Hanuman Chalisa: आज मंगलवार को पूरी श्रद्धा के साथ करें हनुमान चालीसा का पाठ, सुख-सम्पत्ति की होती है प्राप्ति

Hanuman Chalisa आज मंगलवार है यानी हनुमान जी का दिन। अगर व्यक्ति हनुमान जी की आराधना करता है तो उसके ग्रहों का दोष शांत हो जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 28 Jul 2020 07:00 AM (IST) Updated:Tue, 25 Aug 2020 07:03 AM (IST)
Hanuman Chalisa: आज मंगलवार को पूरी श्रद्धा के साथ करें हनुमान चालीसा का पाठ, सुख-सम्पत्ति की होती है प्राप्ति
Hanuman Chalisa: आज मंगलवार को पूरी श्रद्धा के साथ करें हनुमान चालीसा का पाठ, सुख-सम्पत्ति की होती है प्राप्ति

Hanuman Chalisa: आज मंगलवार है यानी हनुमान जी का दिन। अगर व्यक्ति हनुमान जी की आराधना करता है तो उसके ग्रहों का दोष शांत हो जाता है। वहीं, मंगलवार का व्रत करने से सुख-सम्पत्ति, यश और संतान की प्राप्ति होती है। अगर व्रत करते समय पूरी श्रद्धा के साथ हनुमान चालीसा पाठ किया जाए तो व्यक्ति को विशेष फल की प्राप्ति होती है। हनुमान चालीसा में राम भक्त हनुमान जी के व्यक्तित्व और गुणों का वर्णन किया गया है। उनके पराक्रम से हनुमान चालीसा भरा हुआ है। साथ ही हनुमान जी की आरती भी दी गई है। 

आप हनुमान चालीसा का पाठ करके अपने पर आए हुए संकटों से लड़ने की शक्ति और मानसिक क्षमता प्राप्त कर सकते हैं। कहा जाता है कि हनुमान चालीसा का पाठ करने से हनुमान जी भक्तों के सभी संकटों को दूर कर देते हैं क्योंकि वे संकट मोचन हैं। उन्होंने प्रभु श्रीराम को संकट की घड़ी में मदद की, उनके समस्त सं​कटों को हर लिया था। ठीक उसी प्रकार बजरंगबली भक्तों के संकटों का भी नाश कर देंगे।

हनुमान जी की पूजा करने के साथ भगवान श्रीराम की भी पूजा करनी जरूरी है। भगवान राम हनुमान जी के आराध्य हैं। उनके आराध्य की पूजा के बिना हनुमान जी को प्रसन्न करना आसान नहीं है। जब भी आप हनुमान जी की पूजा करें, तो प्रभु श्रीराम की पूजा जरूर करें। राम जी की पूजा से हनुमान जी स्वयं प्रसन्न होते हैं। तो चलिए पढ़ते हैं हनुमान चलीसा।

दोहा: 

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।।

बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।

बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई: 

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।

जय कपीस तिहुं लोक उजागर।। 

रामदूत अतुलित बल धामा।

अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी।। 

कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुंडल कुंचित केसा।। 

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।

कांधे मूंज जनेऊ साजै। 

संकर सुवन केसरीनंदन।

तेज प्रताप महा जग बन्दन।। 

विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर।। 

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया।। 

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।

बिकट रूप धरि लंक जरावा।। 

भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचंद्र के काज संवारे।। 

लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।। 

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।। 

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।। 

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा।। 

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कबि कोबिद कहि सके कहां ते।। 

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राज पद दीन्हा।। 

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।

लंकेस्वर भए सब जग जाना।। 

जुग सहस्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू।। 

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।। 

दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।। 

राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे।। 

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना।। 

आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक तें कांपै।। 

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।

महाबीर जब नाम सुनावै।। 

नासै रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा।। 

संकट तें हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।। 

सब पर राम तपस्वी राजा।

तिन के काज सकल तुम साजा। 

और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै।।

 चारों जुग परताप तुम्हारा।

है परसिद्ध जगत उजियारा।। 

साधु-संत के तुम रखवारे।

असुर निकंदन राम दुलारे।। 

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस बर दीन जानकी माता।। 

राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा।। 

तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम-जनम के दुख बिसरावै।। 

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।

जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।। 

और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।। 

संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।। 

जै जै जै हनुमान गोसाईं।

कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।। 

जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई।। 

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा।। 

तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 

दोहा: 

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।। 

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