कोई भाी अच्‍छे कर्म करते समय यदि ललाट पर तिलक नहीं लगा हो तो वे सब निष्फल होते हैं

मनुष्य मात्र के समस्त शुभ कर्म दान, सत्य, वचन, संयम, जप, होम, तीर्थ, कर्म, देव कर्म, करते समय यदि ललाट पर तिलक नहीं लगा हो तो वे सब निष्फल होते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 08 Apr 2017 12:43 PM (IST) Updated:Sat, 08 Apr 2017 05:29 PM (IST)
कोई भाी अच्‍छे कर्म करते समय यदि ललाट पर तिलक नहीं लगा हो तो वे सब निष्फल होते हैं
कोई भाी अच्‍छे कर्म करते समय यदि ललाट पर तिलक नहीं लगा हो तो वे सब निष्फल होते हैं

सौभाग्यवान स्त्री के सिर की बिंदिया और साधु की भक्ति उसका तिलक होता है। तिलक के  बगैर साधु की पहचान मुमकिन नहीं। यह जब उसके माथे पर सजता है तो तेजस्विता कई गुना बढ़ जाती है।

'सत्यं, शौचं, होमस्तीर्थ, देवादिपूजनम। तस्य व्यर्थमिदं सर्वं यस्तिपुण्ड्रे न धारयेत।।

'स्नानं, दान, तपो होमो देवतांपित्रकर्म च।तत्सर्वं निष्फलं याक्ति ललाटे तिलकं बिना।।

'ललाटे तिलकं कृत्वा संध्याकर्म समाचरेत।अकृत्वा भालतिलकं तस्य कर्म निरर्थकम।।

अर्थात् : मनुष्य मात्र के समस्त शुभ कर्म दान, सत्य, वचन, संयम, जप, होम, तीर्थ, कर्म, देव कर्म, पितृ कर्म, संध्यादि संस्कार कर्म, विवाहादि कर्म करते समय यदि ललाट पर तिलक नहीं लगा हो तो वे सब निष्फल होते हैं।

कृष्ण का तिलक से गहरा है नाता...

''कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्ष:स्थले कौस्तुभं।नासाग्रे वरमौक्तिकं करतले वेणु: करे कंकणंी

अर्थात् : कृष्ण के मस्तक पर कस्तूरी तिलक, वक्ष पर देदीप्यमान कौस्तुभ मणि नाक में सुंदर मोती, हाथ में बांसुरी और कलाई में कंगन धारण करने वाले कृष्ण आप मनमोहन हैं।

होता है आज्ञा चक्र जागृत

मस्तक के मध्य भाग में जहां तिलक लगाया जाता है, वहां आज्ञाचक्र होता है। इस पर अनामिका (हाथ की तीसरी अंगुली) से तिलक लगाने से आज्ञाचक्र जागृत होता है। इससे व्यक्ति की एकाग्रता बढ़ती व ऊर्जा का संचरण होता है। इसमें अन्य सामग्री मिलाकर त्वचा रोगों से बचाव के उपाय भी किए जाते हैं।

इनसे तिलक हैं शुभ

कुंकुम, चंदन, रक्त चंदन, केसर, त्रिगंध, अष्टगंध, गोपी चंदन, मृत्तिका, भस्म, गंगाजल, कस्तूरी व अन्य सुगंधित पदार्थ

तिलक हैं साधु की पहचान

शैव साधु : भस्म तिलक- शैव संप्रदाय के साधु भस्म के तिलक व त्रिपुंड लगाते हैं। कई संन्यासी पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं। भाव : पंच तत्वों से बने भौतिक शरीर को भस्म समझकर शरीर का मोह त्याग कर परमात्मा की साधना में लगाना।

शाक्त साधु : कुंकुम तिलक- शाक्त संप्रदाय में कुंकुम तिलक की बिंदी या लंबा तिलक लगाने का विधान है। कुंकुम का वर्ण रक्त (लाल) है, जो अग्नि के वर्ण जैसा है। भाव : शरीर को अग्नि (तप) में समर्पित कर सिर्फ उसकी शक्ति (जलने की शक्ति) से मोह आदि विकारों को जलाकर निर्मल मन या शक्ति से महाशक्ति में लीन होना।

वैष्णव साधु : गोपी चंदन- वैष्णव संप्रदाय के साधु मस्तक पर लंबा गोपी चंदन का तिलक लगाते हैं। भाव : माया (दुनियावी प्रपंच) को मिट्टी में मिलाकर भगवत् कृपा के लिए उपासना करना।

अनामिका से करें तिलक- तिलक हमेशा सीधे हाथ की अनामिका अंगुली से नीचे से ऊपर की ओर तिलक किया जाना चाहिए। अनामिका के तार सीधे हृदय से जुड़े होते हैं, इसलिए दिल स्वागत करने का भी यह संकेत है। मस्तक के अतिरिक्त दोनों कान के निचले हिस्से में, दोनों भुजाओं पर और कंठ व सीने के मध्य भाग में भी लगा सकते हैं।

पंचवटी में भगवान राम ने साधुओं को लगाया था तिलक

भगवान राम जब वन में गए थे तो उन्होंने युवराज का वेश त्याग कर साधु वेश अपनाकर सिर पर तिलक लगाया था। तभी उन्हें वन में चार साधु आते दिखे, जिनके सिर पर तिलक नहीं था। रामजी ने उनका अभिवादन कर तिलक लगाया। पहले आने वाले साधु को 'लालश्री (कुंकुम) तिलक लगाया। दूसरे को चंदन की 'शुकुलश्री लगाई और तीसरे को श्रीकृष्ण की 'काली बिंदी लगाई। यह काली बिंदी हवन की आग से लगाई जाती है।

नाभि व पीठ पर भी लगाते हैं तिलक

तिलक सिर्फ मस्तक पर ही नहीं लगाया जाता। साधु-महात्मा पूरे शरीर पर तिलक लगाते हैं। सिर पर तिलक रामजी का, बांह पर लगने वाला क्षत्रियों का, नाभि पर तिलक वैश्यों का तिलक कहलाता है। सिर के मध्य में तिलक को ब्रह्मांड तिलक कहते हैं। पीठ पर लगने वाला तिलक शनिचर का कहलाता है।

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