Shani Stotra: हर संकट से पाना चाहते हैं मुक्ति, तो शनिवार के दिन जरूर करें ये स्तुति

Shani Stotra धार्मिक मान्यता है कि शनिवार के दिन न्याय के देवता की पूजा करने से व्यक्ति को शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी कृपा-दृष्टि से जीवन में व्याप्त काल कष्ट दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख समृद्धि और खुशहाली आती है।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Fri, 26 May 2023 02:18 PM (IST) Updated:Fri, 26 May 2023 02:18 PM (IST)
Shani Stotra: हर संकट से पाना चाहते हैं मुक्ति, तो शनिवार के दिन जरूर करें ये स्तुति
Shani Stotra: हर संकट से पाना चाहते हैं मुक्ति, तो शनिवार के दिन जरूर करें ये स्तुति

नई दिल्ली, आध्यात्म डेस्क। Shani Stotra: सनातन धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है। शनिदेव को न्याय का देवता भी कहा जाता है। इस दिन न्याय के देवता की पूजा-उपासना की जाती है। साथ ही शनिदेव के निमित्त व्रत भी रखा जाता है। शनिदेव अच्छे कर्म करने वाले को शुभ फल देते हैं। वहीं, बुरे कर्म करने वाले को दंड देते हैं। एक बार शनि देव की कुदृष्टि व्यक्ति पर पड़ जाती है, तो व्यक्ति चंद दिनों में राजा से रंक बन जाता है। धार्मिक मान्यता है कि शनिवार के दिन न्याय के देवता की पूजा करने से व्यक्ति को शनिदेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनकी कृपा-दृष्टि से जीवन में व्याप्त काल, कष्ट, दुख और संकट दूर हो जाते हैं। साथ ही घर में सुख, समृद्धि और खुशहाली आती है। अत: साधक हर शनिवार को श्रद्धा भाव से न्याय के देवता शनिदेव की विशेष पूजा उपासना करते हैं। अगर आप भी सभी संकटों से मुक्ति पाना चाहते हैं, तो शनिवार के दिन पूजा के समय ये स्तुति जरूर करें। आइए, शनि स्त्रोत का पाठ करते हैं-

शनि स्तोत्र

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥

रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् ।

सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥

याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं ।

एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥

प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा ।

पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥

नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च।

नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।

नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।

नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।

नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।

नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।

नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:।

नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।

नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते।

सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च।।

अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते।

नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते।।

तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च।

नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:।।

ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे।

तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्।।

देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा:।

त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।

प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत।

एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल:।।

प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् ।

अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥

डिसक्लेमर: इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी।

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