पिंड रूप में मानव जीवन की शुरुआत होती है और पिंड रूप में ही वह विलीन हो जाता है

पिंड रूप में मानव जीवन की शुरुआत होती है और पिंड रूप में ही वह विलीन हो जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृ-तीर्थ गया में हर साल पितरों को पिंडदान और पितृ-तर्पण किया जाता है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 16 Sep 2016 11:05 AM (IST) Updated:Fri, 16 Sep 2016 01:08 PM (IST)
पिंड रूप में मानव जीवन की शुरुआत होती है और पिंड रूप में ही वह विलीन हो जाता है

पिंड रूप में मानव जीवन की शुरुआत होती है और पिंड रूप में ही वह विलीन हो जाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृ-तीर्थ गया में हर साल पितरों को पिंडदान और पितृ-तर्पण किया जाता है। शुरू हो रहे पितृपक्ष पर विशेष...

जीवन के चार पुरुषार्थ हैं। अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष। इन चार पुरुषार्थों में मोक्ष प्राप्ति के लिए पितृपक्ष सबसे उत्तम माना गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक का समय पितृपर्व के रूप में मनाया जाता है। इसमें हम पितृ-स्मरण करते हैं, जिसे श्राद्ध-पर्व भी कहते हैं। इसमें पिंडदान और तर्पण का विधान सर्वोपरि है।

‘ब्रह्म ज्ञान, गया श्राद्धं, गौगृह मरणं तथा कुसांग वासांग कुरुक्षेत्रे मुक्ति रेखा चतुर्थ विद्या’- मोक्ष प्राप्ति के लिए

ये चार विद्याएं इन पंक्तियों में बताई गई हैं, जिनमें गया श्राद्ध गृहस्थ जीवन के लिए सबसे सुलभ मार्ग है।

इससे हम अपने पितरों को श्राद्ध कर्मकांड के माध्यम से तृप्त करने की कामना करते हैं। इसी निमित्त मानव

कालांतर से श्राद्ध कर्म को अपनाकर अपने पितरों को मुक्ति दिलाने का काम करता आ रहा है।

पिंड से प्रारंभ मानव-जीवन

पितृ-तर्पण के लिए उपयुक्त भूमि गया को माना गया है। इसके बारे में सर्वप्रथम ‘विष्णु सूत्र’ और ‘वायु पुराण’ में उल्लेख मिलता है। जहां यह उद्धृत है कि फल्गु तीर्थ में तर्पण और गया की विभिन्न पिंडवेदियों पर पिंडदान करने से पितृ तृप्त होते हैं। माना जाता है कि इह लोक से परलोक के ‘तार’ यहीं से जुड़ते हैं। वर्तमान समय में गया के विष्णुपद सहित 54 पिंडवेदियों पर पिंडदान के कर्मकांड किए जाते हैं। यह पंचकोसी क्षेत्र में अवस्थित है। मानव जीवन का आकार पिंड से ही प्रारंभ होता है। मां के गर्भ में हम सूक्ष्म रूप के बाद पिंड रूप में आते हैं। यह पिंड पंच

तत्वों से बना होता है। क्षिति, जल, पावक, गगन और समीर से तैयार यह शरीर भी अंत में पिंड रूप में ही

विलीन हो जाता है। इसी पिंड को व्यक्ति शहद, घी, तिल, शक्कर और जौ पांच तत्वों के साथ अपने पितरों

को अर्पित करते हैं। मान्यता है कि जौ देवताओं को प्रिय होता है और तिल बुरी शक्तियों को दूर करता है। कुश

की जड़ में ब्रह्मा जी का वास होता है, उसके मध्य में नारायण और अग्र भाग में शंकर विराजमान रहते हैं।

इसलिए पिंडदान में इन पांच तत्वों के साथ-साथ कुश का शामिल होना विशेष महत्व रखता है।

पितरों तक पहुंचता अर्पित पिंड भाद्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से लेकर अमावस्या की तिथि तक पिंडदान से संबंधित कर्मकांड गया की पवित्र पिंडवेदियों पर संपन्न कराए जाते हैं। इन पिंडवेदियों पर पुरखों के नामित पिंड अर्पित किए जाते हैं, जो उन तक पहुंचने की कामना के साथ किए जाते हैं। पिंड का अर्पण हम ‘स्वधा’ शब्द के उच्चारण से करते हैं।

मान्यता है कि स्वधा अग्नि नारायण की पत्नी हैं, जो प्रथम रूप में पिंड को ग्रहण करती हैं। अमावस्या तिथि

को सूर्य नारायण के समक्ष देवताओं की एक सभा होती है, जिसमें पितरों के देवता वसु, रुद्र और आदित्य

उपस्थित होते हैं। स्वधा द्वारा ग्रहण किए गए पिंड को पितरों के देवता को सभा में समर्पित किया जाता है। जो

भू-लोक में पुत्र द्वारा अर्पित किए गए पिंड उनके पितरों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी लेते हैं। महर्षि व्यास ने भी कहा है कि समस्त तीर्थों में गया उत्तम है। गया पितृ तीर्थ के साथ-साथ मंगलदायक तीर्थ भी है। भगवान यहां स्वयं विराजमान हैं। ‘पितृतीर्थ गयानाम सर्व तीर्थवरं शुभम्। यत्रास्ते देवदेवेश: स्वयमेव पितामह:।।’ हालांकि न सिर्फ गया, बल्कि किसी भी भू-भाग में नदी या तालाब में हम पितरों का तर्पण कर सकते हैं। पितरों के निमित्त अमावस्या तिथि में श्राद्ध व दान का भी विशेष महत्व है।

ऑनलाइन पिंडदान भी

इस वर्ष पितृपक्ष के दौरान गया में लाखों लोगों के पहुंचने की संभावना है। आगंतुकों की सुविधा के लिए पिंडदान की ऑनलाइन बुकिंग की नई शुरुआत भी की गई है। इसके जरिए दुनिया के किसी भी स्थान से बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम की वेबसाइट पर जाकर पिंडदान से जुड़े विभिन्न पैकेजेज की बुकिंग कराई जा सकती है।

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