वृद्धजनों का सदा सत्कार करें

हम सामान्यत: आयु में बड़े व्यक्ति को वृद्ध कहते हैं। शास्त्रों में कई प्रकार के वृद्ध बताए गए हैं। जैसे धन वृद्ध, बल वृद्ध, आयु वृद्ध, कर्म वृद्ध और ज्ञान वृद्ध या विद्या वृद्ध। मनुस्मृति में सम्मान के आधार पर पांच प्रकार के वृद्ध बता

By Edited By: Publish:Thu, 16 May 2013 11:39 AM (IST) Updated:Thu, 16 May 2013 11:39 AM (IST)
वृद्धजनों का सदा सत्कार करें

हम सामान्यत: आयु में बड़े व्यक्ति को वृद्ध कहते हैं। शास्त्रों में कई प्रकार के वृद्ध बताए गए हैं। जैसे धन वृद्ध, बल वृद्ध, आयु वृद्ध, कर्म वृद्ध और ज्ञान वृद्ध या विद्या वृद्ध। मनुस्मृति में सम्मान के आधार पर पांच प्रकार के वृद्ध बताए गए हैं। पहला धन से, दूसरा पारिवारिक नाते से, तीसरा आयु से, चौथा उत्तम कर्मो से और पांचवां श्रेष्ठ विद्या के आधार पर। इनमें जो अगले क्रम का है, वह पिछले से उत्तम है। इस दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ विद्या वृद्ध है। हम लोक-व्यवहार में देखते हैं कि धनिकों का समाज में सम्मान है, परंतु किसी विशेष क्षेत्र जैसे- देश की रक्षा, विज्ञान, साहित्य, संगीत, कला, खेलकूद आदि में विशेष स्थान प्राप्त करने वालों को राष्ट्र की ओर से भारतरत्‍‌न, अशोक चक्र, खेलरत्‍‌न आदि सम्मानों से अलंकृत किया जाता है। इन्हें समाज में भी आदर की दृष्टि से देखा जाता है।

वृद्धजनों के प्रति हमारी संस्कृति में प्राचीन काल से ही अत्यंत सम्मान रहा है। मनुस्मृति में वृद्धजनों का अभिवादन और सेवा करने वालों की दीर्घायु, विद्या, कीर्ति और बल- इन चारों की उन्नति का आशीर्वाद मिलने की बात कही गई है। जो व्यक्ति सेवा करने की प्रवृत्ति वाला और अभिवादनशील होता है, वह स्वभाव से विनम्र होता है। उसके संसर्ग में आने के कारण गुणों का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है। आयुवृद्धों के पास जीवन के अनुभवों की पूंजी, कर्मवृद्धों के पास प्रवीणता के गुण और विद्यावृद्धों के पास ज्ञान की पूंजी होती है। ऐसे लोगों की सेवा-सुश्रूषा के फलस्वरूप इनके ये गुण संसर्ग रूपी प्रसाद के रूप में हमें प्राप्त होते हैं। साथ ही, हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने कर्मो को श्रेष्ठ मार्ग पर ले जाते हुए अपना, समाज और राष्ट्र का गौरव बढ़ाएं। आधुनिकता की चकाचौंध और भौतिकता के चलते वृद्धों को रूढि़वादी, अशक्त समझकर उनका तिरस्कार करने से समाज की हानि है क्योंकि उनके अनुभव का कोई लाभ हमें नहीं मिल सकेगा। सद्परंपराओं के निर्वाह और अनुकरण से ही संस्कृति का निर्माण होता है। हमें चाहिए कि अपनी इस विरासत को बचाएं और वृद्धजनों का सदा सत्कार करें।

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