आज से प्रारंभ हो गए 2019 अष्टाह्निका विधान, जैन धर्म में है विशेष महत्व

बुधवार 13 मार्च से आठ दिन चलने वाले अष्टाह्निका विधान प्रारंभ हो जायेंगे। ये विधान मुख्य रूप से जैन धर्म के मानने वाले मनाते हैं।

By Molly SethEdited By: Publish:Wed, 13 Mar 2019 08:14 AM (IST) Updated:Wed, 13 Mar 2019 08:14 AM (IST)
आज से प्रारंभ हो गए 2019 अष्टाह्निका विधान, जैन धर्म में है विशेष महत्व
आज से प्रारंभ हो गए 2019 अष्टाह्निका विधान, जैन धर्म में है विशेष महत्व

साल में तीन बार, आठ दिन का पर्व

आठ दिन मनाया जाने वाला अष्टाह्निक पर्व जैन धर्म में विशेष स्थान रखता है। आठ दिन का यह उत्सव, साल में तीन बार मनाया जाता है। इस अवधि में जैन मत को मानने वाले रोज मंदिरों में विशेष पूजा, सिद्धचक्र मंडल विधान, नन्दीश्वर विधान आैर मंडल पूजा सहित कर्इ प्रकार के अनुष्ठान करते हैं। अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार 13 मार्च से 20 मार्च 2019 तक चलेगा। भगवान महावीर स्वामी को समर्पित उत्सव जैन धर्म के सबसे पुराने पर्वों में से एक है। ये साल में तीन बार कार्तिक, फाल्गुन आैर आषाढ़ के महीनों में मनाया जाता है।  13 मार्च से शुरू हो रहा ये फाल्गुन मास का अष्टाह्निका उत्सव है। 

क्यो मनाते हैं अष्टाह्निका पर्व  

एेसा कहा जाता है कि इस पर्व की शुरुआत मैना सुन्दरी द्वारा अपने पति श्रीपाल के कुष्ठ रोग निवारण के लिए किए गए प्रयासों से हुर्इ थी। पति को निरोग करने के लिए उन्होंने आठ दिनों तक सिद्धचक्र विधान मंडल आैर तीर्थंकरो के अभिषेक जल के छीटे देने तक साधना की थी। इसका जैन ग्रथों में भी उल्लेख मिलता है। तभी से आठ दिनों में जैन धर्म का पालन करने वाले, ध्यान आैर आत्मा की शुद्धि के लिए कठिन तप व व्रत आदि करते हैं। इस समय हर प्रकार की बुरी आदतों आैर बुरे विचारों से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया जाता है। ऐसा भी माना गया है इस दौरान नियम धर्म का पालन करने से जीवन की बड़ी से बड़ी आपदा भी चुटकियों में समाप्त हो जाती है। पद्मपुराण में भी इस पर्व वर्णन करते हुए कहा गया है कि सिद्ध चक्र का अनुसरण करने से कुष्ठ रोगियों को भी रोग से मुक्ति मिल गयी थी।

अष्टाह्निक पर्व का महत्व

वर्ष में तीन बार आने वाले अष्टाह्निक पर्व के बारे में जैन मतावलंबियों की मान्यता है कि इस दौरान स्वर्ग से देवता आकर नंदीश्वर द्वीप में निरंतर आठ दिन तक धर्म कार्य करते हैं। कार्तिक, फाल्गुन, आैर आषाढ़ इन तीन महीनों के शुक्ल पक्ष में मनाये जाने इस पर्व पर जो भक्त नंदीश्वर द्वीप तक नहीं पहुंच सकते वे अपने निकट के मंदिरों में पूजा आदि कर लेते हैं। ये विधान हिंदी तिथि के अनुसार किया जाता है यानि, यदि तिथियां घट बढ़ जाती है तो सप्तमी अथवा नवमी से पर्व मनाया जाता है। जैसे तिथि घट जाये तो सप्तमी से और बढ़ जाए तो नवमी से व्रत रखे जाते है। कहते हैं कि छह महीने की पूजा से मिलने वाले लाभ से कर्इ गुना अधिक फल इन आठ दिनों की पूजा भक्ति से मिल जाता है। 

अष्टाह्निका पर्व के आठ चरण

इस दौरान आठ दिन तक व्रत करके कुछ विशेष मंत्रों का जाप किया जाता है। जैसे 1- अष्टमी उपवास में "ॐ ह्रीं नंदीश्वर संज्ञाय नम:" का जाप, 2- नवमी एकासन में "ॐ ह्रीं अष्टमहविभूतिसंज्ञाय नम:" का जाप, 3- दशमी में जल आैर पके चावल का आहार के साथ, ॐ ह्रीं त्रिलोकसार संज्ञायनम:" का जाप, 4-एकादशी में अवमौर्द्य आैर एक समय भूख से कम भोजन के साथ "ॐ ह्रीं चतुर्मुखसंज्ञाय नम:" का जाप, 5-'द्वादशी में बारह सिद्धि(एकासन) के साथ "ॐ ह्रीं पंचमहालक्षण संज्ञाय नम:" का जाप, 6- त्रयोदशी को पके चावल आैर इमली के साथ "ॐ हरिम स्वर्गसोपानसंज्ञाय नम: का जाप", 7-चतुर्दशी को जल आैर चावल के साथ "ॐ ह्रीं सिद्ध चक्रायनम:" का जाप आैर 8-पूर्णमासी  के उपवास में "ॐ ह्रीं इन्द्रध्वज संज्ञाय नम:" का जाप किया जाता है।

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