विश्वनाथ मंदिर की देहरी पर अधर में लोकतंत्र

लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्षधर माने जाने वाले काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ दरबार में लोकतंत्र अधर में पड़ गया है। विधायी संस्था न्यास परिषद अध्यक्ष की कुर्सी प्रमुख सचिव धर्मार्थ के पास तो सदस्यों की कुर्सी एक साल से खाली है। ऐसे में तीन दशक में ऐसा पहली बार हुआ है जब

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 20 May 2015 12:32 PM (IST) Updated:Wed, 20 May 2015 12:36 PM (IST)
विश्वनाथ मंदिर की देहरी पर अधर में लोकतंत्र

वाराणसी । लोकतांत्रिक व्यवस्था के पक्षधर माने जाने वाले काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ दरबार में लोकतंत्र अधर में पड़ गया है। विधायी संस्था न्यास परिषद अध्यक्ष की कुर्सी प्रमुख सचिव धर्मार्थ के पास तो सदस्यों की कुर्सी एक साल से खाली है। ऐसे में तीन दशक में ऐसा पहली बार हुआ है जब मंदिर की पूरी व्यवस्था ब्यूरोक्रेसी के हवाले है।

सुरक्षा कारणों से सरकार ने वर्ष 1983 में मंदिर का अधिग्रहण किया था। देखरेख के लिए न्यास परिषद और कार्यपालक समिति का गठन किया गया। इसमें न्यास को लोकतांत्रिक इकाई यानी विधायिका का तो कार्यपालक समिति को कार्यपालिका का दर्जा दिया गया। उद्देश्य था न्यास मंदिर में परंपरा के अनुसार पूजन-अर्चन, धर्ममना जनता की सुख-सुविधाओं का उसकी अपेक्षा के अनुरुप विस्तार, मंदिर का सुंदरीकरण और विकास आदि के मुद्दों पर फैसले लेगी। इसमें शीर्ष पद अध्यक्ष के साथ ही छह सदस्य और नामित सदस्यों को स्थान दिया गया। इनकी सहमति से पारित फैसले क्रियान्वयन की ओर बढ़ते हैं और कार्यपालिका (सीईओ) के हाथों मूर्त रूप धरते हैं। पिछले दिनों न्यास अध्यक्ष को शासन स्तर पर हटा दिया गया। यह मामला कोर्ट में लंबित है, इससे फैसला होने तक पद प्रमुख सचिव के पास ही रहना है। वहीं छह न्यास सदस्य बारी-बारी से समयावधि पूरी होने पर एक साल पहले मुक्त होते गए। इनकी फाइल छह माह से तैनाती के लिए शासन में धूल फांक रही है। हालांकि शासन मंदिर के विस्तारीकरण और सुंदरीकरण के लिए प्रयासरत है। पद रिक्त होने से इससे जुड़े फैसले लेने में भले कोई बाधा न आए लेकिन लोकतंत्र की छाया तो नहीं ही दिखेगी जो न्यास की मूलभावना के तहत सीधे श्रद्धालुहित से जुड़ी होती है।

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