श्री अंगद देव जी के प्रकाश पर्व : सबसे महान निष्काम कर्म

सिखों के दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी निष्काम कर्म के अनन्य साधक थे, वहीं नवें गुरु श्री तेग बहादुर जी ने त्याग और समरसता का पाठ लोगों को पढ़ाया। इनके प्रकाश-पर्व (1

By Edited By: Publish:Fri, 18 Apr 2014 11:46 AM (IST) Updated:Fri, 18 Apr 2014 11:50 AM (IST)
श्री अंगद देव जी के प्रकाश पर्व : सबसे महान निष्काम कर्म

सिखों के दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी निष्काम कर्म के अनन्य साधक थे, वहीं नवें गुरु श्री तेग बहादुर जी ने त्याग और समरसता का पाठ लोगों को पढ़ाया। इनके प्रकाश-पर्व (18 अप्रैल) पर जानें उनका माहात्म्य..

सिखों के दूसरे गुरु श्री अंगद देव जी का प्रकाश (जन्म) पिता फेरूमल और माता सभराई के घर जिला फिरोजपुर के एक गांव मत्ते नांगे की सराय में 18 अप्रैल, 1504 को हुआ था। उन्हें बचपन में लहिणा कहकर पुकारा जाता था। भाई लहिणा 1532 में पहली बार गुरुनानक देव जी से मिले। प्रभावित होकर वे गुरु चरणों में समर्पित हो गए। उन्होंने पूरे सात वर्ष प्रथम गुरु की खूब सेवा की।

गुरु नानक देव की जन्म साखियों में भाई लहिणा की सेवा के अनेक प्रसंग भरे हुए है। घास का गट्ठर उठाना, गंदे नाले में से कटोरी निकाल कर लाना, आधी रात को नदी से वस्त्र धोकर लाना आदि ऐसे अनेक प्रसंग भाई लहिणा की अप्रतिम सेवा-भावना के द्योतक हैं। इनमें से एक प्रसंग ऐसा है, जो निष्काम कर्म के वास्तविक स्वरूप को साकार करता है।

एक बार की बात है। सर्दियों का मौसम था। एक रात तेज गरज-चमक के साथ बारिश हुई। गुरु नानक देव जी के कक्ष की दीवार ढह गई। गुरु जी ने पुत्रों और अन्य सिखों को उठाकर कहा कि अभी दीवार बनाओ। सभी ने कहा, अभी आधी रात का वक्त है, सुबह दीवार बनवा देंगे। परंतु गुरु जी ने कहा, नहीं। मुझे अभी दीवार बना कर दो। सभी चुपचाप पड़े रहे। लेकिन भाई लहिणा उसी समय दीवार बनाने मे जुट गए। जब दीवार बनकर तैयार हो गई तो गुरु जी ने कहा दीवार ठीक नहीं बनी, इसे गिरा दो। गुरु जी ने सुबह तक चार बार दीवार बनाई और गिरवाई। भाई लहिणा चुपचाप काम करते रहे।

आखिर माता सुलक्खनी से न रहा गया। वे बोलीं, तू कब तक दीवार बनाता-गिराता रहेगा? भाई लहिणा शांत भाव से माता से बोले, 'मेरा काम तो गुरु आज्ञा का पालन करना है, दीवार बनने या न बनने से मेरा कोई प्रयोजन नहीं।

निष्काम कर्म का ऐसा आदर्श और क्या हो सकता है। ज्योति जोत समाते समय गुरु नानक देव ने भाई लहिणा से कहा था, 'तू मेरे अंग जैसा प्यारा है, सो आज से तेरा नाम अंगद हुआ।' इस प्रकार भाई लहिणा गुरु अंगद देव कहलाए।

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