करवा चौथ 2018: जाने कैसे मनायें सौभाग्य का ये पर्व

पंडित दीपक शर्मा से जानें कि महिलायें अपने सुख सौभाग्य का ये पर्व कैसे मनायें आैर करवा चौथ का क्या अर्थ है।

By Molly SethEdited By: Publish:Fri, 26 Oct 2018 11:09 AM (IST) Updated:Fri, 26 Oct 2018 11:09 AM (IST)
करवा चौथ 2018: जाने कैसे मनायें सौभाग्य का ये पर्व
करवा चौथ 2018: जाने कैसे मनायें सौभाग्य का ये पर्व

कैसे मनाते हैं करवा चौथ 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करकचतुर्थी या करवा-चौथ व्रत करने का विधान है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी अर्थात उस चतुर्थी की रात्रि को जिसमें चंद्रमा दिखाई देने वाला है, उस दिन प्रातः स्नान करके अपने सुहाग की आयु, आरोग्य, सौभाग्य का संकल्प लेकर दिनभर निराहार रहें। बालू अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं चंद्रमा की मूर्तियों की स्थापना करें। यदि मूर्ति ना हो तो सुपारी पर धागा बांध कर उसकी पूजा की जाती है। इसके पश्चात सुख सौभाग्य की कामना करते हुए इन देवों का स्मरण करें आैर करवे सहित बायने पर जल, चावल आैर गुड़ चढ़ायें। अब करवे पर तेरह बार रोली से टीका करें आैर रोली चावल छिडकें। इसके बाद इसके बाद हाथ में तेरह दाने गेहूं लेकर करवा चौथ की व्रत कथा का श्रवण करें।

क्या है करवा चौथ

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला पर्व करवा चौथ भारत में सौभाग्यवती महिलाआें का प्रमुख त्योहार है। यह व्रत सुबह सूर्योदय से पूर्व प्रात: 4 बजे प्रारंभ होकर रात में चंद्रमा दर्शन के बाद पूर्ण होता है। किसी भी आयु, जाति, वर्ण, संप्रदाय की स्त्री को इस व्रत को करने का अधिकार है। अपने पति की आयु, स्वास्थ्य व सौभाग्य की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती हैं । इस वर्ष ये पर्व शनिवार 27 अक्टूबर 2018 को पड़ रहा है। इस दिन श्री गणेश की पूजा विशेष रूप से की जाती है। करवाचौथ में भी संकष्टी या गणेश चतुर्थी की तरह दिन भर उपवास रखकर रात में चन्द्रमा को अ‌र्घ्य देने के बाद भोजन करने का विधान है।

उत्तर भारत में प्रचलित है 

वैसे तो पूरे भारतवर्ष में हिंदू धर्म को मानने वाले लोग इस त्यौहार को मनाते हैं लेकिन उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि में तो इस पर्व का सबसे ज्यादा महत्व है। करवाचौथ व्रत के दिन शाम से पूजा का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। जहां पंजाब, हरियाणा में महिलायें समूह में बैठ कर करवे के गीत गाते हुए आपस में पूजा की थाली बदलती हैं, वहीं शेष उत्तर भारत में व्रत करने वाली स्त्रियां करवे आैर श्री गणेश की पूजा करती आैर कथा सुनती हैं। इसके बाद शाम ढलते ही सभी जगह चांद का दर्शन कर उसे अर्ध्य देने का इंतजार प्रारंभ हो जाता है। इस पर्व को मनाने वाले परिवारों में शाम से ही चांद निकलने के पहले ही बच्चे आैर बाकि सदस्य छतों आैर आंगन में चांद की एक झलक देखने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। चांद निकलने पर सारा दिन पति की लंबी उम्र के लिये व्रत रखने के बाद महिलायें उसकी पूजा करके आैर अर्ध्य देने बाद अपना उपवास खोलती हैं। 

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