कार्तिक पूर्णिमा: आज ऐसा करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी व धनवान होता है

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक महीना होता है। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर सोलह हो जाती है। सृष्टि के आरंभ से ही एक तिथि बड़ी

By Preeti jhaEdited By: Publish:Wed, 25 Nov 2015 11:46 AM (IST) Updated:Wed, 25 Nov 2015 12:18 PM (IST)
कार्तिक पूर्णिमा: आज ऐसा करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी व धनवान होता है

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। प्रत्येक वर्ष पंद्रह पूर्णिमाएं होती हैं। पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक महीना होता है। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर सोलह हो जाती है। सृष्टि के आरंभ से ही एक तिथि बड़ी ही खास रही है। यह तिथि है कार्तिक पूर्णिमा। इसका महत्व सिर्फ वैष्णव भक्तों के लिए ही नहीं शैव भक्तों के लिए भी है। पुराणों में इस दिन स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली के रूप में थे। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा,प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों,अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे सृष्टि का निर्माण कार्य फिर से आसान हुआ।

क्यों है खास

शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का संहार कर दिया जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए। इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे 'त्रिपुरी पूर्णिमा' भी कहते हैं। इसी तरह सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए रास्ते पर चलने की सौगंध लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

इस तरह यह दिन एक नहीं बल्कि कई वजहों से खास है। इस दिन गंगा-स्नान,दीपदान,अन्य दानों आदि का विशेष महत्त्व है। इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत महत्व है,क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन कृतिका में शिव शंकर के दर्शन करने से सात जन्म तक व्यक्ति ज्ञानी और धनवान होता है। इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। विष्णु के भक्तों के लिए यह दिन इसलिए खास है क्योंकि भगवान विष्णु का पहला अवतार इसी दिन हुआ था। प्रथम अवतार में भगवान विष्णु मत्स्य यानी मछली रूप में थे। भगवान को यह अवतार वेदों की रक्षा, प्रलय के अंत तक सप्तऋषियों, अनाजों एवं राजा सत्यव्रत की रक्षा के लिए लेना पड़ा था। इससे पुनः सृष्टि का निर्माण कार्य आसान हुआ।

आज गंगा स्नान का महत्व

शास्त्रों में कार्तिक पूर्णिमा के दिन दिन गंगा स्नान का बड़ा महत्व बताया गया है। माना जाता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस दिन गंगा सहित पवित्र नदियों एवं तीर्थों में स्नान का भी महत्व है। यमुना, गोदावरी, नर्मदा, गंडक, कुरूक्षेत्र, अयोध्या, काशी में स्नान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर तीर्थ में स्नान करने का भी बड़ा महत्व है।

मान्यता है कि महाभारत युद्घ समाप्त होने के बाद अपने परिजनों के शव को देखकर युधिष्ठिर बहुत शोकाकुल हो उठे। पाण्डवों को शोक से निकालने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने गढ़ मुक्तेश्वर में आकर इसी दिन मृत आत्माओं की शांति के लिए यज्ञ और दीपादन किया। उस समय से ही कार्तिक पूर्णिमा के दिन गढ़मुक्तेश्वर में स्नान और दीपदान की परंपरा शुरू हुई। महाकाल की नगरी उज्जैन में भी पुण्य सलिला मां शिप्रा के पावन तट पर कार्तिक स्नान का बहुत महत्व है। पूरे एक माह तक भौर के तारे के उदय होने पर महिला-पुरुष तीर्थ तटों पर पहुंचते हैं और पुण्य लाभ अर्जित करते हैं । कार्तिक स्नान का जहां धार्मिक-पौराणिक महत्व तो है ही, साथ ही इस मास में होने वाली ऋतु परिवर्तन के चलते यह हमारे जीवन में भी विशेष महत्व रखता है।

धर्म शास्त्र के अनुसार बारह मास में कार्तिक का विशेष महत्व है। यह हमारे जीवन में भी विशेष महत्व रखता है। इसके कई आधार हैं, जिसमें ऋतु परिवर्तन के चक्र से लेकर मास पर्यंत सूर्य संक्रांंति का प्रभाव तथा सूर्य की तुला राशि में होने के बावजूद कार्तिक में वर्ष के श्रेष्ठ त्योहारों का होना, देव का जाग्रत होना, चातुर्मास का समापन आदि ये सब इस बात को स्पष्ट करते हैं, कि बारह माह में कार्तिक मास का हमारे जीवन में विशेष महत्व है।

पाप निवारण के लिए भी खास है यह महीना। विष्णु पुराण के अनुसार राधा दामोदर की पूजा का यह माह बताया गया है। अपने जीवन के ज्ञात-अज्ञात, पाप दोषों से निवृत होने का यह विशिष्ट माह है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि कार्तिक माह के दौरान भगवत भक्ति, ईष्ट कृपा, महालक्ष्मी की कृपा, यम के भय से मुक्ति, भाई-बहनों के संबंधों को दृढ़ता प्रदान करने की विशेष अवस्था, साथ ही आरोग्यता प्राप्त करने के लिए आंवले का पूजन करना, यह इस माह की प्रमुख उपलब्धियां हैं, जो मानव जीवन में अपना विशेष प्रभाव रखती हैं।

ऋतु चक्र के आधार पर

ऋतु चक्र के आधार पर देखें तो शरद ऋतु का आगम्य प्रभाव तथा प्रकृति में ऊर्जा का परिवर्तन तथा उस ऊर्जा से मानसिक, वैचारिक, शारीरिक परिवर्तन तथा इससे प्रेरित जीवन की आर्थिक उपलब्धि, धार्मिक-आध्यात्मिक प्राप्ति का यह प्रभावशाली माह है। धर्म शास्त्र के अनुसार इस माह में सूर्य के उदयकाल से पहले तीर्थ नदियों पर स्नान करके राधा माधव के भक्ति गीत तथा तुलसी का पूजन करने से अपने पितरों के तारने के साथ-साथ परिवार में सुख-समृद्धि भी देता है। राधा दामोदर का पूजन जीवन में अनिष्ट, समस्त बाधा का निवारण करने वाली मानी गई है। तुलसी का पूजन परिवार में स्त्रियों के सौभाग्य वृद्धि का तथा विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष का कारक माना गया है। साथ ही तुलसी की कृपा से परिवार में सुख, शांति, आरोग्यता, पति की दीर्घायु प्राप्त होती है।

दान का महत्व

शास्त्रों में दान का बड़ा महत्व बताया गया है। इनमें कार्तिक पूर्णिमा के दिन किए गए दान का अपना विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस दिन व्यक्ति जो भी दान करता है वह मृत्यु के पश्चात स्वर्ग में उसे वापस मिल जाता है। इसलिए उदारता पूर्वक जरूरतमंदों को वस्त्र,धन एवं अनाज दान करना चाहिए।

दीपों के दान

यह माह दीपों के दान का है, अधिक से अधिक दीप चैतन्य करने से कुल की सात पीढ़ी तृप्त होती है, आगे वंश वृद्धि भी होती है। कार्तिक माह में तीर्थ पर दीप दान, अंधेरे मंदिरों में दीपदान, गाय घर में दीप, घोड़े का अस्तबल, बावड़ी की चौकी, कुएं का मुहाना, सुनसान गली का अंधेरा। इन क्षेत्रों में पूरे माह दीप प्रज्जवलित करें। यदि मास में नहीं हो सके, तो धन तेरस, रूप चौदस, दीपावली एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी, एकादशी, चौदस व पूर्णिमा पर पंचमहाभूत एवं पितरों के निमित्त तीर्थ व उपयुक्त स्थानों पर दीप दान करने से जीवन में प्रतिष्ठा, पराक्रम, आर्थिक, पारिवारिक सुख की प्राप्ति होती है। वंश में वृद्धि के साथ ही अग्रजों को दीर्घायु की प्राप्ति होती है।

क्या करें इस महीने में

इस माह में विशेष यह है कि तिल्ली के तेल का उबटन लगाने से अज्ञात भय से निवृति मिलती है। घर की छत पर अपनी ऊंचाई के बराबर अष्टदल पर दीपक चैतन्य करने से अर्थात अष्टदल पर आठ व मध्य में एक दीपक चैतन्य करने से लक्ष्मी व इंद्र की ही कृपा प्राप्त होती है। इसके अलावा भी पितृ लोक से पितृ इस मास में खासकर तुला राशि की सूर्य संक्रांति विशेष मानी गई है। क्योंकि कन्या राशि से लेकर वृश्चिक तक ये तीन राशियां सूर्य की परिभ्रमण की अवस्था पितरों के लिए विशेष मानी जाती है। इसके अंतर्गत देव अग्रजों के द्वारा पितरों की पूजा होती है, तो उनकी कृपा रहती है। यदि कन्या राशि के सूर्य में या तुला राशि के सूर्य में भी पूजा नहीं हो पाती है, तो पितृ कुपित होते हैं। मदन रत्न ग्रंथ के अनुसार पितृ श्राप देकर जाते हैं, इसलिए इस दोष से बचने के लिए कार्तिक माह में पितरों के निमित्त राधा दामोदर का पूजन करने के बाद तर्पण अवश्य करना चाहिए। काले तिल का दान ताम्र कलश में भरकर अवश्य करना चाहिए। साथ ही यदि पितरों के निमित्त पंच रत्नों का दान करें तो धन कोष कभी रिक्त नहीं होता कुबेर की कृपा बनी रहती है।

इस मास आते हैं प्रमुख त्योहार

इस मास के प्रमुख त्योहारों की दृष्टि से देखें तो करवा चौथ, एकादशी, द्वादशी, धनतेरस, रूपचौदस, दीपावली, अन्नकूट, भाई दूज, गौरी तृतीया, आंवला पंचमी, आंवला नवमी, पर्यंत तीन दिवसीय आंवल उत्सव तथा देवउठनी एकादशी एवं कार्तिक की चतुर्दशी व पूर्णिमा ये विशेष महत्वपूर्ण त्योहर व व्रत इस मास में करने से संपूर्ण वर्ष के श्रेष्ठ व्रतों का फल मिल जाता है।

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