पूजा पाठ या धार्मिक कार्यों में क्यों बांधते हैं रक्षा सूत्र, जानें इसका महत्व

भगवान विष्णु ने वामन अवतार में असुरों के राजा बलि की अमरता के लिए उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। तब से इस संकल्प सूत्र को रक्षा सूत्र के तौर पर बांधा जाने लगा।

By kartikey.tiwariEdited By: Publish:Thu, 13 Jun 2019 04:53 PM (IST) Updated:Mon, 17 Jun 2019 09:26 AM (IST)
पूजा पाठ या धार्मिक कार्यों में क्यों बांधते हैं रक्षा सूत्र, जानें इसका महत्व
पूजा पाठ या धार्मिक कार्यों में क्यों बांधते हैं रक्षा सूत्र, जानें इसका महत्व

जब भी हम किसी पूजा पाठ या धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होते हैं, तो पंडित जी को कलाई पर रक्षा सूत्र या मौली बांधते हुए देखा होगा। आखिर से रक्षा सूत्र क्यों बांधते हैं और इसका पौराणिक महत्व क्या है? दरअसल रक्षा सूत्र या मौली बांधना वैदिक परंपरा का हिस्सा है। यज्ञ के दौरान मौली बांधने का चलन पहले से ही रहा है, जिसे संकल्प सूत्र कहा जाता था।

रक्षा सूत्र या मौली का महत्व

भगवान विष्णु ने वामन अवतार में असुरों के राजा बलि की अमरता के लिए उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। तब से इस संकल्प सूत्र को रक्षा सूत्र के तौर पर बांधा जाने लगा। अपने पति की रक्षा के लिए माता लक्ष्मी ने भी राजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा था, तब से इसे रक्षा बंधन का भी प्रतीक माना जाने लगा।

रक्षा सूत्र बांधने का मंत्र

जब भी आप पंडित जी से मौली या रक्षा सूत्र बंधवाते हैं, तो वे यह मंत्र पढ़ते हैं —

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।

तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

त्रिदेव और त्रिदेवियों से जुड़ी है मौली

आपने देखा होगा कि मौली तीन कच्चे धागे से बनी होती है। इसे खास तौर पर पुरुष और कन्या के दायीं कलाई और शादीशुदा महिलाओं के बायीं कलाई पर बांधा जाता है। कलाई पर तीन रेखाएं होती हैं, जिसे मणिबंध कहते हैं। ये तीन रेखाएं ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक हैं। इन रेखओं में ही तीन देवियों शक्ति, सरस्वती और लक्ष्मी का वास माना जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब अभिमंत्रित करके रक्षा सूत्र बांधते हैं तो वह त्रिदेव और त्रिदेवियों को अर्पित हो जाता है। जिसके पश्चात त्रिदेव और त्रिदेवियां हमारी रक्षा करती हैं।

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