लेना होगा गंगा और बेटी बचाओ का संकल्प

कुंभ अर्थात कलश, भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह संपूर्ण सृष्टि का तथा पूर्ण व्यक्तित्व का प्रतीक है। समुद्र मंथन के बाद जिस प्रकार अमृत के लिए देवासुर संग्राम हुआ था, ठीक उसी प्रकार आज भी सात्विक और तामसिक शक्तियां मनुष्य के भीतर छिपकर अमृत रूपी पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों की लूट-खसोट कर रही हैं।

By Edited By: Publish:Tue, 29 Jan 2013 04:49 PM (IST) Updated:Tue, 29 Jan 2013 04:49 PM (IST)
लेना होगा गंगा और बेटी बचाओ का संकल्प

वर्ष 1952 में हरियाणा में जन्मे परमार्थ निकेतन, ऋषिकेश के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि जी महाराज ने महज आठ वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया था और ऋषिकेश में परमार्थ निकेतन के स्वामी धर्मानंद सरस्वती के शिष्य बने। वहीं शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की। यहां से शिक्षा पूरी होने के बाद निकल पड़े धर्म, अध्यात्म और समाज सेवा की अलख जगाने। आज कई देशों में उनके हजारों शिष्य हैं, जो गंगा और सनातन धर्म की ध्वजा पताका पूरे विश्व में लहरा रहे हैं। गंगा बचाओ और बेटी बचाओ जैसे कार्यक्त्रमों के जरिए समाज हित में जुटे स्वामी चिदानंद से बातचीत के प्रमुख अंश कुंभ आपकी दृष्टि में क्या है?

कुंभ अर्थात कलश, भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। यह संपूर्ण सृष्टि का तथा पूर्ण व्यक्तित्व का प्रतीक है। समुद्र मंथन के बाद जिस प्रकार अमृत के लिए देवासुर संग्राम हुआ था, ठीक उसी प्रकार आज भी सात्विक और तामसिक शक्तियां मनुष्य के भीतर छिपकर अमृत रूपी पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों की लूट-खसोट कर रही हैं। देवताओं द्वारा पूरे ब्रहृमांड को छोड़कर पृथ्वी की विशाल जलराशि का मंथन करना ही यह सिद्ध करता है पृथ्वी की विशालराशि समुद्र तथा समुद्रों को भरने वाली नदियों में भी अमृत घुला है। चिंता का विषय यह है कि जिस प्रकार मनुष्य अपनी लालच और विलासिता की जरूरतों को पूरा करने में लगा है, उसे देखकर तो यही लगता है कि पृथ्वी के यह अमृत स्नोत समुद्र और नदियां शीघ्र ही विष का स्त्रोत बन जाएंगे।

गंगा को मां का दर्जा प्राप्त है, तब भी मां की रक्षा क्यों नहीं हो पा रही है?

केवल मां कहने से काम नहीं चलेगा। हर शख्स को मां की महत्ता समझनी होगी और उसका सच्चा पुत्र बनना होगा। जनता हर काम के लिए सरकारों पर निर्भर रहने लगी है और सरकारें वोट देखकर ही अपनी नीतियां और योजनाएं बनाती हैं। गंगा मुक्तिदायिनी तो हैं, लेकिन वोटदायिनी नहीं बन पायी हैं। जन जागरूकता के माध्यम से देश के जन-जन को गंगा की इस चिंता से अवगत कराना होगा। जनता के खड़े होने पर गंगा वोटदायिनी भी बनेगी, तब सरकारों को भी विवश होकर वह सब करना ही होगा, जो करना उनकी जिम्मेदारी है।

गंगा एक्शन प्लान चलाया जा रहा है, इसका प्रभाव क्यों नहीं दिखता?

पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में बड़े ही जोर-शोर से गंगा एक्शन प्लान शुरू हुआ था। केंद्र सरकार ने काफी धन भी मुहैया कराया, लेकिन गंगा जस की तस हैं। इसमें सभी को हाथ बंटाना होगा। सिर्फ सरकार ही नहीं, सभी लोगों को आगे आना होगा। दोष किसी एक पर नहीं डाला जा सकता। नि:संदेह सरकारी तंत्र, धर्मतंत्र और आम जनता सभी को अपनी जिम्मेदारी का अहसास करना होगा। अपने कर्तव्य,धर्म का निर्वहन नहीं करने पर दोष से किसी का भी बचना संभव नहीं।

क्या आपको नहीं लगता कि गंगा पर बने इतने बांध उसके लिए अभिशाप हैं?

हमने छोटे बांधों की सदैव वकालत की है। गंगा अविरल भी रहे और ऊर्जा सृजन भी हो। बड़े बांध निश्चित रूप से गंगा की अविरलता को प्रभावित करते हैं। ऊर्जा के लिए जल पर पूरी तरह निर्भरता छोड़कर सौर ऊर्जा, जो भारत में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, का पूरा उपयोग करना अब समय की सबसे बड़ी मांग है।

जन सामान्य सरोकारों को जगाने के लिए क्या करें?

जनमानस से यही कहूंगा कि असली सरकार जनता है। उसने अपना प्रतिनिधि बनाकर जनप्रतिनिधियों को विधायिका और कार्यपालिका में भेजा है। अब जनता को पक्की धारणा बनानी होगी कि असली सरकार हम हैं और अपने दरवाजे पर नेता के आने पर उनसे गंगा और अन्य नदियों के संरक्षण से जुड़े सवाल उठाने होंगे और उनसे ठोस आश्वासन लेना होगा। साथ ही गंगा एवं अन्य नदियों तथा प्रकृति व पर्यावरण से अनुराग रखने वाले अधिकारियों को गंगा अभियान का दायित्व देने, उन्हें समुचित अधिकार देने तथा उन्हें खुले हाथों से छूट देने जैसे कदम भी लक्ष्य पूर्ति में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।

गंगा तट या अन्य नदियों के तटों पर बसे शहरों को पॉलीथिनमुक्त करने में सफलता क्यों नहीं मिल पा रही है?

पॉलीथिन ने जल व वायु सहित संपूर्ण वातावरण को जितनी हानि पहुंचाई है, उतनी किसी और से नहीं हुई है। नदियों के तट पर बसे शहरों को ही नहीं, संपूर्ण देश को पॉलीथिनमुक्त किया जाना चाहिए। पॉलीथिन पर प्रतिबंध से गंगाजल साफ रखने में भारी सहायता मिलेगी। इसमें सफलता तभी मिल सकती है जब लोग इसके प्रति खुद जागरूक हों।

गंगा के साथ अन्य धर्मावलंबी भी जुड़ें, इसके लिए क्या किया जाना चाहिए?

गंगा केवल हिंदुओं की नहीं बल्कि सबकी है। वह तो बिना किसी भेदभाव के श्यामलाल के खेत को भी सींचती है और सलीम मोहम्मद के खेत को भी। जल तो सबके लिए आदरणीय है। हिंदू अगर गंगा, यमुना और सरयू के जल का आचमन करते हैं, तो मुसलमान वजू करते हैं। खुशी की बात यह है कि अन्य धर्मावलंबी गंगा के प्रदूषण मुक्ति के लिए साथ आ रहे हैं।

गंगा राष्ट्रीय धरोहर घोषित हो चुकी हैं। पुरातत्व विभाग के नियम क्या गंगा क्षेत्र पर भी लागू होने चाहिए?

केंद्र सरकार के निर्देश का कड़ाई पालन होना चाहिए। हेरिटेज जोन के लिए लागू होने वाले नियम गंगा क्षेत्र पर लागू होने से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने में उल्लेखनीय सफलता मिलेगी।

गंगा के प्रदूषण मुक्ति के लिए कोई और नया कार्यक्त्रम?

गंगा एक्शन परिवार से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों ने जैविक विधाओं द्वारा गंगा किनारे टिकाऊ खेती की सुव्यवस्थित कार्ययोजना तैयार की है, जिस पर काम शुरू कर दिया गया है। भारत सरकार और गंगा मार्ग की पांचों राज्य सरकारों, उत्तराखंड , उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल से जरूरी प्रावधान भी कराए जाएंगे। किसानों के आवश्यक प्रशिक्षण व मार्गदर्शन की व्यवस्था भी परमार्थ निकेतन द्वारा की जाएगी। जैविक खेतों की पांच विधाओं में अग्निहोत्र (यज्ञ)विधा द्वारा जैविक खेती को भी रखा गया है।

कुंभ के दौरान तीर्थयात्रियों को कई पंपलेट दिये जा रहे हैं। क्या संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं आप?

कुंभ जैसे पर्व एक-दूसरे से जुड़ने-जोड़ने और तात्कालिक व दीर्घकालीन समस्याओं की गुत्थियों को सुलझाने का सर्वोत्तम अवसर होते हैं। गंगा एक्शन परिवार के स्वयंसेवियों ने एक दर्जन से अधिक संगोष्ठियों को आयोजन किया है। संबंधित विषयों पर उच्चस्तरीय सामग्री तैयारी की है, जो जनसामान्य में पहुंचायी जा रही है।

हाल ही में मल्लाहों की कन्याओं को बुलाकर ऋषि कुमारों से उनका पूजन कराया गया। इसका क्या मकसद था?

दरअसल गंगा एक्शन परिवार बेटी बचाओ कार्यक्त्रम पर भी काम कर रहा है। हमने कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध राष्ट्रीय स्तर पर माहौल बनाने की शुरुआत की है। इस कार्यक्त्रम को एक बड़ा अभियान बनाने की जरूरत है। अज्ञानतावश हमारा समाज यह समझ ही नहीं पा रहा है कि बिगड़ता लिंग अनुपात हमारी भावी पीढि़यों किस रसातल में ले जाएगा। इसके दुष्परिणाम आना शुरू हो गए हैं। अब दादी, नानी और माताजी को यह समझ में आ जाना चाहिए कि जब सबको पत्‍‌नी, बहिन, बुआ व मौसी आदि चाहिए और कन्या को जन्म नहीं लेने दोगी, तब यह रिश्ते कहां से आएंगे।

आपके पास बड़ी-बड़ी योजनाएं हैं। इन योजनाओं को बनाने और क्त्रियान्वित करने वाले लोग आप कहां से लाते हैं?

जब नीयत साफ होती है, तब प्रतिभाएं भी बाढ़ की तरह आती हैं। संसाधनों की बारिश भी होती है। यह समाज जो है ना, बहुत प्रभावशाली है और समृद्ध भी। उच्च प्रयोजन के लिए, अपनेपन का विस्तार करके, निजी स्वार्थो और निजी संबंधों से ऊपर उठकर, उच्च व गहरे भाव से जब कोई चल देता है, अनेक दिशाओं से उसे सहयोग मिलने लगते हैं। गंगा जी को देखिए, एक ऊंचे उद्देश्य के लिए वह पिता हिमालय की पवित्र गोद को छोड़कर मैदान की ओर चल दीं। परमार्थ निकेतन में विविधि विधाओं के विशेषज्ञ, वैज्ञानिक, प्रशासक, साधक सभी स्वयंसेवी आधार पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। श्री दैवी सम्पद मंडल से कई दशकों में जुड़े साधक और भक्त पूरे देश व विश्व में बड़ी संख्या में हैं। जिनका सार्थक सहयोग आश्रम को मिलता है। हमारी नीति समन्वयवादी एवं सहगमन की होने के कारण अनेकानेक संस्थाओं एवं लोगों का सहयोग मिलता है, जो हमारी बहुत बड़ी पूंजी है। वहीं परमार्थ युवा परिषद जैसी अवधारणा ने भी ऋषिकेश गंगा तट पर जन्म ले लिया है।

परमार्थ निकेतन से विदेशीजन बहुत बड़ी संख्या में जुड़े हैं?

हम दुनिया को एक परिवार के रूप में देखते हैं। हमने भारतीय संस्कृति के वजनदार सूत्रों को देश की सीमाओं के बाद सीमा पार सुदूर देशों में भी पहुंचाने की कोशिश की, तो लोग जुड़ते चले गए। भारतीय संस्कृति विश्व संस्कृति बनती जा रही है। विदेशीजन केवल जुड़े ही नहीं, बल्कि बड़े समर्पित कार्यकर्ता बन गए। कई विदेशी स्त्री-पुरुष गंगा एक्शन परिवार और रमार्थ बाव को विश्वभाव बनाने के लिए प्राण-पण से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अच्छी बात यह है कि वह बड़े कर्मठ, लगनशील, सुयोग्य एवं विश्वसनीय सिद्ध हुए हैं। गंगा व भारतीय संस्कृति में इनका गहरा लगाव और इनकी सेवा के प्रति भावपूर्ण अभिरुचि है।

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