Maa Jwala Devi: इस मंदिर के गर्भ में जल रही हैं 9 ज्वालाएं, जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

Maa Jwala Devi ज्वालादेवी के बारे में हम सभी ने सुना होगा। मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर भी है। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर को जोता वाली मंदिर भी कहा जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Tue, 03 Nov 2020 10:00 AM (IST) Updated:Tue, 03 Nov 2020 10:49 AM (IST)
Maa Jwala Devi: इस मंदिर के गर्भ में जल रही हैं 9 ज्वालाएं, जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
Maa Jwala Devi: इस मंदिर के गर्भ में जल रही हैं 9 ज्वालाएं, जानें इसका धार्मिक और वैज्ञानिक कारण

Maa Jwala Devi: ज्वालादेवी के बारे में हम सभी ने सुना होगा। मां भगवती के 51 शक्तिपीठों में से एक ज्वालामुखी मंदिर भी है। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। इस मंदिर को जोता वाली मंदिर भी कहा जाता है। कुछ पौराणिक कथाओं के अनुसार, ज्वालादेवी शक्तिपीठ पर माता सती की जीभ गिरी थी। मां इस मंदिर में ज्वाला के रूप में विराजमान हैं। सिर्फ मां ही नहीं भगवान शिव भी इस मंदिर में उन्मत भैरव के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। इस मंदिर में पृथ्वी के गर्भ से निकल रहीं 9 ज्वालों को पूजा जाता है। लेकिन ये ज्वाला कहां से निकल रही हैं यह कोई नहीं जानता है। जागरण अध्यात्म के इस लेख में हम आपको इसके धार्मिक या वैज्ञानिक मन्यताओं की जानकारी दे रहे हैं।

जानें मां की 9 ज्वालाओं के बारे में:

इस मंदिर में बिना तेल और बाती के 9 ज्वालाएं जल रही हैं। ये मां के 9 स्वरूपों का प्रतीक माना जाता है। इनमें से सबसे बड़ी ज्वाला को ज्वाला माता कहा जाता है। बाकी की 8 ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, मां विध्यवासिनी, मां चण्डी देवी, मां महालक्ष्मी, मां हिंगलाज माता, देवी मां सरस्वती, मां अम्बिका देवी एवं मां अंजी देवी हैं।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, मां ज्वाला देवी के एक बहुत बड़े भक्त थे जिनका नाम गोरखनाथ था। वह हमेशा कि मां की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन उन्हें भूख लगी और उन्हें मां से कहा कि वो भीक्षा मांगकर आते हैं तब तक वो पानी गर्म करके रखें। लेकिन गोरखनाथ कभी वापस ही नहीं आए। ऐसे में माना जाता है कि मां ने जो ज्वाला जलाई थी वो आज तक वैसे ही जल रही है। वहीं, कुछ ही दूरी पर बने एक कुंड के पानी से भाप निकलती दिखाई देती है। गोरखनाथ की डिब्बी के नाम से यह कुंड जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह ज्वाला तब तक जलती रहेगी जब तक कलयुग के अंत में गोरखनाथ लौटकर नहीं आते हैं।

वैज्ञानिकों ने भी लगाया था ज्वाला का पता:

ऐसा कहा जाता है कि आजादी के बाद भी कई वैज्ञानिकों ने इस ज्वाला का पता लगाने की कोशिश की थी। सभी भूगर्भ वैज्ञानिक, ज्वाला की जड़ तक पहुंचने के लिए तंबू गाड़कर बैठ गए थे। लेकि उन्हें ज्वाला कहां से आ रही है इसकी जानकारी नहीं मिली। ऐसे में ज्वाला का रहस्य आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है।

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