मलमास के चलते एक माह देर से पड़ रहा है वट पूर्णिमा व्रत ऐसे करें पूजा

ज्‍येष्‍ठ माह के शुक्‍ल पक्ष की पूर्णिमा को वट पूर्णिमा व्रत किया जाता है। सामान्‍य तौर पर यह पूजा वट सावित्री व्रत के 15 दिन बाद होती है, पर इस बार30 दिन बाद है।

By Molly SethEdited By: Publish:Tue, 26 Jun 2018 05:11 PM (IST) Updated:Wed, 27 Jun 2018 09:34 AM (IST)
मलमास के चलते एक माह देर से पड़ रहा है वट पूर्णिमा व्रत ऐसे करें पूजा
मलमास के चलते एक माह देर से पड़ रहा है वट पूर्णिमा व्रत ऐसे करें पूजा

कब होगी वट पूर्णिमा जाने तिथि व मुहूर्त

वट सावित्री की ही तरह की पूजा है वट पूर्णिमा व्रत और हर बार ज्‍येष्‍ठ माह में इस व्रत के 15 दिन बाद मनाई जाती है परंतु इस बार मलमास के कारण ये अवधि ज्‍यादा हो गई है और अब ये पर्व एक माह बाद हो रहा है। जहां वट सावित्री की पूजा और व्रत 29 मई को हो चुका वहीं, वट पूर्णिमा 27 जून 2018 को पड़ रही है। इस अवसर पर व्रत 27 जून को रखा जायेगा, क्‍योंकि पूर्णिमा तिथि यदि चतुर्दशी के दिन दोपहर से पहले व सूर्योदय के पश्चात आरंभ हो रही हो तो पूर्णिमा उपवास उस दिन ही रखा जाता है और पारण सूर्योदय के समय जो तिथि हो वह मानी जाती है उसके अनुसार अगले दिन होगा। इस बार ज्येष्ठ पूर्णिमा का आरंभ 27 जून को 08:12 बजे से हो रहा है जबकि समापन 28 जून 10:22 बजे होगा। कुछ पौराणिक ग्रंथों जैसे स्कंद पुराण व भविष्योत्तर पुराण के अनुसार गुजरात, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में विशेष रूप से महिलाएं ज्येष्ठ पूर्णिमा को वट सावित्री व्रत रखती हैं। 

कैसे करें पूजा 

पंडित दीपक पांडे के अनुसार ह‍िन्‍दू शास्‍त्रों में ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को ज्येष्ठ पूर्णिमा व वट पूर्णिमा कहा जाता है। शास्‍त्रों के मुताब‍िक यह द‍िन विवाहित महिलाओं के ल‍िए बेहद खास है। विवाहित व खुशहाल जीवन जीने के ल‍िए इस द‍िन वट वृक्ष की पूजा की जाती है। इस दिन की पूजा वट वृक्ष के नीचे होती है। पूजा के लिए एक बांस की टोकरी में सात तरह के अनाज रखे जाते हैं। जिसे कपड़े के दो टुकड़ों से ढंक दिया जाता है। एक दूसरी बांस की टोकरी में देवी सावित्री की प्रतिमा रखी जाती है। वट वृक्ष पर महिलायें जल चढ़ा कर कुमकुम, अक्षत चढ़ाती हैं। फिर सूत के धागे से वट वृक्ष को बांधकर उसके सात चक्‍कर लगाये जाते हैं। इसके बाद सभी महिलायें वट सावित्री की कथा सुनती हैं और चने गुड् का प्रसाद दिया जाता है। इस द‍िन प्रातः काल उठकर स्‍नान करना चाह‍िए। इसके बाद हाथ जोड़कर पूरे दिन का उपवास रखने का संकल्प लेना चाहिए। महि‍लाएं वट वृक्ष पर सुहाग का सामान भी अवश्‍य अर्पित करें।

पूज्‍य है बरगद

इस व्रत में बरगद का पूजन उनके संरक्षण का संदेश देता है। पर्यावरण विद भी बताते हैं कि वट वायुमंडल के लिए अत्यंत ही उपयोगी है। यह वृक्ष जिस स्थान पर लगा होता है उसके आसपास प्रदूषण का स्तर कम हो जाता है। बरगद की औसतन आयु 150 वर्ष से अधिक है। इसकी जड़ से लेकर पत्‍ती और फल तक से 25 तरह की औषधि बन सकती हैं। साथ ही उसका फल पंछियों के लिए सर्वोत्‍म भोज्य पदार्थ है। बरगद में ग्रहों का वास माना जाता है और बरगद का पूजन कर लिया जाए तो कुछ उपायों से जन्म पत्रिका में ग्रहदोष कम हो जाते हैं। मंगलवार को वट वृक्ष का पूजन करने से दीर्घायु हासिल होती है और वट वृक्ष पर सफेद वस्त्र, सफेद धागा लपेटने से नाड़ी दोष से मुक्ति मिलती है। गुरुवार को 108 परिक्रमा करने से मांगलिक दोष में कमी आती है और वटवृक्ष को लगाने से कुल के पितृदोष में कमी होती है। बट वृक्ष के पत्तों का बंदनवार लगाने से गृह क्लेश में कमी आती है और वट वृक्ष के फलों के खाने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। 

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