तभी तो उन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है

शिव संस्कृति के नियमों, विधि-विधानों तथा परंपराओं का तिरस्कार उनको अस्वीकार नहीं करते। वे विद्रोही नहीं, सरल शुद्ध हैं। शिव सभी को शरण देते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 01 Aug 2016 12:06 PM (IST) Updated:Tue, 02 Aug 2016 12:14 PM (IST)
तभी तो उन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है

शिव व्यक्ति में भेद नहीं करते हैं। उनकी नजरों में कोई अच्छा या बुरा नहीं होता है। वे जानते हैं कि बुरे लोग जन्म से ही बुरे नहीं होते हैं। थोड़ा प्रयास करने पर उनका व्यक्तित्व परिवर्तित हो सकता है। वे अच्छे इंसान बन सकते हैं। इसलिए वे प्रत्येक व्यक्ति को आशीर्वाद देते हैं।

शिव के बारे में एक कथा प्रचलित है कि एक बार एक बुरा आदमी समाज में भेद खुलने के डर से छिपता फिर रहा था। भागता हुआ वह एक पेड़ पर चढ़ गया और सारी रात वहीं बिताई। यह पेड़ बेल का था और इसके नीचे एक शिवलिंग रखा था। उसके जाने बिना कुछ बेल-पत्र शिवलिंग पर आ गिरे। शिव ने तुरंत उस व्यक्ति को रक्षा प्रदान की और उसे अच्छा व्यक्ति बन जाने का आशीर्वाद दिया।

दर्शन की दृष्टि

शिव का एक स्वरूप रुद्र का भी है यानी क्रुद्ध देवता, लेकिन वे सभी इंद्रियों के आकर्षण से मुक्त हैं। यहां तक कि वे प्रकृति से भी प्रभावित नहीं होते हैं। भौतिकी के अनुसार, कोई वस्तु श्वेत तब दिखाई देती है, जब प्रकाश के सभी

रंग उससे लौटकर वापस आ जाते हैं। इसी प्रकार शिव कोई भी भौतिक वस्तु स्वीकार नहीं करते हैं। उनके लिए हर वस्तु कपूर की तरह उड़नशील है। इसलिए उन्हें ‘कर्पूर गौरं’ भी कहते हैं। वे कपूर की भांति श्वेत हैं। भारतीय दर्शन में वस्तु को तभी स्वीकार किया जाता है, जब उसका दर्शन किया जा सके। देखा जा सके। लेकिन शिव की आंखें बंद हैं, यानी वे अपने चारों ओर विद्यमान चीजों के प्रति उदासीन हैं, यहां तक कि भय के प्रति भी। हम अपने चारों ओर के लोगों को या तो अपना महत्व दर्शाने के लिए देखते हैं या फिर भय से देखते हैं। ऐसी दृष्टि दर्शन नहीं है। बल्कि जो दूसरों को शुद्ध दृष्टि से देखे, वही दर्शन है। दर्शन समभाव से देखने की दृष्टि है। वास्तव में दर्शन के द्वारा हम जान पाते हैं कि दूसरा क्या सोच रहा है या उसकी मन:स्थिति क्या है। जब हम सही मायनों में दर्शन करते हैं, तब दूसरा हमारे प्रति प्रतिक्रिया करता है।

अर्थात दूसरा हमारे लिए दर्पण बन जाता है। हमारे स्वभाव-व्यवहार के बारे में वह व्यक्ति बताता है। शिव के लिए प्रकृति दर्पण है। वही उन्हें उनके गुणों के बारे में समय-समय पर बताती है। निर्विकार हैं भोलेनाथ शिव जीवनदान देते हैं। इसके बदले में वे कुछ अपेक्षा भी नहीं करते। वह यह अपेक्षा नहीं रखते कि सामने वाला व्यक्ति उनकी आज्ञा माने। देवतागण इसीलिए शिव को महादेव कहते हैं। सर्वोपरि देव, जो ईश्वर है अर्थात

प्रकृति के नियमों से मुक्त है। शिव सामाजिक बंधनों के प्रति निर्विकार हैं। मुक्त हैं। अबोध हैं। उनका मन शुद्ध है, यहां तक कि वे समाज की आवश्यकताओं से भी अछूते हैं। इसलिए ऋषि-मुनियों ने शिव को भोलेनाथ घोषित कर

दिया। एक ऐसे देवता, जो नितांत सरल साधु हैं। संस्कृति न अबोध होती है न अज्ञ। इसलिए प्रतीकात्मक रूप में प्रकृति-पुरुष के पवित्र युग्म (शिवलिंग) की पूजा की जाती है। कुछ मंदिरों में शिवलिंग के सामने कछुआ बैठा दिखाया जाता है। यह इस बात का प्रतीक है कि वे भी कछुए की तरह अपनी खोल में सिकुड़ जाना चाहते हैं। देवी (प्रकृति) को उनकी आंखें खुली रखने के लिए बहुत श्रम करना पड़ता है, ताकि वे मनुष्य के जीवन का अवलोकन करते रह सकें। वह उस पात्र में परिवर्तित हो जाती हैं, जो शिव के सिर पर टंगा है। पात्र के नीचे बने छेद से टपकती पानी की बूंदें यह निश्चित करती हैं कि वे समाधि में जाने की बजाय अपने भक्त पर निरंतर नजर बनाए रखें। फन काढ़े सर्प की भांति वे सजग और सचेत रहें और निरंतर अपने भक्तों को देखते रहें। पात्र से टपकता जल इस बात का भी सूचक है कि समय बीतता जा रहा है। जिस तरह धीरे-धीरे जल बहता चला जा रहा है, उसी तरह हमारी श्वास भी कम हो रही है।

मिट जाता है भेद

शिव संस्कृति के नियमों, विधि-विधानों तथा परंपराओं का तिरस्कार या उनको अस्वीकार नहीं करते। वे विद्रोही नहीं, बल्कि सरल और शुद्ध हैं। शिव सभी को शरण देते हैं। वे उन सभी लोगों से घिरे रहते हैं, जिनका समाज

बहिष्कार करता है तथा जिन्हें वह दानव यानी बुरा आदमी समझता है। वे उनके साथ कोई बुरा व्यवहार नहीं करते हैं, बल्कि उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। वे भलीभांति जानते हैं कि अपने गुण-अवगुण के कारण व्यक्ति अच्छा या बुरा होता है। समुद्र मंथन से निकले विष को उन्होंने इसीलिए स्वीकार किया, क्योंकि अमृत और विष के बीच वे कोई भेद नहीं कर पाते हैं। वे योग के देवता भी हैं, इसलिए उन्हें विष को भी पचा पाने की शक्ति प्राप्त है। शिव ने एक बार पार्वती से कहा, मुझे जो समर्पित किया जाता है, उसका महत्व नहीं है। महत्व उस भावना का होता है, जो उसके पीछे होती है। ‘शिव के सात रहस्य’ पुस्तक से सभी से समभाव रखते हैं शिव शिव सभी के प्रति समभाव रखते हैं। बिना मांगे आशीर्वाद देते हैं। सामाजिक बंधनों के प्रति उदासीन हैं। तभी तो उन्हें देवों के देव महादेव कहा जाता है।

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