जयपुर के तीन चौराहों पर हैं तीन देवियों के स्थान जो कहलाते हैं चौपड़

आपने प्राचीन चौपड़ के खेल के बारे में सुना होगा पर क्या आपने देवी की चौपड़ के बारे में सुना है। जयपुर में देवी के ये स्थान क्यों कहलाते हैं चौपड़।

By Molly SethEdited By: Publish:Thu, 14 Mar 2019 04:00 PM (IST) Updated:Fri, 15 Mar 2019 09:34 AM (IST)
जयपुर के तीन चौराहों पर हैं तीन देवियों के स्थान जो कहलाते हैं चौपड़
जयपुर के तीन चौराहों पर हैं तीन देवियों के स्थान जो कहलाते हैं चौपड़

जहां त्रिदेवियां करती हैं वास

अपनी मन्‍नत पूरी करने के लिये लोग मंदिरों में घंटो लाइन लगा के खड़े रहते है, पर जयपुर में ये नजारा तीन चौराहों पर नजर आता है। वास्तव में जयपुर में तीन मशहूर आैर प्राचीन चौराहे हैं जहां त्रिदेवियों का जाग्रत स्थान है, इन्हें चौपड़ कहा जाता है। मान्यता है कि यहां पूजा करने से हर मुराद पूरी हो जाती है। इन चौपड़ों पर मां दुर्गा, महालक्ष्मी और देवी सरस्वती के यंत्र स्थापित किए गए हैं। मां सरस्वती का यंत्र छोटी चौपड़ पर स्थापित कर पुरानी बस्ती में सरस्वती के पुजारी विद्वानों को बसाया गया, जो यहां पूजा अर्चना करते थे। रामगंज चौपड़ पर मां दुर्गा का यंत्र स्थापित कर उस क्षेत्र में योद्धाओं को बसाया, गया जो उस यंत्र की रक्षा कर सकें। तीसरे स्थान बड़ा चौपड़ में महालक्ष्मी का यंत्र स्थापित कर देवी लक्ष्मी का शिखरबंध मंदिर बनवाया गया। इसका एक नाम माणक चौक भी रखा गया। इस स्थान पर माता पार्वती के साथ नंदी पर सवार भगवान शिव का दुर्लभ विग्रह है।

मंदिर की रक्षा करते हैं गरुड़ देव

जयपुर की स्थापना के समय महाराजा जयसिंह ने एक मीणा सरदार भवानी राम मीणा को आमेर रियासत के शश्यावास कुंडा सहित 12 गांवों का जागीरदार बनाया। इतना ही नहीं उन्‍होंने मीणा सरदार को जयगढ़ के खजाने की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपी। भवानीराम की पुत्री बीचू बाई ने माणक चौक चौपड़ पर बने लक्ष्मीनारायण मंदिर को बनवाने में सहयोग दिया। उसके बाद माता मक्ष्मी का विशेष अनुष्ठान करने के बाद मंदिर में विराजमान किया गया। मंदिर में स्थापित प्रतिमा एक ही शिला में बनी है। इसमें भगवान लक्ष्मीनारायण के वाम भाग में महालक्ष्मी जी विराजमान हैं। मंदिर की रक्षा के लिए गरुड़ देवता को नियुक्त किया गया। उनकी सहायता करने के लिए वहां जय विजय नामक द्वारपाल भी खड़े हैं।

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