जब सलाखों के पीछे से भाई ने कलाई बढ़ाई तो बहनें रो पड़ीं

जयपुर सेंट्रल जेल में 2 हजार से ज्यादा बहनें अपने भाइयों की कलाई पर प्यार बांधने के लिए जुटीं। सबकी आंखें झलक रहीं थीं, मानो कह रहीं हों कि वो दिन कब आएगा जब भाई सलाखों से आजाद होगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 30 Aug 2015 01:26 AM (IST) Updated:Sun, 30 Aug 2015 01:33 AM (IST)
जब सलाखों के पीछे से भाई ने कलाई बढ़ाई तो बहनें रो पड़ीं

जयपुर। जयपुर सेंट्रल जेल में 2 हजार से ज्यादा बहनें अपने भाइयों की कलाई पर प्यार बांधने के लिए जुटीं। सबकी आंखें झलक रहीं थीं, मानो कह रहीं हों कि वो दिन कब आएगा जब भाई सलाखों से आजाद होगा और जेल की दीवारों में दफन हो रही खुशियां घर देहरी पर पांव रखेंगी।

वे सीख भी दे रही थीं।

भइया बुराई में क्या रखा है। ये बुराई ही है कि आज तुम सलाखों के पीछे से अपनी कलाई बढ़ा रहे हो। मैंने सपने में भी ये दिन नहीं देखा था। प्यारे भइया मेरी ईश्वर से मिन्नत है कि आप जल्दी आजाद हो जाओ। मैं आज राखी बांधकर तुमसे एक वादा लूंगी। जेल से बाहर आने के बाद फिर कभी जुर्म की दुनिया की ओर भूलकर भी मत देखना। आंखों में आंसू छलछला रहे थे। होठों पर दुआएं थीं। जयपुर सेंट्रल जेल में रक्षा बंधन का यह त्यौहार सभी के आंखों को नम कर रहा था।

सुबह 10 बजे से शुरू होने वाले रक्षाबंधन के तहत करीब 2 हजार से ज्यादा बहने जेल परिसर में इकट्ठा हो गईं। एक ओर पर्ची की लाइनें लगीं थी तो दूसरी ओर माइक पर नाम पुकारा जा रहा था। बहनें हाथों में थाली लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहीं थीं। जेल प्रशासन ने उनके इंतजार के लिए बाकायदा टैंट लगवा रखा था।

हर पांच मिनट पर अनाउंस होता था। बहनें अपनी बारी का इंतजार कृपया धूप में खड़ी होकर न करें। टेंट में कुर्सी पर बैठकर अपनी बारी का इंतजार करें।

जैसे ही नाम पुकारा जाता, बहनें वो थाली, जिसमें रोली, चंदन, राखी, मिठाई, नारियल और दीपक रखा हुआ था, को लेकर जेल में प्रवेश कर रहीं थीं। एक बार में 30 बहनों को अंदर प्रवेश मिल रहा था। राखी बांधने के साथ भाई का कुशलक्षेम पूछने के लिए हर बहन को करीब 5 मिनट का वक्त दिया जा रहा था।

नौ साल से सलाखों के इस पार से बांध रही राखी

टोंक की रहने वाली 75 वर्षीय राम प्यारी पिछले 8 साल से अपने भाई को जेल में आकर राखी बांध रहीं हैं। यह नवां साल है। भाई सलाखों के पीछे से हाथ बढ़ाता है और बहन उसकी कलाई पकड़ कर रो पड़ती है। कहती है न जाने कब वो दिन देखने को मिलेगा जब तुम कैद से बाहर आओगे।

अब मेरी उम्र हो चली है। मैं बीमार रहती हूं। कहीं इस दिन को देखने से पहले मेरी सांसें थम न जाएं। फिर प्यार से अपने भाई के गालों पर हाथ फेरती राम प्यारी कहती है। किसी बात की चिंता मत करना। जब तक जिंदा रहूंगी तब तक तुम्हें राखी बांधने जरूर आउंगी। भाई बहने के आंसू पोंछते हुए कहता ढाढ़स देता है- तू घबरा मत मैं जल्दी ही यहां से रिहा हो जाऊंगा। उधर मुलाकात का समय खत्म होने के चलते राम प्यारी के भाई को सुरक्षाकर्मी वहां से हटाकर बैरक की ओर ले जाने लगते हैं। फिर राम प्यारी टुकुर-टुकुर उसे देखती है।

भाई से लिया वादा

जयपुर की रहने वाली 22 वर्षीय निशा ने अपने भाई की कलाई पर राखी बांधकर उससे खुद की सुरक्षा का नहीं बल्कि भाई के उज्जवल भविष्य का वादा लिया। कहा भइया आप मुझसे बड़े हो। बचपन से आप मुझे सही राह दिखाते थे, लेकिन आज आपकी ये छोटी बहना आपसे विनती करती है- यहां से वापस आना तो बुरे काम, वैसे रास्तों को भूल जाना। आप घर में मम्मी-पापा के साथ खुश रहोगे और हर साल मैं घर पर ही आपको राखी बांधती रहूंगी तो समझ लेना मुझे मेरी राखी का नेग मिल गया।

रो पड़ी रूबीना

राखी पर भाई से मिलने आईं रूबीना उसकी 2 साल की बच्ची रेशमा को भी साथ लेकर आई थी। भाई ने एक साथ दो खुशियां देखी तो फूट-फूट कर रोने लगा। बाकी कैदी साथी उसे समझाने लगे- मत रो भाई नहीं तो बेटी को बुरा लगेगा।

बहना उदास हो जाएगी। इधर भाई के आंखों में आंसू देखकर रूबीना का रो-रो कर बुरा हाल होने लगा। जो भी महिला उसे समझाती वो भी उसे रोता हुआ देखकर खुद रो पड़ती थी। जैसे-तैसे उसके मुलाकात का वक्त खत्म हुआ और वो रेशमा के साथ न जाने कितने अरमानों को आंसुओं में छुपाए हुए जेल से बाहर आ गई।

नारियल भी फोड़कर देखा

जयपुर केंद्रीय कारागार में हो चुकीं अनेक वारदातों को मद्देनजर रखते हुए सुरक्षाकर्मियों ने बहनों की मिठाइयां, बैग और नारियल को फोड़कर चेक किया। हालांकि ये करते हुए उनका दिल दुख रहा था, लेकिन उनकी मजबूरी थी। उनका मानना था कि कई बार इसी माहौल में जेल में कैदी तक ऐसी सामग्री भेज दी जाती है, जो समस्या बन जाती है।

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