दिन में एक फल

एक स्थान ऐसा था, जहां की भूमि में बहुत कम फल उपजते थे। ईश्वर ने अपने दूत को वहां भेजकर कहलवाया कि प्रत्येक व्यक्ति दिन में केवल एक ही फल खाए। ईश्वर के दूत का आदेश सभी ने माना। लोगों ने दिन में केवल एक ही फल खाना प्रारंभ कर दिया। दिन में एक फल खाना वहां की प्रथा बन गई

By Edited By: Publish:Wed, 23 Apr 2014 12:17 PM (IST) Updated:Wed, 23 Apr 2014 12:22 PM (IST)
दिन में एक फल

एक स्थान ऐसा था, जहां की भूमि में बहुत कम फल उपजते थे। ईश्वर ने अपने दूत को वहां भेजकर कहलवाया कि प्रत्येक व्यक्ति दिन में केवल एक ही फल खाए।

ईश्वर के दूत का आदेश सभी ने माना। लोगों ने दिन में केवल एक ही फल खाना प्रारंभ कर दिया। दिन में एक फल खाना वहां की प्रथा बन गई। इससे जो फल खाने से बच जाते, उनके बीजों से और भी कई वृक्ष पनपे। जल्द ही वहां की भूमि उर्वर हो गई। लेकिन दिन में एक ही फल खाने की प्रथा पीढ़ी दर पीढ़ी कायम रही। दूसरी जगहों से वहां आने वाले लोगों को भी उन्होंने फलों की अधिकता का लाभ नहीं उठाने दिया। इसलिए फल धरती पर गिरकर सड़ने लगे।

फलों का तिरस्कार देखकर ईश्वर को अच्छा नहीं लगा। उसने पुन: दूत को धरती पर यह कहने भेजा कि वे जितने चाहें उतने फल खा सकते हैं। वे अपने फल दूसरे लोगों में भी बांट सकते हैं। लेकिन इस बार नगरवासियों ने ईश्वर के दूत की बात नहीं मानी। क्योंकि ईश्वर का पुराना नियम धार्मिक परंपरा बन चुका था।

कुछ समय बाद नगर के प्रगतिशील युवकों ने इस बेतुकी परंपरा को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन बड़े-बुजुर्ग उस पुराने धार्मिक नियम से टस-से-मस होने को तैयार नहीं थे। वे यह देख ही नहीं पा रहे थे कि दुनिया कितनी बदल गई थी और परिवर्तन सबके लिए अनिवार्य हो गया है।

कथा-मर्म : हमें समय के साथ ही चलना चाहिए। बदलते वक्त के साथ जो नहीं बदला, उसकी तरक्की रुक जाती है..।

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