पितृ पक्ष 2018: जाने किसको है श्राद्घ करने का अधिकार

पितृ पक्ष 2018 प्रारंभ हो चुके हैं। ये पूर्वजों के उद्घार के लिए की जाने वाली सबसे बड़ी पूजा मानी जाती है। आइये पंडित दीपक पांडे से जाने कौन है श्राद्घ कर्म करने का अधिकारी।

By Molly SethEdited By: Publish:Mon, 24 Sep 2018 03:26 PM (IST) Updated:Mon, 24 Sep 2018 03:27 PM (IST)
पितृ पक्ष 2018: जाने किसको है श्राद्घ करने का अधिकार
पितृ पक्ष 2018: जाने किसको है श्राद्घ करने का अधिकार

पूर्वजों के ऋण से मुक्ति का विधान 

विभिन्न पुराणों के अनुसार संतान के जन्म लेते ही उसके साथ तीन प्रकार के ऋण जुड़ जाते हैं। पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है इससे मुक्त होने के लिए संतान को अपने घर के मृत बुजुर्गों का श्राद्ध अवश्य करना चाहिए जिससे वे पुत नामक नरक के कष्टों से मुक्ति प्राप्त कर सकें। श्राद्घ भी हर कोर्इ किसी का भी कर दे एेसा नहीं हो सकता, जैसे पैसों के मामले में अपना ऋण स्वयं चुकाना होता है उसी प्रकार अपने पूर्वजों से मिला संतति का कर्ज भी संतान को ही चुकाना होता है। आइये जाने किसको किसको होता है श्राद्घ करने का अधिकार। 

ये हैं अधिकारी 

सामान्य रूप से श्राद्ध करने का पहला अधिकार मृतक के ज्येष्ठ पुत्र का होता है परंतु यदि वह ना हो अथवा वह श्राद्ध कर्म न करता हो तो छोटा पुत्र श्राद्ध कर सकता है। यदि किसी परिवार में सभी पुत्र अलग-अलग रहते हों तो सभी को अलग अलग पितरों का श्राद्ध करना चाहिए। पुत्र ना होने की स्थिति में पौत्र या प्रपौत्र श्राद्घ कर सकता है। पुत्र की संतति ना होने की स्थिति में भार्इ श्राद्घ करने का अधिकारी हो सकता है। 

स्त्रियों को भी अधिकार 

वैसे कुछ ग्रंथों में स्त्रियों को भी श्राद्घ करने का अधिकार दिया गया है। जैसे यदि पुत्र ना हो तो भार्इ से पहले मृतक की पत्नी का श्राद्घ करने का अधिकार माना गया है। इसी तरह विवाह ना होने या पत्नी आैर संतान ना होने की स्थिति में मृतक की माता आैर बहन को भी श्राद्घ का अधिकार दिया गया है। यदि पुत्र ना या श्राद्घ कर्म ना कर सके तो पुत्र वधु को भी श्राद्घ करने का अधिकार है। 

इनको भी है अधिकार 

पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है  कि पुत्र के अलावा पौत्र आैर प्रपौत्र को भी दादा-दादी, या पर दादा आैर परदादी का श्राद्ध करने का हक है, लेकिन ये ना हों तो भाई-भतीजे व उनके पुत्र भी श्राद्ध कर सकते हैं। यदि एेसा संबंधी ना हो तो तब पुत्री पुत्र यानी दौहित्र श्राद्ध कर अपने पितरों का उद्धार करवा सकता है। इसी तरह बहन के पुत्र यानि भानजे को भी श्राद्घ का अधिकार दिया जा सकता है। 

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