भैरव के द्वारे गूंजें जयकारे

रेवाड़ी जिले के खोल खंड में कुंड से लगभग तीन किलोमीटर दूर पहाडि़यों से घिरे रमणीक और ऐतिहासिक गांव अहरोद में स्थित प्राचीन बाबा भैरव मंदिर आसपास ही नहीं बल्कि दूर-दराज से आने वाले श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र भी बना हुआ है। यहां आने वाले भक्त बाबा भैरव की प्रतिमा पर गैरू चढ़ाकर व जोत जलाकर पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर परिसर में ही स्थित अन्य देवी-देवताओं के भव्य मंदिरों के कारण श्रद्धालुओं का मन यहीं पर रम जाने को करता है।

By Edited By: Publish:Sat, 02 Mar 2013 03:43 PM (IST) Updated:Sat, 02 Mar 2013 03:43 PM (IST)
भैरव के द्वारे गूंजें जयकारे

रेवाड़ी जिले के खोल खंड में कुंड से करीब तीन किलोमीटर दूर पहाडि़यों से घिरे रमणीक व ऐतिहासिक गांव अहरोद में एक नहीं बल्कि लगभग तेरह मंदिर बने हुए हैं। यूं तो इन मंदिरों में से कुछ मंदिरों को कुछ समय पहले ही निर्मित किया गया है लेकिन इनमें सबसे पुराना मंदिर प्राचीन बाबा भैरव मंदिर है जहां पूजा-अर्चना करने के लिए श्रद्धालुओं की कतारें लगी रहती हैं।

अहरोद गांव के उत्तर में स्थित पहाड़ी के नीचे लगभग 450 वर्ष पुराने इस बाबा भैरव मंदिर के प्रवेश द्वार पर सुसज्जित हनुमान, दुर्गा और काली मां की भव्य प्रतिमाएं हर श्रद्धालु को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही मंदिर परिसर में स्थित आधा दर्जन अन्य मंदिरों की शोभा हर श्रद्धालु को अभिभूत कर देती है तथा पूरा परिसर भक्तों द्वारा लगाए जाने वाले जयकारों से गूंज उठता है। बाबा भैरव मंदिर के मुख्य द्वार से अंदर प्रवेश करते ही शिव प्रतिमा के दर्शन होते हैं जिसके पास ही विशाल शिवालय बना हुआ है। इस शिवालय में शिव परिवार की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है। शिवालय में सोमवार के दिन शिवभक्तों का तांता लगा रहता है। शिवालय से थोड़ा आगे प्राचीन बाबा भैरव मंदिर है जहां बाबा भैरव की मढी बनी हुई है और श्रद्धालु बाबा भैरव की प्रतिमा पर गैरू चढ़ाकर व अपने माथे पर तिलक लगाकर पूजा करते हैं। श्रद्धालुओं का मानना है कि मंदिर में गैरू चढ़ाकर मन्नत मांगने से बाबा भैरव तुरंत मनोकामना पूरी करते हैं। भैरव मंदिर की ऊंचाई यहां स्थित दूसरे मंदिरों से कम है और तीन तरफ से खुला होने के कारण भक्त सीधे इस मंदिर तक पहुंचकर जोत जलाकर पूजा-अर्चना करते हैं। इसी मंदिर के सामने सुंदर सत्संग भवन भी बना हुआ है। बाबा भैरव मंदिर परिसर में ही पूर्व दिशा में भगवान गणेश का मंदिर है जहां गणेश की चित्ताकर्षक प्रतिमा लगी हुई है। गणेश मंदिर के साथ ही भव्य राम दरबार लगाया गया है जहां राम, सीता, हनुमान व लक्ष्मण आदि की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।

बाबा भैरव मंदिर परिसर में ही बने श्रीकृष्ण मंदिर में भगवान कृष्ण की प्रतिमा हर श्रद्धालु को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण मंदिर में कृष्णभक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इस दिन यहां आसपास ही नहीं बल्कि दूर-दराज से असंख्य श्रद्धालु आकर मन्नत मांगते हैं और प्रसाद ग्रहण करते हैं। श्रीकृष्ण मंदिर के पास ही दुर्गा मंदिर और काली मां मंदिर स्थित हैं। दुर्गा मंदिर के द्वार पर ही दुर्गा की भव्य प्रतिमा लगी हुई है और वहीं पर काली मां की प्रतिमा भी लगी हुई है। नवरात्रों में यहां अनेक श्रद्धालु दुर्गा पूजा करने आते हैं। इस प्रकार प्राचीन बाबा भैरव मंदिर परिसर में बने विभिन्न देवी-देवताओं के लगभग आधा दर्जन भव्य मंदिर भक्तों का मन मोह लेते हैं। भैरव मंदिर परिसर के बाहर कुछ ही दूरी पर स्थित प्राचीन हनुमान मंदिर में भी हर मंगलवार को भक्तों का तांता लगा रहता है।

अहरोद से छह किलोमीटर दूर स्थित बासदूदा में भी बाबा भैरव के मंदिर स्थापित हैं जहां वर्ष में दो बार मेले लगते हैं। यहां अखंड जोत जलती रहती है तथा समय-समय पर भजन-कीर्तन होता रहता है। जो श्रद्धालु बासदूदा के मंदिर जाता है वह अहरोद के मंदिर भी आता है। बुजुर्गो का मानना है कि अहरोद बहुत ही प्राचीन और ऐतिहासिक गांव है और यह गांव अनेक बार उजड़कर बसा है। आसपास के पाड़ला, भैरू का बास, जमालपुर, ऊंचा नीचा, जोरावता की ढाणी, बोहका की ढाणी व कोलाना की ढाणी गांव भी अहरोद के कई बार उजड़ने और बसने के फलस्वरूप ही अस्तित्व में आए हैं।

मात्र छह किलोमीटर के फासले पर बसे अहरोद व बासदूदा गांवों में बाबा भैरव के मंदिरों तथा अहरोद गांव में स्थित प्राचीन बाबा भैरव मंदिर परिसर में ही स्थित अनेक मंदिरों में श्रद्धा से आकर विभिन्न देवी-देवताओं का आशीर्वाद पाना यहां आने वाले भक्तों के लिए साक्षात दिव्य दर्शन करने जैसा है।

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