इस व्रत को करने से जीवन में धन-धान्य, समृद्धि की प्राप्ति होती है

षटतिला एकादशी 4 फरवरी को है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। माघ माह सनातन धर्म में नरक से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है। यह एकादशी इस बात को बताती है कि धन आदि के मुकाबले अन्नदान सबसे बड़ा दान है। मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने दाल्भ्य

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 03 Feb 2016 11:00 AM (IST) Updated:Thu, 04 Feb 2016 11:51 AM (IST)
इस व्रत को करने से जीवन में धन-धान्य, समृद्धि की प्राप्ति होती है

षटतिला एकादशी 4 फरवरी को है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को अतिप्रिय है। माघ माह सनातन धर्म में नरक से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है। यह एकादशी इस बात को बताती है कि धन आदि के मुकाबले अन्नदान सबसे बड़ा दान है। मुनिश्रेष्ठ पुलस्त्य ने दाल्भ्य के नरक से मुक्ति पाने के उपाय के विषय में बताते हुए कहा- मनुष्य को माघ माह में अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ और चुगली आदि का त्याग करना चाहिए। माघ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी व्रत किया जाता है। इस दिन तिल का विशेष महत्त्व है। पद्म पुराण के अनुसार इस दिन उपवास करके तिलों से ही स्नान, दान, तर्पण और पूजा की जाती है। इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान, प्रसाद, भोजन, दान, तर्पण आदि सभी चीजों में किया जाता है। तिल के कई प्रकार के उपयोग के कारण ही इस दिन को षटतिला एकादशी कहते हैं।

माघ माह हिन्दू धर्म में बेहद पवित्र माना जाता है। इस महीने मनुष्य को अपनी इंद्रियों को काबू में रखते हुए क्रोध, अहंकार, काम, लोभ व चुगली आदि का त्याग करना चाहिए। षटतिला एकादशी की व्रत विधि अन्य एकादशी से थोड़ा भिन्न है। माघ माह के कृष्ण पक्ष की दशमी को भगवान विष्णु का स्मरण करते हुए गोबर में तिल मिलाकर 108 उपले बनाने चाहिए। इसके बाद दशमी के दिन मात्र एक समय भोजन करना चाहिए और भगवान का स्मरण करना चाहिए। षटतिला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पद्म पुराण के अनुसार चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। उसके बाद श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधि विधान से पूजा कर अर्घ्य देना चाहिए।

एकादशी की रात को भगवान का भजन- कीर्तन करना चाहिए। एकादशी के रात्रि को 108 बार "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र से उपलों को हवन में स्वाहा करना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण की पूजा कर उसे घड़ा, छाता, जूता, तिल से भरा बर्तन व वस्त्र दान देना चाहिए। यदि संभव हो तो काली गाय दान करनी चाहिए। तिल से स्नान, उबटन, होम, तिल का दान, तिल को भोजन व पानी में मिलाकर ग्रहण करना चाहिए।

माघ मास के कृष्णपक्ष की षट्तिला एकादशी व्रत में तिल का विशेष महत्व माना गया है-

तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।

तिलदाता च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी॥ अर्थात इस दिन तिल का इस्तेमाल स्नान करने, उबटन लगाने और होम करने में करना चाहिए, साथ ही तिल मिश्रित जल पीना चाहिए, तिल दान करना चाहिए और तिल का भोजन करना चाहिए। इससे पापों का नाश होता है। तिल से भरा हुआ बर्तन दान करना बेहद शुभ माना जाता है। तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएं पैदा होंगी, उतने हजार बरसों तक दान करने वाला स्वर्ग में निवास करता है। इस एकादशी के बारे में एक कथा प्रचलित है- एक ब्राह्मणी श्री हरि में बड़ी भक्ति रखती, एकादशी व्रत करती। परंतु उसने कभी ब्राह्मण एवं देवताओं के निमित्त अन्न दान नहीं किया था। एक दिन भिक्षा लेने कपाली का रूप धारण कर भगवान पहुंचे और भिक्षा की याचना की। गुस्से में ब्राह्मणी ने मिट्टी का एक बड़ा ढेला दिया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी देह त्याग कर वैकुंठ पहुंची। लेकिन उसे वहां मिट्टी के बने मनोरम मकान ही मिले, अन्न नहीं। दुखी हो उसने श्री हरि से इसका कारण पूछा तो पता लगा कि ऐसा अन्नदान नहीं करने की वजह से है और निवारण हेतु उसे षट्तिला एकादशी का व्रत करना चाहिए। ब्राह्मणी ने व्रत किया, तब उसका मकान अन्न से भर गया। इसलिए तिल और अन्नदान बहुत जरूरी है। नारियल अथवा बिजौरे के फल से विधि-विधान से पूजा कर श्री हरि को अर्घ्य देना चाहिए। धन न हो तो सुपारी का दान करें।

जो लोग एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं, उन्हें एकादशी के दिन खान-पान एवं व्यवहार में सात्विक रहना चाहिए। एकादशी के दिन लहसुन, प्याज, मांस, मछली, अंडा आदि नहीं खाएं। झूठ, ठगी, मैथुन आदि का त्याग करें। एकादशी के दिन चावल खाना भी वर्जित है।

षटतिला एकादशी इस बार 04 फरवरी के दिन है। हमारे पुराणों में उल्लेख मिलता है कि माघ माह सनातन धर्म में नरक से मुक्ति और मोक्ष दिलाने वाला माना जाता है। षटतिला एकादशी व्रत करने से मनुष्य अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रख सकता है।

व्रत की कथा

एक बार नारद मुनि तीनों लोकों का भ्रमण कर रहे थे। नारद जी विष्णु लोक पहुंचे। जहां वह विष्णुजी को प्रणाम करके अपनी एक जिज्ञासा को बताया। वह षटतिला एकादशी की कथा को विस्तार से जानना चाहते थे। तब भगवान विष्णु ने कहा....

प्राचीन काल में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह विष्णु जी की भक्त थी। वह मेरे सभी व्रतों को नियमपूर्वक किया करती थी। एक बार उस ब्रह्मणी ने एक माह तक उपवास रखकर मेरी प्रार्थना की। व्रत के प्रभाव से उसका शरीर तो शुद्ध हो गया लेकिन वह कभी किसी भी देवता को अन्न दान नहीं करती थी। इसलिए मैनें सोचा यदि यह मृत्यु के बाद मेरे लोक आएगीं तो यहां भी अतृप्त रहेंगी। इसलिए एक दिन में स्वयं उनके घर भिक्षा लेने पहुंच गया।

उस ब्रह्मणी से जब मैंने भिक्षा मांगी तो उसने एक मिट्टी का पिंड उठाकर मेरे हाथों में रख दिया। मैं वहा पिंड लेकर अपने धाम लौट आया। समय बीतता गया, उसकी मृत्यु हो गई वह मेरे धाम आईं। जहां उस ब्राह्मणी की कुटिया थी वहां उसे एक आम का पेड़ मिला। खाली कुटिया में आम का पेड़ देख वह घबरा गईं। तब वह ब्राह्मणी मेरे पास आईं और बोलो मैनें तो किसी को अन्नदान नहीं किया फिर मेरे पास यह कैसे?

विष्णु जी थोड़ा रुके फिर बोले देवर्षि नारद, 'तब मैनें ब्राह्मणी से कहा जब देव कन्याएं आपसे मिलने आएं आप तभी दरवाजा खोलना जब वे आपको षटतिला एकादशी व्रत की विधि बताएं।' उसने ठीक ऐसा ही किया। जल्द ही उसकी कुटिया मरने के बाद भी धन-धान्य और अन्न से भर गई। इस तरह वह अपनी इंद्रियों पर हमेशा संयम भी रख सकी।

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