दीपावली पर विशेष होती है काली पूजा

कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली के पर्व पर ही मां लक्ष्मी की ही तरह काली पूजा भी होती है। इस दिन को माता काली का प्राकट्य दिवस भी माना जाता है।

By Molly SethEdited By: Publish:Thu, 01 Nov 2018 03:31 PM (IST) Updated:Thu, 01 Nov 2018 03:31 PM (IST)
दीपावली पर विशेष होती है काली पूजा
दीपावली पर विशेष होती है काली पूजा

कब होती है काली पूजा 

अंधकार पर प्रकाश के विजय का त्योहार दिवाली भारत में पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष यह 7 नवंबर को मनाया जाएगा। इस दिन विशेष रूप से माता लक्ष्मी और श्रीगणेश की पूजा का विधान है।इसी दिन इन दोनों के साथ मां काली का भी पूजन किया जाता है। काली पूजा, महानिशा पूजा अथवा श्यामा पूजा पूर्वी भारत, मुख्यतः बंगाल, में प्रचलित हिंदू पर्व है। काली को समर्पित यह पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को ही मनाया जाता है, अर्थात उसी दिन जिस दिन पूरे भारत में दीपावली का पर्व और लक्ष्मी पूजा मनायी जाती है। यह मान्यता है कि इसी दिन देवी काली ६४,००० योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं।

कौन हैं काली माता

दिवाली में हम लक्ष्मी मां के साथ-साथ काली मां की भी पूजा करते है। काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं। वो असल में सुन्दरी रूप भगवती दुर्गा का काला और डरावना रूप हैं, जिसकी उत्पत्ति राक्षसों को मारने के लिये हुई थी। उनको खासतौर पर बंगाल और असम में पूजा जाता है। काली की व्युत्पत्ति काल अथवा समय वो माना जाता है जो सबको ग्रास कर लेता है। काली को देवी दुर्गा की दस महाविद्याओं मे से एक भी माना जाता है। सनातन शक्ति जगदम्बा ही महामाया कही गई हैं। उनकी माया से मोहित होने के कारण ब्रह्मादि समस्त देवता भी परम तत्व को नहीं जान पाते। वे सत्त्व, रज और तम इन तीनों गुणों का आश्रय लेकर समयानुसार सम्पूर्ण विश्व का सृजन, पालन और संहार किया करती हैं। दश महाविद्या मे प्रथम शक्ति काली मानी गर्इ हैं। काली मां के महाकाली, शमशान काली, गुहय काली, भद्र काली, काम काली, दक्षिण काली जैसे अनेक रूप हैं। सती ने जब शिव को रोकने हेतु अपने रुप का विस्तार किया उसमें काली प्रथम थीं इसी कारण वे आद्या शक्ति भी कहलाती हैं।

महाकाली की पूजन विधि आैर मंत्र

सबसे पहले गणपति का ध्यान करते हुए समस्त देवी-देवताओं को नमस्कार करें। उसके पश्चात नीचे दिए मंत्रों के साथ काली मां की पूजा करें। 1. श्री मन्महागणाधिपतये नम:। 2. लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:। 3. उमामहेश्वरा्भ्यां नम:। 4. वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:। 5. शचीपुरन्दराभ्यां नम:। 6. मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नम:। 7. इष्टदेवताभ्यो नम:। 8. कुलदेवताभ्यो नम:। 9. ग्रामदेवताभ्यो नम:। 10.वास्तुदेवताभ्यो नम:। 11. स्थानदेवताभ्यो नम:। 12. सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:। 13. सर्वेभ्यो ब्राह्यणेभ्यो नम:। इसके साथ ही ऊं भूर्भुव स्व:, तत् सवितुर्वरेण्यम्, भर्गो देवस्य धीमहि, धियो यो न: प्रचोयदयात्।। का भी उच्चारण करें। बाद में पुष्प अर्पण करते समय इन मंत्रों का उच्चारण करें। 1. ऊं गं गणपतये नम:। 2. आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नम:। 3. ऊं शिवादिपंचदेवताभ्यो नम:। 4. ऊं इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम:। 5. ऊं मत्स्यादिदशावतारेभ्यो नम:। 6. ऊं प्रजापतये नम:। 7. ऊं नमो नारायणाय नम:। 8. ऊं सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:। 9. श्री गुरुवे नम:। 10. ऊं ब्रह्माणेभ्यो नम:। अंत में आचमन करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें। 1. ऊं केशवाय नम:। 2. ऊं माधवाय नम:। 3. ऊं गोविन्दाय नम:। 4. ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु;। 5. ऊं ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके नम:।

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