दिवंगत आत्माएं दे रहीं आशीर्वाद

पितृपक्ष की अवधि में गया श्राद्ध की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। मेरे पिताजी, चाचाजी तथा मैंने भी गया श्राद्ध किया है। अब तो मेरा यह विश्वास दृढ़ हो गया है कि कट्टर से कट्टर नास्तिक भी यदि एक बार गया श्राद्ध कर लेगा तो उसकी भी आस्था पत्थर की लकीर की तरह दृढ़ हो जाएगी। लगभग 70-

By Edited By: Publish:Tue, 09 Sep 2014 01:03 PM (IST) Updated:Tue, 09 Sep 2014 01:04 PM (IST)
दिवंगत आत्माएं दे रहीं आशीर्वाद

गया। पितृपक्ष की अवधि में गया श्राद्ध की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है। मेरे पिताजी, चाचाजी तथा मैंने भी गया श्राद्ध किया है। अब तो मेरा यह विश्वास दृढ़ हो गया है कि कट्टर से कट्टर नास्तिक भी यदि एक बार गया श्राद्ध कर लेगा तो उसकी भी आस्था पत्थर की लकीर की तरह दृढ़ हो जाएगी। लगभग 70-80 वर्ष पूर्व की बात है- एक दिन संध्या समय हमलोग बैठे थे। एकाएक वहां दो बुजुर्ग आ गए। उनके हाथ में एक नया छाता, पनडब्बा और एक गठरी में कुछ अन्य सामग्रियां थी। ये कहीं उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। 4-5 दिन पूर्व ही गया श्राद्ध करके पंडित माधवलाल मिश्र से सुफल होकर वापस लौटे थे।

उन्होंने कहा कि पिछले कई दिनों से उनके यहां बड़ा उपद्रव हो रहा है। उनके पिता-पितामह हर रोज स्वप्न में उन्हें कह रहे थे कि 'अरे, तुमने सब कुछ दिया, लेकिन पनबट्टा और छाता क्यों नहीं दिया? मुझे इसकी जरूरत है। जल्दी व्यवस्था करो।' कभी-कभी दिन में भी इस कथन का आभास मिलता रहता है। उनकी बातें सुनकर मिश्र जी ने दूसरे दिन ही कुछ अनुष्ठान कराकर उनकी लाई हुई सामग्रियों को ग्रहण किया। लगभग एकाध हफ्ते के बाद मिश्र जी ने हमलोगों को सूचित किया कि उक्त सज्जन का पोस्टकार्ड आया है। उन्होंने लिखा है अब सब उपद्रव शांत है। दिवंगत आत्माएं आशीर्वाद दे रही हैं। आप भी आशीर्वाद दें। यह मात्र एक उदाहरण है। कभी पंडित मोहन लाल महतो वियोगी ने बताया था कि कवि सम्राट रविन्द्र नाथ टैगोर जैसे नोबल पुरस्कार से सम्मानित पाश्चात्य सभ्यता के मर्मज्ञ मनीषी ने गया श्राद्ध 20 के दशक के अंतिम चरण में किया था। जो हो, मुझे 1945-46 की बात याद है, काशी प्रसाद जायसवाल और राहुल सांकृत्यायन जैसे युग चेता सांस्कृतिक पुरुष गया आए थे। राहुल जी तो नहीं किंतु केपी जायसवाल ने गया श्राद्ध किया था और इसके बाद गया कालेज में इन दोनों का भाषण भी हुआ था। इन्हें सुफल देने वाले पंडित वियोगी जी ही थे। संभवत: 1952-53 में स्वतंत्र भारत में बिहार के पहले राज्यपाल अन्ने साहेब को भी एक दिन में ही श्राद्ध वियोगी जी ने ही कराया था। वियोगी जी जब बिहार विधान परिषद के सदस्य मनोनीत हो गए तो वे अपना अधिकतर समय पटना में देने लगे। वियोगी जी ही की प्रेरणा से तत्कालीन जिलाधिकारी ने तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए शंकराचार्य पार्क निर्माण कराया। इसे पूर्व 1945 में डेविस यहां के कलक्टर थे। उन्होंने विष्णुपद मंदिर के पीछे डेविस पार्क बनाया। यह आस्था ही है जो लोगों से इतना कुछ करा देती है। आज भी आस्था की यह लौ अनवरत जल रही है।

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