इन दोनों से सिद्ध नहीं होता कि वेदों का रचयिता ब्रह्म जी थे

दुनिया में सिर्फ हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसमें नास्तिकता को भी मान्यता दी गई है। नास्तिकता को नास्तिकवाद अथवा अनीश्वरवाद भी कहते हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 31 Aug 2016 10:58 AM (IST) Updated:Wed, 31 Aug 2016 11:10 AM (IST)
इन दोनों से सिद्ध नहीं होता कि वेदों का रचयिता ब्रह्म जी थे

दुनिया में सिर्फ हिंदू धर्म ही एकमात्र ऐसा धर्म है, जिसमें नास्तिकता को भी मान्यता दी गई है। नास्तिकता को नास्तिकवाद अथवा अनीश्वरवाद भी कहते हैं।

नास्तिकता वह है जो सृष्टि का संचालन और नियंत्रण करने वाले किसी भी ईश्वर के अस्तित्व को सर्वमान्य प्रमाण नहीं देती और न ही स्वीकारती है।

वैसे से तो कई धर्म ग्रंथों में नास्तिक लोगों का जिक्र मिलता है। चार्वाक दर्शन भी उन्हीं में से एक है। यह पूरी तरह से नास्तिकता पर आधारित है। चार्वाक दर्शन भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है और पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है।

चार्वक दर्शन का तर्क चार्वक ने दिया था। वह प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। चार्वक, बृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रन्थ में भी उल्लेख किया है कि, 'सर्वदर्शनसंग्रह' यानी में चार्वाक का मत दिया हुआ मिलता है। पद्मपुराण में लिखा है कि असुरों को बहकाने के लिए बृहस्पति ने वेद विरुद्ध मत प्रकट किया था। ऐसा माना जाता है कि तभी से नास्तिकता की शुरूआत हुई।

वहीं, हिन्दू दर्शन में नास्तिक शब्द उनके लिये भी प्रयुक्त होता है जो वेदों को मान्यता नहीं देते। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने एक बार कहा था, 'मैंने दुनिया घूमी हुई है। आज तक मुझे कहीं भी ऐसा आदमी नहीं मिला, जो सीना ठोककर कह सके कि, उसने ब्रह्म, आत्मा व ईश्वर को देखा है।'

गौतम बुद्ध के अनुसार, 'ज्ञान प्राप्त करने के प्रत्यक्ष व अनुमान दो ही प्रमाण होते हैं। इन दोनों से सिद्ध नहीं होता कि वेदों का रचयिता ब्रह्म जी थे।

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