गीता से मिलता है प्रेम भाव का संदेश

गीता की दिव्यता आस्था की स्वतंत्रता है। गीता विश्व का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो मानव को जीने का ढंग सिखाता है। गीता जीवन में प्रेम का पाठ पढ़ाती है। प्रेम में शांति निहित होती है। यह बात महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि प्रेम ही जीवन का आधार है। जिस के जीवन में प्रेम है उस के जीवन में शांति

By Edited By: Publish:Sat, 06 Sep 2014 11:37 AM (IST) Updated:Sat, 06 Sep 2014 04:22 PM (IST)
गीता से मिलता है प्रेम भाव का संदेश

पानीपत। गीता की दिव्यता आस्था की स्वतंत्रता है। गीता विश्व का एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो मानव को जीने का ढंग सिखाता है। गीता जीवन में प्रेम का पाठ पढ़ाती है। प्रेम में शांति निहित होती है। यह बात महामंडलेश्वर गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कही।

उन्होंने कहा कि प्रेम ही जीवन का आधार है। जिस के जीवन में प्रेम है उस के जीवन में शांति है। प्रेम में ही शांति निहित है। प्रेम है तो थोड़े में संतुष्टि है। अगर जीवन में प्रेम नहीं है तो बहुत कुछ होने पर भी संतुष्टि नहीं है। उन्होंने कहा कि दुर्योधन के जीवन में प्रेम नहीं था इसलिए दुर्योधन ने गोविंद के मांगने की बजाए सेना व शस्त्र मांगे। उसके मन में अंहकार, ईष्र्या व द्वेष पूरी तरह घर कर गया। जिसके जीवन में ऐसी वृतियां आ जाती है उसका पतन निश्चित होता है क्योंकि यह वृत्तियां दीमक की तरह इंसान को अंदर से खोखला कर देती है।

उन्होंने कहा कि गीता में जीवन को 4 भागों में बांटा गया है। पहली चेतना अर्थात आत्मा, दूसरी बुद्धि जो निर्णय लेती है या निर्णय करती है, तीसरा मन जो विचार करता है तथा चौथा बाहरी ढांचा जिसे हम शरीर कहते हैं। इन चारों से जीवन पूरा होता है। इंद्रियों से परे बुद्धि, बुद्धि से परे मन और मन से श्रेष्ठ चेतना यानि आत्मा है। बिना आत्मा के कोई कर्म नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो चरित्र का निर्माण करे। बुद्धि का विकास करे। मनोबल बढ़ाए। जब ऐसी शिक्षा जीवन में होगी तो बच्चे संस्कारवान बनेंगे।

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