त्रिचूर पूरम के दिन केरल के इस मंदिर में होती है विशेष पूजा

आज दक्षिण भारत के केरल राज्‍य के त्रिचूर में त्रिचूर पूरम नाम का पर्व मनाया जाता है जिसकी विशेष पूजा यहां के वडक्कुन्नाथन मंदिर में आयोजित होती है।

By Molly SethEdited By: Publish:Thu, 26 Apr 2018 09:40 AM (IST) Updated:Thu, 26 Apr 2018 09:41 AM (IST)
त्रिचूर पूरम के दिन केरल के इस मंदिर में होती है विशेष पूजा
त्रिचूर पूरम के दिन केरल के इस मंदिर में होती है विशेष पूजा

विशेष पर्व का विशेष मंदिर

त्रिचूर पूरम केरल में हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह भव्य रंगीन उत्सव केरल के सभी भाग से लोगों को आकर्षित करता है। यह उत्सव थेक्किनाडु मैदान पर्वत पर स्थित वडक्कुन्नाथन मंदिर में, नगर के बीचोंबीच आयोजित होता है। यह मलयाली मेडम मास की पूरम तिथि को मनाया जाता है। वडकुनाथन मंदिर केरल का एक प्राचीन शिव मंदिर है। इसे 'टेंकैलाशम' तथा 'ऋषभाचलम्' भी कहते हैं। 

आदि शंकराचार्य के जन्‍म से है संबंध

त्रिचूर एक खूबसूरत प्राचीन शहर और केरल की सांस्कृतिक राजधानी है। भूतपूर्व कोचिन रियासत के महाराजा राम वर्मा 9 वां, शक्तन तम्बुरान, 1790 – 1805 के समय त्रिचूर ही रियासत की राजधानी भी रही है। नगर के मध्य में ही 9 एकड़ में फैला ऊंचे परकोटे वाला एक विशाल शिव मंदिर है जिसे वडकुनाथन कहते हैं। वडकुनाथन से तात्पर्य “उत्तर के नाथ” है। प्राचीन साहित्य में इस बात का उल्लेख मिलता है कि इस मन्दिर में आदि शंकराचार्य के माता पिता ने संतान प्राप्ति के लिए अनुष्ठान किये थे। एक और रोचक तथ्‍य भी है, यहां आदि शंकराचार्य की तथाकथित समाधि भी बनी है और उसके साथ एक छोटा सा मंदिर जिसमे उनकी मूर्ति भी स्थापित है। उल्लेखनीय है कि आदि शंकराचार्य की एक समाधि केदारनाथ मंदिर के पीछे भी है। वडकुनाथन के इस मंदिर के चारों तरफ 60 एकड में फैला घना सागौन का जंगल था जिसे शक्तन तम्बुरान ने कटवा कर लगभग 3 किलोमीटर गोल सडक का निर्माण करवाया था। यही आज का स्वराज राउंड है। किसी विलिचपाड (बैगा) के यह कह कर प्रतिरोध किये जाने पर कि ये जंगल तो शिव जी की जटाएं हैं, उस राजा ने अपने ही हाथ से उस बैगे का सर काट दिया था। इसी मंदिर के बाहर अप्रैल/मई में बैशाख माह की द्वादशी को पूरम नाम का उत्सव होता है जिसे देखने विदेशियों सहित लाखों लोग आते हैं।

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