Surya Kavach: सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए जरूर करें सूर्य कवच का पाठ

Surya Kavach हिंदू धर्म में सृष्टि के एकमात्र प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव को ही कहा जाता है। ऐसा कहा गया है कि अगर सूर्य न हो तो धरती पर जीवन असंभव है। ऐसे में सूर्यदेव की नियमित पूजा-अर्चना करने का विधान है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 21 Feb 2021 07:30 AM (IST) Updated:Sun, 21 Feb 2021 10:00 AM (IST)
Surya Kavach: सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए जरूर करें सूर्य कवच का पाठ
Surya Kavach: सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करने के लिए जरूर करें सूर्य कवच का पाठ

Surya Kavach: हिंदू धर्म में सृष्टि के एकमात्र प्रत्यक्ष देवता सूर्यदेव को ही कहा जाता है। ऐसा कहा गया है कि अगर सूर्य न हो तो धरती पर जीवन असंभव है। ऐसे में सूर्यदेव की नियमित पूजा-अर्चना करने का विधान है। अगर पूरी विधि-विधान और श्रद्धा के साथ सूर्य की उपासना की जाए तो मनुष्य के सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। मान्यता है कि अगर हर दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाए तो व्यक्ति के सभी संकट दूर हो जाते हैं। इससे भाग्योदय भी होता है। अगर व्यक्ति सूर्यदेव की कृपा पाना चाहता है तो उसे नियमित रूप से सूर्य रक्षा कवच का पाठ करना चाहिए। इसका पाठ करने से व्यक्ति पर सूर्यदेव की कृपा हमेशा बनी रहेगी।

सूर्यकवचम:

याज्ञवल्क्य उवाच-

श्रणुष्व मुनिशार्दूल सूर्यस्य कवचं शुभम्।

शरीरारोग्दं दिव्यं सव सौभाग्य दायकम्।1।

याज्ञवल्क्यजी बोले- हे मुनि श्रेष्ठ! सूर्य के शुभ कवच को सुनो, जो शरीर को आरोग्य देने वाला है तथा संपूर्ण दिव्य सौभाग्य को देने वाला है।

देदीप्यमान मुकुटं स्फुरन्मकर कुण्डलम।

ध्यात्वा सहस्त्रं किरणं स्तोत्र मेततु दीरयेत् ।2।

चमकते हुए मुकुट वाले डोलते हुए मकराकृत कुंडल वाले हजार किरण (सूर्य) को ध्यान करके यह स्तोत्र प्रारंभ करें।

शिरों में भास्कर: पातु ललाट मेडमित दुति:।

नेत्रे दिनमणि: पातु श्रवणे वासरेश्वर: ।3।

मेरे सिर की रक्षा भास्कर करें, अपरिमित कांति वाले ललाट की रक्षा करें। नेत्र (आंखों) की रक्षा दिनमणि करें तथा कान की रक्षा दिन के ईश्वर करें।

ध्राणं धर्मं धृणि: पातु वदनं वेद वाहन:।

जिव्हां में मानद: पातु कण्ठं में सुर वन्दित: ।4।

मेरी नाक की रक्षा धर्मघृणि, मुख की रक्षा देववंदित, जिव्हा की रक्षा मानद् तथा कंठ की रक्षा देव वंदित करें।

सूर्य रक्षात्मकं स्तोत्रं लिखित्वा भूर्ज पत्रके।

दधाति य: करे तस्य वशगा: सर्व सिद्धय: ।5।

सूर्य रक्षात्मक इस स्तोत्र को भोजपत्र में लिखकर जो हाथ में धारण करता है तो संपूर्ण सिद्धियां उसके वश में होती हैं।

सुस्नातो यो जपेत् सम्यग्योधिते स्वस्थ: मानस:।

सरोग मुक्तो दीर्घायु सुखं पुष्टिं च विदंति ।6।

स्नान करके जो कोई स्वच्छ चित्त से कवच पाठ करता है वह रोग से मुक्त हो जाता है, दीर्घायु होता है, सुख तथा यश प्राप्त होता है।  

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