प्रभु का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वहन करें

सृष्टि में उस परमात्मा की ही शक्ति है जिसने इसकी रचना की है। उस दीपक के प्रकाश की तरह आप सब भी वहीं वापस चले जाएंगे, जहां से आए हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 27 Jun 2016 01:35 PM (IST) Updated:Mon, 27 Jun 2016 01:36 PM (IST)
प्रभु का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वहन करें

हमारा देश एक धर्म प्रधान देश है। यही वजह है कि यहां युगों से धर्म की धारा बहती रही है। यहां के धर्मप्राण लोग इसमें डुबकी लगाकर अपना इहलोक और परलोक सुधारते हैं। यदि ध्यान से देखें तो प्राचीनकाल से लेकर अब तक यहां के धर्मप्राण लोगों ने संपूर्ण जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से ही समझने का प्रयास किया है। उदाहरण के लिए आप किसी शहरी श्रमिक को श्रम करते हुए देखें या गांव में हल चलाते किसी हलवाहे को और आप उनसे बात करें तो वह भी बस यही कहते हुए मिलेंगे कि इस जीवन का क्या ठिकाना? आज है, कल नहीं, फिर काहे की चिंता आदि। इस प्रकार यदि देखें तो यहां के लोगों में आध्यात्मिक दृष्टि इस कदर समा चुकी है कि वे बचपन से लेकर जवानी तक और जवानी से लेकर वृद्धावस्था तक केवल और केवल अध्यात्म की बातें करते रहते हैं। ऐसा करके वे अपना इहलोक और परलोक, दोनों सुधार लेना चाहते हैं।

एक गांव की बात है। एक संत वहां के मंदिर में बैठकर पूजा-अर्चना कर रहे थे। वे साधना में ऐसे लीन हो गए कि शाम हो गई और अंधेरा छाने लगा। तभी एक छोटा बच्चा उस मंदिर में आया। उसने जेब से माचिस निकालकर मंदिर में रखे दीपक को जला दिया। मंदिर में प्रकाश देखकर संत ने बच्चे से पूछा, बेटा! यह बताओ कि यहां प्रकाश कहां से आ गया? बच्चे को कोई उत्तर नहीं सूझा, इसलिए उसने फूंक मारकर दीपक बुझा दिया और संत से कहा, हे महात्मन! वह प्रकाश जहां से आया था, वहीं चला गया। संत हतप्रभ रह गए और उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि यह छोटा बच्चा भी मानता है कि सृष्टि में उस परमात्मा की ही शक्ति है जिसने इसकी रचना की है। उस दीपक के प्रकाश की तरह आप सब भी वहीं वापस चले जाएंगे, जहां से आए हैं। प्रभु का स्मरण करते हुए अपने कर्तव्य का निर्वहन करें।

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