Kamada Ekadashi 2019 ये है नव संवत्सर की पहली एकादशी

चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी का व्रत करने का विधान है। इस वर्ष 15 अप्रैल सोमवार को ये पर्व मनाया जायेगा। जानें क्या है इसका महत्व

By Molly SethEdited By: Publish:Mon, 15 Apr 2019 11:27 AM (IST) Updated:Mon, 15 Apr 2019 11:27 AM (IST)
Kamada Ekadashi 2019 ये है नव संवत्सर की पहली एकादशी
Kamada Ekadashi 2019 ये है नव संवत्सर की पहली एकादशी

हिंदु नववर्ष की पहली एकादशी

15 अप्रैल 2019 को चैत्र मास में पड़ने वाली कामदा एकादशी मनाई जा रही है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कामदा एकादशी का व्रत रखने से प्रेत योनि से मुक्ति मिल सकती है। वैसे तो प्रत्‍येक माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में आने वाली दोनों एकादशियों का अपना विशेष महत्व होता है, परंतु चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की में पड़ने वाली कामदा एकादशी का महत्व इसलिए काफी होता है क्‍योंकि यह हिंदू नव संवत्सर की पहली एकादशी होती है। ऐसा माना जाता है कि यह बहुत ही फलदायी होती है इसलिये इसे फलदा एकादशी भी कहते हैं। आइये जानते हैं क्‍या है कामदा एकादशी की व्रत कथा और पूजा का तरीका। 

कामदा एकादशी की पूजा 

कामदा एकादशी की पूजा के लिए सर्वप्रथम स्नान आदि के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए। व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा के लिए भगवान विष्णु को फल, फूल, दूध, तिल और पंचामृत आदि सामग्री अपर्ण करें। पूजा के बाद इस दिन एकादशी व्रत की कथा सुनने का भी विशेष महत्व होता है। कामदा एकादशी के व्रत और पूजन के बाद अगले यानि द्वादशी के दिन ब्राह्मण भोज व दक्षिणा दे कर इस व्रत का पारण करना चाहिए। 

नीच योनि से मिलती है मुक्‍ति

बताते हैं एक बार धर्मराज युद्धिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से चैत्र शुक्ल एकादशी का महत्व, व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की। तब भगवान ने उन्‍हें ये कथा सुनाई, जिसके अनुसार रत्नपुर नाम का एक नगर था जिसमें पुण्डरिक नामक राजा राज्य किया करते थे। यहां पर ललित और ललिता नामक गंधर्व पति पत्नी भी रहते थे। दोनो एक दूसरे से बहुत प्रेम करते थे।, एक दिन राजा पुण्डरिक की सभा में नृत्य का आयोजन चल रहा था जिसमें गंधर्व ललित भी गा रहा था। अचानक उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आयी और उसका थोड़ा सा सुर बिगड़ गया। कर्कोट नाम के नाग ने उसकी इस गलती को भांप लिया और उसके मन में झांक कर इस गलती का कारण जान राजा पुण्डरिक को बता दिया। पुण्डरिक यह जानकर बहुत क्रोधित हुए और ललित को श्राप देकर एक विशालकाय राक्षस बना दिया। अपने पति की इस हालत को देखकर ललिता को बहुत दुख हुआ। वह उसे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने का मार्ग खोजने लगी। इसी प्रयास में एक दिन वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जा पंहुची। ऋषि ने ललिता से पूछा कि इस बियाबान जंगल में तुम क्या कर रही हो और यहां किसलिये आयी हो। तब ललिता ने अपना सारा कष्‍ट महर्षि को बताया। इस पर ऋषि ने कहा कि चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि आने वाली है। इस व्रत को कामदा एकादशी कहा जाता है तुम इसका विधिपूर्वक पालन करके अपने पति को उसका पुण्य देना, तब उसे राक्षस जीवन से मुक्ति मिल सकती है। ललिता ने वैसा ही किया, व्रत का पुण्य मिलते ही ललित  पुन: अपने सामान्य रूप में लौट आया, और दोनो को समस्‍त सुख भोगने बाद स्‍वर्ग की प्राप्‍ति हुई। 

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