जानें-वैष्णव माता के मंदिर की कथा और महत्व

अगली सुबह पंडित श्रीधर ने स्वप्न की जानकारी अपने परिवारजनों को दी। इसके बाद पंडित श्रीधर ने शुभ तिथि पर आसपास के भक्तों को न्यौता देकर भंडारे का आयोजन किया। हालांकि अन्न आभाव के चलते पंडित श्रीधर व्याकुल थे। दोपहर के समय भंडारे हेतु सभी लोग आश्रम में उपस्थित थे।

By Umanath SinghEdited By: Publish:Fri, 31 Dec 2021 08:15 PM (IST) Updated:Sat, 01 Jan 2022 09:37 AM (IST)
जानें-वैष्णव माता के मंदिर की कथा और महत्व
जानें-वैष्णव माता के मंदिर की कथा और महत्व

हर वर्ष चार नवरात्रि मनाई जाती है। प्रथम माघ महीने में मनाई जाती है, जिसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है। दूसरी चैत्र महीने में मनाई जाती है, जिसे चैत्र नवरात्रि कहा जाता है। तीसरी आषाढ़ महीने में मनाई जाती है, जिसे गुप्त नवरात्रि ही कहा जाता है चौथी और अंतिम अश्विन महीने में मनाई जाती है, जिसे अश्विन नवरात्रि कहा जाता है। गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की देवी की पूजा-उपासना की जाती है। इन दोनों नवरात्रि में तंत्र जादू-टोना सीखने वाले साधक कठिन भक्ति कर माता को प्रसन्न करते हैं। वहीं, चैत्र और अश्विन नवरात्रि में सामान्य भक्त माता की पूजा करते हैं। इस दौरान श्रद्धालु देश के प्रमुख देवी मंदिरों की धार्मिक यात्रा करते हैं। खासकर जम्मु कश्मीर में स्थित वैष्णो देवी मंदिर में नवरात्रि के दिनों में विशेष धूम रहती है। बड़ी संख्या में श्रद्धालु नवरात्रि के दिनों में माता के दर्शन कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। ऐसी मान्यता है कि मां के दर से कोई भक्त खाली हाथ नहीं लौटता है। सामान्य दिनों में भी माता के दरबार में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन हेतु आते हैं। आइए, वैष्णव माता के मंदिर की कथा जानते हैं-

कथा

इतिहासकारों की मानें तो वैष्णव देवी माता मंदिर का निर्माण 700 वर्ष पहले पंडित श्रीधर ने करवाया था। पंडित श्रीधर माता के भक्त थे और वैष्णो माता की कठिन भक्ति करते थे। हालांकि, पंडित बेहद गरीब थे। एक बार की बात है। जब पंडित श्रीधर रात्रि में विश्राम कर रहे थे, तो सपने में माता वैष्णो आकर बोली-हे वत्स! तुम माता वैष्णो के निमित्त एक भंडारा करो। यह कह माता अंतर्ध्यान हो गई।

अगली सुबह पंडित श्रीधर ने स्वप्न की जानकारी अपने परिवारजनों को दी। इसके बाद पंडित श्रीधर ने शुभ तिथि पर आसपास के भक्तों को न्यौता देकर भंडारे का आयोजन किया। हालांकि, अन्न आभाव के चलते पंडित श्रीधर व्याकुल थे। दोपहर के समय में जब भंडारे हेतु सभी लोग आश्रम में उपस्थित थे, तो भक्तों की संख्या को देखकर पंडित श्रीधर बेहद चिंतित हो उठे। तभी उन्हें आश्रम में एक बालिका भंडारे में शामिल थी, जो भक्तों को प्रसाद वितरित कर रही थी।

जब भक्तों ने बालिका का नाम पूछा, तो बालिका ने वैष्णवी बताया। वैष्णवी भंडारा समापन तक दिखी, लेकिन उसके बाद अंतर्ध्यान हो गई। जब पंडित श्रीधर वैष्णवी से मिलने को व्याकुल हो उठे, तो उन्होंने भक्तों से बालिका के बारे में पूछा-कहां गई वैष्णवी? उस समय किसी ने वैष्णवी की जानकारी नहीं दी।

पंडित श्रीधर अगले कुछ दिनों तक वैष्णवी को ढूंढते रहें, लेकिन वैष्णवी नहीं मिली। एक रात जब पंडित श्रीधर विश्राम कर रहे थे, तो स्वप्न में आकर वैष्णवी ने पंडित श्रीधर को बताया कि वह माता वैष्णवी है। साथ ही माता ने पंडित श्रीधर को त्रिकूट पर्वत पर गुफा की जानकारी दी। तत्कालीन समय में पंडित श्रीधर ने गुफा ज्ञात कर माता वैष्णो की पूजा उपासना की। उस समय से माता की पूजा अनवरत जारी है। वर्तमान समय में यह गुफा वैष्णो मंदिर कहलाता है।

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