष्पादन करता है। सारी बात का लब्बोलुआब यह है कि नए प्रयोग और नई चीजें करके देखते रहना हमें आगे ले जाता है और यथास्थितिवादी बने रहना जड़ बना देता है। इसलिए लौटा लाइए अपने भीतर अपना बचपन, जब आप जिज्ञासा एवं ऊर्जा से भरपूर थे और कुछ भी नया देखने-करने के लिए तत्पर रहते थे।

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