Ganeshotsav 2020: गणेश जी के आठवें अवतार हैं धूम्रवर्ण, जानें क्यों हुए थे अवतरित

Ganeshotsav 2020 आज जागरण अध्यात्म में हम आपको गणेश जी के आठवें और आखिरी अवतार के बारे में बताएंगे। गणेश जी के आखिरी अवतार का नाम धूम्रवर्ण है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 01 Sep 2020 07:00 AM (IST) Updated:Tue, 01 Sep 2020 07:00 AM (IST)
Ganeshotsav 2020: गणेश जी के आठवें अवतार हैं धूम्रवर्ण, जानें क्यों हुए थे अवतरित
Ganeshotsav 2020: गणेश जी के आठवें अवतार हैं धूम्रवर्ण, जानें क्यों हुए थे अवतरित

Ganeshotsav 2020: आज जागरण अध्यात्म में हम आपको गणेश जी के आठवें और आखिरी अवतार के बारे में बताएंगे। गणेश जी के आखिरी अवतार का नाम धूम्रवर्ण है। इस अवतार की उत्पत्ति अहंतासुर नाम के दैत्य से देवताओं समेत पूरे ब्राह्माण्ड को मुक्त कराने के लिए हुई थी। आइए जानते हैं कि धूम्रवर्ण ने किस तरह लिया था यह अवतार।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार ब्रह्मा जी ने सूर्यदेव को कर्म अध्यक्ष का पद दिया। इसके चलते उनमें अहम भाव आ गया। इस भाव के आने से सूर्यदेव को अचानक छींक आ गई। इसी छींक से एक दैत्य पुरूष प्रकट हुआ। यह दैत्य विशाल बलशाली था। वह दैत्य था इसी के चलते वो दैत्य गुरू शुक्राचार्य का शिष्य बना। इसका नाम अहंतासुर पड़ा। यह दैत्य पूरे ब्राह्माण्ड पर कब्जा करना चाहता था। अहंतासुर ने यह इच्छा शुक्राचार्य के सामने व्यक्त की। उन्होंने अंहतासुर को श्री गणेश के मंत्र की दीक्षा दी। दीक्षा लेकर वो वन चला गया और पूरे भक्ति भाव से गणेश जी की कठोर तपस्या करने लगा।

अहंतासुर ने हजारों वर्ष तक श्री गणेश की तपस्या की। उसकी निष्ठा को देख भगवान श्री गणेश ने उसे दर्शन दिए। बप्पा ने उससे वर मांगने को कहा। तब अहंतासुर ने उनसे ब्रह्माण्ड के राज्य के साथ अमरता और अजेय होने का वरदान मांगा। गणेश जी ने उसे मांगा हुआ वरदान दे दिया। अहंतासुर को यह वरदान मिलने से शुक्राचार्य बेहद खुश हो गए। इसके बाद अहंतासुर को दैत्यों का राजा बना दिया गया। फिर उसका विवाह हो गया और उसके दो पुत्र भी हुए। अहंतासुर ने अपने ससुर तथा गुरु के साथ विश्वविजय की योजना बनाई। अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए उसने काम भी शुरू कर दिया। उसने युद्ध शुरू किया जिससे हर जगह हाहाकार मच गया।

पृथ्वी पर अहंतासुर ने अपना आधिपत्य हासिल कर लिया। फिर उसने स्वर्ग पर आक्रमण किया। देवता भी उसके सामने टिक नहीं पाए। स्वर्ग पर भी उसने कब्जा जमा लिया। फिर पाताल लोक और फिर नागलोक पर भी उसने कब्जा कर लिया। सभी देवताओं ने शिवजी से इस परेशानी से छुटकारा पाने का उपाय जानना चाहा। उन्होंने देवताओं को गणेश जी की उपासना करने का उपाय बताया। देवताओं ने गणेश जी का आराधना करना शुरू किया और गणेश जी ने उन्हें धूम्रवर्ण के रूप में दर्शन दिए। गणेश जी ने देवताओं को आश्वासन दिया कि वो उन्हें अहंतासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाएंगे।

देवर्षि नारद को धूम्रवर्ण का दूत बनाकर अहंतासुर के पास भेजा गया। उन्होंने कहा कि अगर उसने अत्याचार नहीं रोके और गणेश जी की शरण में नहीं आया तो उसका अंत निश्चित है। लेकिन अहंतासुर नहीं माना। जब यह खबर श्री धूम्रवर्ण को मिली तो उन्होंने अपना पाश असुर सेना पर छोड़ दिया। इसके प्रभाव से असुल काल का ग्रास बनने लगे। यह देख अहंतासुर डर गया और शुक्राचार्य से उपाय पूछने लगा। दैत्यगुरू ने भी उसे श्री धूम्रवर्ण की शरण में जाने के लिए कहा। यह सुनते ही अहंतासुर श्री धूम्रवर्ण की शरण में चला गया और उनसे क्षमा मांगने लगा। इसके बाद ही श्री गणेश ने उसे प्राणदान दिया। साथ ही सभी बुरे काम छोड़ने के लिए किया।

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