200 साल पुुरानी अनूठी पंरपरा, सेहरी व इफ्तारी के लिए किले से चलती है तोप

नगर में रमजान के महीने में सेहरी और इफ्तारी के लिए किले से तोप चलने की अनूठी पंरपरा 200 साल से भी ज्यादा समय से कायम है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Tue, 07 Jun 2016 11:37 AM (IST) Updated:Wed, 08 Jun 2016 11:02 AM (IST)
200 साल पुुरानी अनूठी पंरपरा, सेहरी व इफ्तारी के लिए किले से चलती है तोप

रायसेन नगर में रमजान के महीने में सेहरी और इफ्तारी के लिए किले से तोप चलने की अनूठी पंरपरा 200 साल से भी ज्यादा समय से कायम है। चांद दिखने के साथ ही किले से कई बार तोप चलने के साथ यहां रमजान का आगाज होता है फिर 30 दिन तक सुबह सेहरी और शाम को इफ्तारी में तोप चलने का सिलसिला बना रहता है। देश में केवल रायसेन ही ऐसी जगह है जहां तोप की गूंज का इंतजार रोजेदार करते है।

रायसेन मुख्यालय पर स्थित प्राचीन दुर्ग की प्राचीर से चलने वाली यह तोप पहले के जमाने की तुलना में अब छोटी उपयोग में लाई जाती है ताकि किले को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। इसे सिप्पा तोप कहा जाता है और बकायदा इसके लिए एक माह का अस्थायी लाइसेंस डीएम द्वारा मुस्लिम त्योहार कमेटी को दिया जाता है। 1 माह तक सुबह शाम तोप चलने में लगभग 50 हजार का व्यय आता है। जिसमें नगरपालिका द्वारा 7000, शहर काजी द्वारा 5000 और बाकी चंदे के रूप में जमा किया जाता है। -18 वी सदी में शुरू हुई परंपरा यूं तो सबने तोप चलने की बाते इतिहास में ही सुनी है लेकिन रायसेन का हर बाशिंदा इसे रमजान माह में चलते हुए देखता है।

शहर काजी बताते हैं कि यह अनूठी परंपरा 18 वी सदी में रियासत की बेगम ने शुरू करवाई थी जो अब तक कायम है। वे बताते हैं कि देश में केवल रायसेन है जहां किले से तोप की गूंज का इंतजार रोजेदार करते हैं। उनका मानना है कि सदियों बाद भी यह परंपरा कायम रहना इस शहर के लिए फख्र की बात है। -आसपास के 30 गांव तक जाती है तोप की गूंज तोप चलाने की जिम्मेदारी मुस्लिम त्योहार कमेटी ने किश्वर उर्फ पप्पू को सौंप रखी है जो बकायदा तोप चलने के आधे घंटे पहले नियत स्थाप पर पहुंच जाते है। पप्पू के परिवार की तीन पीढ़ियां इस काम को पहले अंजाम दे चुकी है और अब वे हर रमजान में पूरी शिद्दत के साथ अपना यह दायित्व निभाते हैं। -एक बार में लगता है 500 ग्राम बारूद पप्पू बताते हैं कि एक बार गोला दागने में करीब 500 ग्राम बारूद लगता है जिसे पूरी सुरक्षा के साथ वे चलाने का प्रयास करते है। उन्हें टीन वाली मस्जिद से निर्धारित समय पर लाइट का इशारा मिलता है और वे तोप से गोला दाग देते हैं।

उनका मानना है कि सुबह सेहरी में शहर के साथ-साथ आसापास के 30 किमी तक के दायरे के करीब 30 गांवों तक इसकी गूंज जाती है शाम को इफ्तारी में गांवों तक इसकी गूंज शोर-शराबे ट्रैफिक के कारण कुछ कम हो जाती है। पप्पू इसे बहुत ही बड़ी जवाबदारी मानते हैं उनका कहना है कि इबादत कर रहे रोजेदार को तोप की गूंज का इंतजार रहता है और इसे चलाने का दायित्व पीढ़ियों से उनका परिवार निभाता आ रहा है।

सेहरी में बजते हैं बाजे तोप चलने के साथ साथ यहां सेहरी से पूर्व बाजे बजाने की परंपरा भी देखने को मिलती है। सुबह सेहरी के समय से दो घंटे पहले से किले से बाजे बजाने का काम बंशकार परिवार के लोग करते है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि बाजे की आवाज से रोजेदार उठकर बाजे बंद होने तक सेहरी की तैयारी कर लें। रोजेदार शाम को तोप की गूंज के बाद इफ्तारी करते हैं।

ईद का चांद दिखने पर कई बार चलती है तोप पहले रमजान का और फिर बाद में ईद का चांद दिखने पर तोप को कई बार चलाया जाता है ताकि लोगों को यह पता चल जाए कि रमजान कल से शुरू होना है या कल ईद है। सोमवार को चांद दिखने के साथ ही किले से तोप चलने की शुरूआत हो गई है। देर रात तक तोप चलने से लोगों को इसकी जानकारी मिल जाती है।

मस्जिदों में तैयारियां पूरी रमजान के में मस्जिदों में रोजेदार तरावियां पढ़ने जाते हैं इसको लेकर शहर की सभी मस्जिदों में साफ-सफाई के साथ अन्य तैयारियां कर ली गई है। रमजान के महीने में प्रशासन सहित हिंदू धर्मावलंबियों का सहयोग भी मुस्लिम त्योहार कमेटी को मिलता है। यहां स्थित प्रसिद्घ पीर फतेह उल्लाह साहब की दरगाह शरीफ पर भी रमजान में आने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हो जाता है।

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