बांधों से मूल स्वरूप खो रही है गंगा

हरिद्वार गंगा पर बन रही परियोजना का विरोध कर रहे संतों का मानना है कि गंगा की अविरलता से बड़ा कुछ नहीं।

By Edited By: Publish:Fri, 20 Apr 2012 01:07 PM (IST) Updated:Fri, 20 Apr 2012 01:07 PM (IST)
बांधों से मूल स्वरूप खो रही है गंगा

हरिद्वार गंगा पर बन रही परियोजना का विरोध कर रहे संतों का मानना है कि गंगा की अविरलता से बड़ा कुछ नहीं। उनका कहना है कि गंगा हमारी सांस्कृतिक धार्मिक धरोहर के होने के साथ ही आध्यात्मिकआस्था का शिखर बिंदु है, इसलिए इसकी कीमत पर कुछ भी स्वीकार्य नहीं। उनका मानना है कि गंगा पर बनी चुकी परियोजनाओं के कारण गंगा अपने मूल स्वरूप को खोती जा रही है। इससे लोगों की आस्था प्रभावित हो रही है, यही वजह है कि इस पर बनी या बन रही परियोजनाओं का विरोध किया जा रहा है।

गंगा रक्षा को लेकर उसमें हो रहे अवैध खनन और क्राशिंग के विरोध से शुरू हुआ आंदोलन गंगा पर बनाई जा रही बड़ी परियोजनाओं के विरोध तक पहुंच चुका है। कुछ परियोजनाओं को खत्म कर दिया, जबकि कुछ के काम को रोक दिया गया। गंगा रक्षा को लेकर हो रह इस विरोध का सीधा असर उत्तराखंड के विकास पर पड़ रहा है। इस बात को लेकर इसके विरोध में खड़े संतों के अपने तर्क हैं, उनका कहना है कि गंगा के आगे सब कुछ बेमानी है। गंगा हमारी आस्था का शिखर बिंदु है और हम उसकी अविरलता को किसी भी कीमत पर नष्ट नहीं होने देंगे। मातृसदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती का कहते हैं कि गंगा पर चल रही परियोजनाओं को अविलम्ब बंद कर देना चाहिए। गंगा करोड़ों हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है, परियोजना बनने से गंगा अपना मूल स्वरुप खोती जा रही है, हम ऐसा नहीं होंने देंगे।

अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास का कहना है कि गंगा हमारी सांस्कृतिक आत्मा है और गंगा ही आस्था का सर्वोपरि है। इसलिए हम विकास के नाम पर आस्था से खिलवाड़ नहीं होने देंगे। चेतन ज्योति आश्रम परमाध्यक्ष स्वामी ऋषिश्‌र्र्वरानंद ने गंगा को बांधने के प्रयासों का विरोध किया। कहा कि गंगा की अविरलता को बनाए रखने के लिए जल विद्युत परियोजनाओं को तत्काल बंद कर देना चाहिए। गंगा मुक्ति संग्राम के राष्ट्रीय संयोजक, आचार्य प्रमोद कृष्णम् ने भी गंगा को आस्था का केंद्र बताते हुए जल विद्युत परियोजनाओं को बंद करने वकालत की।

अविरलता के आड़े नहीं बांध- बांध न तो गंगा की अविरल धारा में कोई अड़चन हैं और इससे न ही पवित्रता पर आंच आई है। बांधों की टरबाइन से घूमकर पानी की बूंद-बूंद वापस मुख्य धारा में समा जाती है। इस प्रक्त्रिया में प्रदूषण भी संभव नहीं। थोड़ा-बहुत यह माना जा सकता है कि सुरंग आधारित बड़े बांध जरूर नदियों की धारा की रुख कुछ हद तक मोड़ देते हैं। मगर अब तो सरकार खुद बिना सुरंग वाले रन ऑफ रिवर बांधों की पैरवी कर रही है। मैं तो सुरंग आधारित बांधों को भी गंगा के लिए खतरा नहीं मानता। नदी बचाओ राग अलापने वाले लोग जान लें कि सुरंगों से घूमकर भी पानी दोबारा मेन स्ट्रीम में मिल जाता है। फिर सुरंगों में निर्धारित मात्रा में ही पानी छोड़ा जाता है। तथाकथित पर्यावरणविद् यह भी कहते रहते हैं कि सुरंग वाले बांध मछलियों को मुख्य धारा से शिफ्ट कर देंगे। इसके लिए करीब चार साल पहले केंद्र सरकार ने विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाई थी। जिसका सुझाव था कि सुरंगों के मुहाने पर जाल बना दिए जाएं। समिति की रिपोर्ट कोर्ट में भी पेश की गई थी। किसी भी तथ्य में यह साबित नहीं होता कि बांध गंगा या दूसरी किसी नदी के लिए खतरा हैं। बांध से ज्यादा खतरा तो आज गंगा नदी को सीवरेज, ठोस कूड़ा और उद्योगों के रासायनिक कचरे से है। इस तरह की 90 फीसदी से अधिक गंदगी उत्तराखंड की सीमा से बाहर गंगा में मिल रही है। गंगा का पानी आज भी ऋषिकेश तक पीने लायक और हरिद्वार में नहाने लायक है। उत्तराखंड गठन के समय अस्तित्व में आए झारखंड व छत्तीसगढ़ तक को हमारे राज्य से अधिक प्रति व्यक्ति बिजली उपलब्ध है। हमें जरूरत के मुताबिक बेधड़क बिजली परियोजनाएं बनानी चाहिए। कोई उत्तर प्रदेश या राजस्थान आदि से आकर हमें नहीं सिखा सकता कि गंगा पर बांध नहीं बनने चाहिए। पंजाब में जब बाखड़ा बांध की शुरुआत हो रही थी तो लोगों ने तमाम तरह की अटकलें लगाई थीं, तब पं. जवाहर लाल नेहरू ने बांध को हरी झंडी दिखाई थी। आज बांध की बदौलत पंजाब में खुशहाली है। मेरी सरकार से गुजारिश है कि प्रदेश में हित के अनुसार पनबिजली परियोजनाओं की दिशा में तेजी से काम करे। जिन परियोजनाओं पर बड़ी राशि खर्च हो चुकी है, उनके निर्माण में तेजी लाने के प्रयास किए जाएं।

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