एक संत शिविर ऐसा भी है, जहां सारे शिष्य विदेशी हैं

सिंहस्थ में एक संत शिविर ऐसा भी है, जहां सारे शिष्य विदेशी हैं। उनमें से कोई अपने देश में डॉक्टर है तो कोई इंजीनियर, अब वे यहां शिविर में झाड़ू लगाते हैं, कचरा उठाते हैं और भोजन के समय पूरी व्यवस्था संभालते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 30 Apr 2016 11:57 AM (IST) Updated:Sat, 30 Apr 2016 12:31 PM (IST)
एक संत शिविर ऐसा भी है, जहां सारे शिष्य विदेशी हैं

उज्जैन। सिंहस्थ में एक संत शिविर ऐसा भी है, जहां सारे शिष्य विदेशी हैं। उनमें से कोई अपने देश में डॉक्टर है तो कोई इंजीनियर, मगर उन्हें सनातन धर्म की गहराई यहां खींच लाई है। अब वे यहां शिविर में झाड़ू लगाते हैं, कचरा उठाते हैं और भोजन के समय पूरी व्यवस्था संभालते हैं।

विदेशी शिष्यों का यह पुण्य कार्य मेला क्षेत्र में सदावल रोड स्थित महामंडलेश्वर महेश्वरानंद पुरी के शिविर में देखने को मिल सकता है। दुनिया की चकाचौंध को छोड़कर विदेशी लोग यहां अध्यात्म की गूढ़ गहराई को समझ रहे हैं। गुरु के प्रति सम्मान ऐसा कि जब महेश्वरानंद पुरी मंच पर होते हैं तो ये अनुयायी मंच के नीचे बैठ उन्हें ध्यान से सुनते हैं और गुरु के आदेशानुसार धर्मप्राण जनता की सेवा में जुट जाते हैं।

गुरुदेव से करते हैं अंग्रेजी में बातचीत

महेश्वरानंदजी के अलखपुरी सिद्धपीठ परंपरा शिविर में बड़ी संख्या में विदेशी लोग रहते हैं। अधिकतर हिंदी नहीं जानते। इस कारण गुरुदेव महेश्वरानंदजी स्वयं अंग्रेजी में बातचीत कर उन्हें शिविर के कामों के बारे में दिशा-निर्देश देते हैं। 71 वर्ष के महेश्वरानंदजी जब भी अनुयायियों के बीच आते हैं तो सभी बड़ी श्रद्धा से उनके पैर छूते और आशीर्वाद लेते हैं।

बने ज्ञानेश्वरपुरी

ऑस्ट्रेलिया के ज्ञानेश्वरपुरी ने एमएससी की डिग्री लेने के बाद अध्यात्म की राह ऐसी पकड़ी कि सूट-बूट छोड़ दिया। ये भारत आए और यहीं की नागरिकता ले ली। हिंदी सीखी और भगवा वस्त्र धारण कर लिए। भारत के अध्यात्म और शांतिपूर्ण माहौल से उन्हें ऐसा लगाव हो गया है कि अब वे अपना पुराना नाम तक बताना नहीं चाहते। वे पुरीजी के अखाड़े के तीन महामंडलेश्वर में से एक हैं। संस्कृत पढ़ लेते हैं।

कहते हैं कि संस्कृत ऐसी भाषा है, जिसे जितना पढ़ो उतना कम लगता है। संस्कृत आनंद की भाषा है। उन्हें हिंदी सीखने में करीब 3 साल लगे। वे कहते हैं जीवन में भौतिकता आवश्यकतानुसार ही होना चाहिए। भौतिक सुविधाओं के पीछे भागने का कोई अर्थ नहीं।

गुरु चरणों में लेट जाते हैं

शिविर में आए हिंदू भक्तों की तरह ये विदेशी मेहमान भी हाथ जोड़कर बड़ी विनम्रता से अभिवादन करते हैं और अपने गुरु के चरणों में लेटकर वंदना भी करते हैं।

इंजीनियर हैं क्रियाशक्ति

यहां सेवा कर रही क्रियाशक्ति सिविल इंजीनियर हैं। वे भोजनशाला में सब्जी काटने से लेकर सफाई में मदद करती हैं। स्लोवेनिया की सेवादेवी भोजन के समय पटले बिछाती हैं।

डेंटिस्ट हैं सावित्री

स्लोवाकिया की सावित्री (दीक्षा के बाद परिवर्तित नाम) डेंटिस्ट हैं मगर यहां वे ध्यान मग्न होकर माला जपती हैं। वे शिविर का छोटे से छोटा काम करने में संकोच नहीं करती।

ये भी बने महामंडलेश्वर

क्रोएशिया के विवेक पुरी, सिडनी (ऑस्ट्रेलिया) के जसराजपुरी भी महामंडलेश्वर महेश्वरानंदपुरी जी के शिष्य और अब महामंडलेश्वर हैं।

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