Durga Stroram: चैत्र नवरात्रि में रोजाना करें दुर्गा स्तोत्र का पाठ, सभी दुखों से मिलेगा छुटकारा

Durga Stroram धार्मिक मान्यता है कि नवरात्रि के नौ दिनों में मां की पूजा-उपासना करने से साधक पर मां की कृपा बरसती है। साथ ही साधक के सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। अगर आप भी मां की कृपा पाना चाहते हैं तो नवरात्रि में रोजाना दुर्गा स्त्रोत का पाठ करें।

By Pravin KumarEdited By: Publish:Wed, 22 Mar 2023 03:32 PM (IST) Updated:Wed, 22 Mar 2023 03:32 PM (IST)
Durga Stroram: चैत्र नवरात्रि में रोजाना करें दुर्गा स्तोत्र का पाठ, सभी दुखों से मिलेगा छुटकारा
Durga Stroram: चैत्र नवरात्रि में रोजाना करें दुर्गा स्तोत्र का पाठ, सभी दुखों से मिलेगा छुटकारा

नई दिल्ली, डिजिटल डेस्क | Durga Stroram: चैत्र महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। इस साल चैत्र माह में पड़ने वाली नवरात्रि 22 मार्च से शुरू होकर 30 मार्च को समाप्त होगी। इन नौ दिनों में देवी मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा-उपासना की जाएगी। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा उपासना की जाती है। धार्मिक मान्यता है कि मां की पूजा-उपासना करने से साधक पर मां की कृपा बरसती है। साथ ही साधक के सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। अगर आप भी मां की कृपा पाना चाहते हैं, तो नवरात्रि में रोजाना पूजा के समय दुर्गा स्त्रोत का पाठ करें। दुर्गा स्त्रोत का पाठ करने से सभी दुखों से छुटकारा मिलता है। आइए, दुर्गा स्त्रोत जानते हैं-

दुर्गा स्त्रोतम

जय भगवति देवि नमो वरदे जय पापविनाशिनि बहुफलदे।

जय शुम्भनिशुम्भकपालधरे प्रणमामि तु देवि नरार्तिहरे॥1॥

जय चन्द्रदिवाकरनेत्रधरे जय पावकभूषितवक्त्रवरे।

जय भैरवदेहनिलीनपरे जय अन्धकदैत्यविशोषकरे॥2॥

जय महिषविमर्दिनि शूलकरे जय लोकसमस्तकपापहरे।

जय देवि पितामहविष्णुनते जय भास्करशक्रशिरोवनते॥3॥

जय षण्मुखसायुधईशनुते जय सागरगामिनि शम्भुनुते।

जय दु:खदरिद्रविनाशकरे जय पुत्रकलत्रविवृद्धिकरे॥4॥

जय देवि समस्तशरीरधरे जय नाकविदर्शिनि दु:खहरे।

जय व्याधिविनाशिनि मोक्ष करे जय वाञ्छितदायिनि सिद्धिवरे॥5॥

एतद्व्यासकृतं स्तोत्रं य: पठेन्नियत: शुचि:।

गृहे वा शुद्धभावेन प्रीता भगवती सदा॥6॥

शिव कृत दुर्गा स्तोत्र

रक्ष रक्ष महादेवि दुर्गे दुर्गतिनाशिनि ।

मां भक्तमनुरक्तं च शत्रुग्रस्तं कृपामयि ॥

विष्णुमाये महाभागे नारायणि सनातनि।

ब्रह्मस्वरूपे परमे नित्यानन्दस्वरूपिणि ॥

त्वं च ब्रह्मादिदेवानामम्बिके जगदम्बिके ।

त्वं साकारे च गुणतो निराकारे च निर्गुणात् ॥

मायया पुरुषस्त्वं च मायया प्रकृतिः स्वयम् ।

तयोः परं ब्रह्म परं त्वं विभर्षि सनातनि ॥

वेदानां जननी त्वं च सावित्री च परात्परा ।

वैकुण्ठे च महालक्ष्मीः सर्वसम्पत्स्वरूपिणी ॥

मर्त्यलक्ष्मीश्च क्षीरोदे कामिनी शेषशायिनः ।

स्वर्गेषु स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं राजलक्ष्मीश्च भूतले ॥

नागादिलक्ष्मीः पाताले गृहेषु गृहदेवता ।

सर्वशस्यस्वरूपा त्वं सर्वैश्वर्यविधायिनी ॥

रागाधिष्ठातृदेवी त्वं ब्रह्मणश्च सरस्वती ।

प्राणानामधिदेवी त्वं कृष्णस्य परमात्मनः ॥

गोलोके च स्वयं राधा श्रीकृष्णस्यैव वक्षसि ।

गोलोकाधिष्ठिता देवी वृन्दावनवने वने ॥

श्रीरासमण्डले रम्या वृन्दावनविनोदिनी ।

शतशृङ्गाधिदेवी त्वं नाम्ना चित्रावलीति च ॥

दक्षकन्या कुत्र कल्पे कुत्र कल्पे च शैलजा ।

देवमातादितिस्त्वं च सर्वाधारा वसुन्धरा ॥

त्वमेव गङ्गा तुलसी त्वं च स्वाहा स्वधा सती ।

त्वदंशांशांशकलया सर्वदेवादियोषितः ॥

स्त्रीरूपं चापिपुरुषं देवि त्वं च नपुंसकम् ।

वृक्षाणां वृक्षरूपा त्वं सृष्टा चाङ्कररूपिणी ॥

वह्नौ च दाहिकाशक्तिर्जले शैत्यस्वरूपिणी ।

सूर्ये तेज: स्वरूपा च प्रभारूपा च संततम् ॥

गन्धरूपा च भूमौ च आकाशे शब्दरूपिणी ।

शोभास्वरूपा चन्द्रे च पद्मसङ्गे च निश्चितम् ॥

सृष्टौ सृष्टिस्वरूपा च पालने परिपालिका ।

महामारी च संहारे जले च जलरूपिणी ॥

क्षुत्त्वं दया तवं निद्रा त्वं तृष्णा त्वं बुद्धिरूपिणी ।

तुष्टिस्त्वं चापि पुष्टिस्त्वं श्रद्धा त्वं च क्षमा स्वयम् ॥

शान्तिस्त्वं च स्वयं भ्रान्तिः कान्तिस्त्वं कीर्तिरेवच ।

लज्जा त्वं च तथा माया भुक्ति मुक्तिस्वरूपिणी ॥

सर्वशक्तिस्वरूपा त्वं सर्वसम्पत्प्रदायिनी ।

वेदेऽनिर्वचनीया त्वं त्वां न जानाति कश्चन ॥

सहस्रवक्त्रस्त्वां स्तोतुं न च शक्तः सुरेश्वरि ।

वेदा न शक्ताः को विद्वान न च शक्ता सरस्वती ॥

स्वयं विधाता शक्तो न न च विष्णु सनातनः ।

किं स्तौमि पञ्चवक्त्रेण रणत्रस्तो महेश्वरि ॥

॥ कृपां कुरु महामाये मम शत्रुक्षयं कुरु ॥

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