धूमधाम से कल मनाया गया गोवर्धन पूजा महोत्सव

दीपावली के दूसरे दिन दिल्ली में अनेक जगहों पर गोवर्धन पूजा महोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें एक ओर जहां श्रद्धालुओं ने हिस्सा लेकर गोवर्धन महाराज की पूजा-अर्चन की गई। वहीं देर रात तक सांस्कृति कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। सांस्कृति कार्यक्रम में नामी गिरामी कलाकारों ने हिस्सा लिया। बाद में सभी स्थानों पर भंडारे का आयोजन भी कि

By Preeti jhaEdited By: Publish:Sat, 25 Oct 2014 12:15 PM (IST) Updated:Sat, 25 Oct 2014 12:21 PM (IST)
धूमधाम से कल मनाया गया गोवर्धन पूजा महोत्सव

नई दिल्ली। दीपावली के दूसरे दिन दिल्ली में अनेक जगहों पर गोवर्धन पूजा महोत्सव का आयोजन किया गया। इसमें एक ओर जहां श्रद्धालुओं ने हिस्सा लेकर गोवर्धन महाराज की पूजा-अर्चन की गई। वहीं देर रात तक सांस्कृति कार्यक्रम का आयोजन भी किया गया। सांस्कृति कार्यक्रम में नामी गिरामी कलाकारों ने हिस्सा लिया। बाद में सभी स्थानों पर भंडारे का आयोजन भी किया गया।

पश्चिमी दिल्ली के उत्तम नगर, जनकपुरी, नजफगढ़, ककरौला, ओम विहार, विकासपुरी, हस्तसाल समेत अनेक इलाकों शुक्रवार को गोवर्धन पूजा का आयोजन किया गया। वहां लोगों ने गोवर्धन महाराज की पूजा अर्चना की। पूजन के दौरान भगवान को श्रद्धालुओं ने 56 भोग, अनकुंट्ट व खील बताशे का भोग लगाया।

दिन की शुरूआत गोव‌र्द्धन के प्रतीक को बनाने से हुई। गाय के पविला गोबर से लोगों ने गोव‌र्द्धन का प्रतीक बनाया। नजफगढ़ क्षेत्र के गांवों में भी गोव‌र्द्धन उत्सव विशेष तौर से मनाया गया। पशु पालक इस दिन पशुओं को रंग इत्यादि से सजाया। इससे पहले पशुओं को धोकर परंपरा के तहत पशुओं के सींगों में तेल लगाकर उनके गले में नई रस्सी के पगहे इत्यादि डाले गए। वहीं उन्हें खाने में फल इत्यादि दिए गए। ज्ञात हो कि इस दिन गांव में गोबर के प्रतीकात्मक पहाड़ बनाए जाते हैं। उस पहाड़ की लोग परिक्रमा भी करते हैं। परिक्रमा में परिवार का सबसे बड़ा सदस्य सबसे आगे रहता है।

सनातन धर्म मंदिर में बनाए 51 फिट के गोवर्धन

नोएडा- शहर में गोवर्धन का त्योहार श्रद्धा भाव के साथ मनाया गया। सेक्टर-19 स्थित सनातन धर्म मंदिर में 51 फिट लंबा गोवर्धन बनाया गया। लोगों ने मंदिर व घरों में गोवर्धन स्थापित कर मंत्रोचार के साथ गोवर्धन पूजा की। मंदिरों में अन्नकूट का प्रसाद वितरित किया गया।

शुक्रवार को सुबह से सेक्टर और गांवों में गोवर्धन पूजा की तैयारी शुरू हो गई थीं। सनातन धर्म मंदिर में 51 फिट के गोवर्धन बनाए गए। गोवर्धन में रंगों का भी प्रयोग किया गया। इससे गोवर्धन की छठा और भी सुंदर हो गई। लोगों ने गोवर्धन की आकृति की परिक्रमा कर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा कर उन्हें छप्पन तरह के व्यंजनों का भोग लगाया गया। बाद में भंडारे का आयोजन भी किया गया। इस मौके पर भजन कीर्तन का आयोजन भी किया गया।

नोएडा के गांवों में भी गोवर्धन की पूजा की गई। इस मौके पर लोगों ने अपने घरों में ही गोवर्धन बनाया और उनकी पूजा की। गांवों में इस मौके पर अधिकांश पकवान बनाए जाने की परंपरा है। साथ ही इस मौके पर विशेष रूप से पूड़े (आटे और गुड़ को मिलाकर घी में तल कर तैयार किया जाने वाला पकवान) तैयार किए गए। गांवों में गोवर्धन के मौके पर पूड़े से ही पूजा की जाती है। ग्रामीणों ने ब्राह्मणों को भोजन कराने के पश्चात घर के लोगों ने गोवर्धन का प्रसाद खाया।

गोवर्धन पूजा महोत्सव में गाय की महिमा का गुणगान

आज ही के दिन भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर ब्रज के वासियों की रक्षा की थी। इसलिए ब्रज के मधुर गीतों को गाकर गायक महावीर सिंह चाहर एण्ड पार्टी ने सबको प्रसन्न कर दिया। उन्होंने ब्रज के रसिया गीत सुनाकर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया।

इस मौके पर मुख्य अतिथि महंत स्वामी नवल किशोर ने गोवर्धन की महत्ता और गौपालन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने गोहत्या बंद होने, गायों की दुर्दशा के लिए समाज और सरकार दोनों को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि हम गोपाल की तो पूजा करते हैं लेकिन गाय की पूजा करना भूल जाते हैं। उन्होंने गाय की सुरक्षा पर भी प्रकाश डाला। इस अवसर पर अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष अजय सिंह भी मौजूद रहे। वहीं विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्रीय गौ सेवा प्रमुख और कार्यक्रम के मुख्य वक्ता राष्ट्र प्रकाश ने गौ हत्या को तत्काल प्रतिबंधित करने की बात कही। साथ ही संघ प्रांत गौ सेवा प्रमुख कमल किशोर ने कहा कि जब तक हम गौ माता की प्रतिष्ठा नहीं करेंगे तब तक भारत माता की भी प्रतिष्ठा नहीं बढे़गी।

गोवर्धन की पूजा कर मांगा सुख समृद्धि का वरदान

रोहतक- दीपावली के बाद गोवर्धन भगवान की धूमधाम के साथ पूजा अर्चना की गई। सुबह से ही मंदिरों में काफी चहल पहल देखने को मिली। भक्तों ने पूरे विधि विधान के साथ गोवर्धन महाराज की पूजा की और विभिन्न पकवानों का भोग लगाकर सुख समृद्धि की कामना की।

गोवर्धन भगवान वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण को ही कहा जाता है। बाल्यकाल में भगवान इंद्र का गर्व तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने इंद्र की पूजा करने की बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए ग्रामीणों से कहा। जब इंद्र को इस बात का पता चला तो उन्होंने पूरे नंद गांव को भारी बारिश करवाकर नष्ट करवा दिया। इतना ही नहीं, पूरे गांव में हाहाकार मच गया और लोग इधर उधर भागने लगे। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठा लिया और ग्रामीणों की रक्षा की। सात दिन तक लगातार इंद्र ने अपना कहर बरपाया, लेकिन किसी भी ग्रामीणों को क्षति नहीं पहुंची। तब हारकर इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी अपनी भूल स्वीकार करते हुए पूरे गांव को दोबारा बसाया। तभी से भगवान श्रीकृष्ण को गोवर्धन के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन मंदिरों में काफी संख्या में लोग गोवर्धन भगवान की पूजा करते है। वहीं घरों में भी लोगों ने पूरे विधि विधान के साथ पूजा अचर्ना की।

मंदिरों में बांटा कढ़ी-चावल का प्रसाद

गोवर्धन दिवस व विश्वकर्मा दिवस के उपलक्ष्य में शहर के सभी मंदिरों में कढ़ी-चावल का प्रसाद वितरित किया गया। प्रसाद लेने के लिए भक्तों की लंबी लाइन देखने को मिली। मंदिरों में भक्तों को कढ़ी, चावल, पापड़, बाजरे की खिचड़ी, पूरी, ग्वार की फली, मिक्स सब्जी व कांजी बड़े आदि का प्रसाद वितरित किया गया। मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन भगवान को कढ़ी-चावल के प्रसाद का भोग लगाया जाता है और उनकी पूजा अर्चना की जाती है।

पंचवटी के 'गोवर्धन' बने श्रद्धा का केंद्र

बड़ौत- गोवर्धन का त्यौहार क्षेत्र में परंपरागत रूप में श्रद्धापूर्वक मनाया गया। लोगों ने गोबर से भगवान गोवर्धन की विशाल आकृति बनाकर पूजन किया। गौशालाओं और मंदिरों में अन्नकूट प्रसाद का वितरण किया गया।

शुक्रवार को गोवर्धन के अवसर पर नगर के विभिन्न मंदिरों में भगवान गोवर्धन को छप्पन भोग लगाया गया और प्रसाद का वितरण हुआ। पंचवटी मंदिर परिसर में श्री सांई युवा सेवा समिति के तत्वावधान में अन्नकूट प्रसाद का वितरण किया गया। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण कर पुण्य प्राप्त किया। इससे पूर्व कन्याओं का भोग लगाकर आरती की गई। यहां 15 फीट लंबे और पांच फीट चौड़े गोबर से बनाई गई भगवान गोव‌र्द्धन की आकृति श्रद्धा का केंद्र रही। शाम पांच बजे भगवान की परिक्रमा शुरू हुई। कार्यक्रम में पूजन योगेश मोहन अग्रवाल सर्राफ ने तथा प्रसाद वितरण अनिल कुमारी बेरी वाले ने किया। बछड़ा फिराई का सौभाग्य मनोज गोयल को मिला। मान्यता है कि यहां गोव‌र्द्धन भगवान की सात परिक्रमा करने से हर तरह के शारीरिक कष्टों व रोगों को निवारण हो जाता है।

उधर, दाहा क्षेत्र के दोघट कस्बे में रामबीर पुत्र इलम सिंह ने 33 फीट लंबी गोव‌र्द्धन भगवान की गोबर की आकृति बनाई गई। यह आकर्षण का केंद्र बना रहा। इसमें 21 गायों का गोबर लगाया है। पूरे परिवार ने प्रतिमा की श्रद्धाभाव से पूजन-अर्चन किया।

पशुओं के प्रति प्रेम का भी प्रतीक है गोवर्धन पर्व

रेवाड़ी-

बदलते समय अनुसार हरियाणवी संस्कृति से जुड़े सनातन तीज-त्यौहारों पर आधुनिकता का प्रभाव पड़ने लगा है। गोवर्धन मनाने की पुरानी परंपराएं भी अब अतीत का हिस्सा बनने लगी हैं। गोवर्धन पर्व पशुओं के प्रति मनुष्य के प्रेम का भी प्रतीक है। शुक्रवार को गोवर्धन पूजा के मौके पर शहर में लोग जहां पशुओं को ढूंढते रहे वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी लोग पशु पालकों के घर के चक्कर लगाते रहे। इन पशुओं के गले में मालाएं डालने और सींग व खुरों को विशेष रंग से रंगने की परंपरा भी सिमटने लगी है।

नहीं दिखती बछड़ों की छलांग

बेशक अन्नकुट जैसी कई परंपराओं का आज भी गोवर्धन के दिन पालन किया जाता है, परंतु 'बछड़े की छलांग' लगवाने जैसी कई परंपराएं पीछे छूट रही हैं। दशकों पूर्व क्षेत्र में गोवर्धन पर्व का नजारा देखने लायक होता था। प्रत्येक गांव में सार्वजनिक स्थान पर गोबर से गोवर्धन देवता की आकृति तैयार कर उसके ऊपर से बछड़े की छलांग लगवाई जाती थी। अब बछड़े की छलांग देखना तो दूर बल्कि गोबर की आकृति से गोवर्धन बनाने की परंपरा भी सिमट कर रह गई है। शहरी क्षेत्रों में तो यह परंपरा लगभग गायब ही है।

आकृति करती थी आकर्षित

आज से तीन-चार दशक पूर्व गोबर से बनाई जाने वाली गोवर्धन की प्रतिमा आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी। इसके इर्द-गिर्द गांव के लोग एकत्रित होते थे। गौ-धूली बेला के बाद पूरे गांव की भीड़ के बीच ही गांव में से ऐसे बैल या बछड़े को इस प्रतिमा के पास लाया जाता था, जो काफी मजबूत कद-काठी का होता था। बैल अथवा बछड़े को इस प्रतिमा के ऊपर से छलांग लगवाई जाती थी। बैल अथवा बछड़ा जब गोवर्धन की आकृति के ऊपर से छलांग लगाता था तो देखने वालों का रोमांच देखते ही बनता था। महिलाएं भी गोवर्धन पूजा विशेष रूप से करती थी। हालांकि अब भी यह सिलसिला जारी है, परंतु परंपराएं पीछे छूट रही है। पहले पुरुष समाज भी प्रतिमा की पूजा करता था तथा गोवर्धन पूजा के लिए गांव की महिलाएं भी समूह के रूप में पूजा स्थल पर पहुंचती थी। पूजा के लिए महिलाएं नये वस्त्र पहनती है, जिनमें विवाहित महिलाओं के लिए पूजा स्थल पर 'पीलिया' ओढ़ना जरूरी माना जाता है। 'पीलिया' का प्रचलन अब भी है, लेकिन कुछ बुजुर्ग महिलाएं ही इस परंपरा को निभा रही है। गोवर्धन देवता की प्रतिमा तैयार करके महिलाएं उस पर दूध से भरा कटोरा रखती हैं तथा प्रतिमा पर रखे इस कटोरे से बच्चों को घुटनों के बल चलवाकर दूध पिलवाया जाता है। मान्यता है कि इससे बच्चे का बल बुद्धि बढ़ता है।

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