मां महेश्वरी के नाम से बना महासर धाम

इस वर्ष भी चैत्रमास की शुक्ल पक्ष सप्तमी को मां दुर्गा का विशाल मेला गांव महासर में लगा। जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खण्डहर में तबदील हो चुके इस मंदिर का पुनर्निर्माण महासर मंदिर निर्माण मण्डल के तत्वावधान में किया गया है। मंदिर के सौंदर्यकरण एवं अन्य कार्याें का दायित्व एक स्वै'िछक

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 30 Mar 2015 10:00 AM (IST) Updated:Mon, 30 Mar 2015 10:10 AM (IST)
मां महेश्वरी के नाम से बना महासर धाम

मंडी। इस वर्ष भी चैत्रमास की शुक्ल पक्ष सप्तमी को मां दुर्गा का विशाल मेला गांव महासर में लगा। जीर्ण-शीर्ण अवस्था में खण्डहर में तबदील हो चुके इस मंदिर का पुनर्निर्माण महासर मंदिर निर्माण मण्डल के तत्वावधान में किया गया है। मंदिर के सौंदर्यकरण एवं अन्य कार्याें का दायित्व एक स्वै'िछक संस्था के हाथों में है।

यह मंदिर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूर अटेली कनीना मार्ग पर अवस्थित महासर गांव में है। मां दुर्गा का यह मंदिर लाखों भक्तों की आस्था का केन्द्र तो है ही, साथ ही महेन्द्रगढ़ जिले एवं उसके आसपास के लोग इनको कुल देवी के रूप में पूजा करते हैं। नवजात शिशुओं के प्रथम बार बाल यहीं उतारे जाते है वहीं नवविवाहित युगल यहां पहुंचकर मां का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यह दुर्गा मां की सिद्ध एवं जागृत शक्तिपीठ है।

मेले के समय मां के दर्शन के लिए पहुंचे प्रवासी भारतीय एवं दूरस्थ भक्तगणों को कोई असुविधा न हो सके, इसके लिए श्री संतोष पंसारी चैरिटबल ट्रस्ट मुम्बई के तत्वावधान में यहां 60 कमरों की एक धर्मशाला का निर्माण करवाया गया। महासर मंदिर निर्माण मण्डल एवं ट्रस्ट के प्रधान श्रीधर गुप्ता ने बताया कि धर्मशाला के सभी कमरे एयरकंडीशंड हैं। पीने के लिए आरओ का पानी हर समय उपलब्ध रहता है। 24 घंटे बिजली के लिए यहां जनरेटर की सुविधा तथा निश्शुल्क भोजन की व्यवस्था है।

नवनिर्मित मंदिर में उच्चकोटि के संगमरमर का प्रयोग किया गया है। मंदिर के गर्भगृह तथा मण्डप को विस्तार देकर इसकी दीवारों, छत और स्तम्भों को भव्य कलात्मकता प्रदान की गई है। मंदिर के ऊपर एक ऊंची तथा कलात्मक मीनार का निर्माण किया गया है जो भक्तगणों को नतमस्तक कर देती है। इसके ऊपर रखा कलश सूर्य के प्रकाश में अपनी उज्ज्वलता फैलाएगा।

वर्ष में दो बार नवरात्र की सप्तमी को यहां विशाल मेले का आयोजन होता हैं। मेले में अवयवस्था न फैले इसके लिए पुलिस प्रशासन और मां में आस्था रखने वाले भक्तगण उत्साह से अपने कर्तव्य को अंजाम देते है। मेले के अवसर पर मां के दर्शन पाने वाले सभी भक्तों की मनोवांछित इच्छाएं पूरी होती हैं। दुर्गा मां का यह मंदिर श्रद्धा एवं विश्वास का संगम तो है ही इसका इतिहास भी भक्तों के दिलों को श्रद्धा एवं भक्ति से भर देता है। माता के परम भक्त एवं भामाशाह किशन ङ्क्षसहल ने बताया के माता के मंदिर का इतिहास भी रोचकता एवं जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला है। उन्होंने पूर्वजों से सुना है और इसकी इतिहासकार भी पुष्टि करते हैं कि राजस्थान के किसी नगर का निवासी एक व्यापारी पदयात्रा करके नगरकोट पहुंचता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। एक रात स्वप्न में दर्शन देकर माता ने बताया कि उसके भाग्य में पुत्र नहीं है लेकिन उसकी श्रद्धा एवं भक्ति को देखकर माता ने उसे एक पुत्र का वरदान देते हुए कहा कि उसे उस पुत्र को मंदिर में सेवा के लिए समर्पित करना पड़ेगा। ऐसा ही हुआ वह पुत्र भी पिता के साथ हर बार दर्शनार्थ नगरकोट जाता था।

कालांतर में वृद्ध होने के कारण वह अपनी यात्रा के दौरान थकान दूर करने के लिए एक वट वृक्ष के नीचे ठहर गया। वहीं दो साधु पहले से विश्राम कर रहे थे। उस वृद्ध ने मन ही मन कहा कि मां अब पहाड़ों पर पहुंचने की शक्ति उसमें नहीं है। तभी शक्ति ने स्वर ध्वनि करते हुए कहा कि अब तुम्हें पर्वतों पर पहुंचने की आवश्यकता नहीं है। मैं इसी स्थान पर शक्ति रूप में स्थित रहूंगी। कहा जाता है कि भक्तों ने उस स्थान की खुदाई करवाई तो वहां पृथ्वी के अंदर एक ङ्क्षपडी प्रकट हुई। महासर गांव में स्थित यही ङ्क्षपडी मां महेश्वरी की है और उन्हीं के नाम पर इस गांव का नाम महासर पड़ा।

माता के भक्त एवं मण्डल के सचिव संतोष पंसारी ने बताया कि मेले की पूर्व संध्या पर मां महेश्वरी की प्रथम निशान पदयात्रा अटेली मंडी से शुरू होती जिसमें सैकड़ों भक्तों का कारवां मंदिर की तरफ प्रस्थान करता।

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