किन्नर अखाडे को मान्यता मिलना ऐतिहासिक घटना है

किन्नर अखाडे, जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सोमवार को कुम्भ के आयोजन, इतिहास और इसमें होने वाली गतिविधियों पर विस्तृत चर्चा के दौरान यह बात सामने आई।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 28 Jan 2019 01:12 PM (IST) Updated:Mon, 28 Jan 2019 01:12 PM (IST)
किन्नर अखाडे को मान्यता मिलना ऐतिहासिक घटना है
किन्नर अखाडे को मान्यता मिलना ऐतिहासिक घटना है

जयपुर, जेएनएन। किन्नर अखाडे के रूप में कुम्भ में 200 साल बाद एक नया अखाडा जुडा है और यह एक ऐतिहासिक घटना है, क्योंकि इससे ने सिर्फ कुम्भ में स्नान के कार्यक्रम को बदला है, बल्कि इसके जरिए ट्रांसजेंडर समुदाय को धार्मिक मान्यता भी मिली है।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में सोमवार को कुम्भ के आयोजन, इतिहास और इसमें होने वाली गतिविधियों पर विस्तृत चर्चा के दौरान यह बात सामने आई। इस चर्चा में प्रोफेसर हरीश त्रिवेदी के साथ 2013, 2015 और 2016 के कुम्भों का डाक्युमेंटेशन करने वाली देशना मेहता और संजना नॉनदकर, कुम्भ पर रिसर्च कर रही इटली की डेनियाला बेबी अकुआं भारत में दस वर्ष से साधु जीवन व्यतीत कर रहे अमेरिकी नागरिक जेम्स मेंलिग्सन शमिल थे।

चर्चा में हरीश त्रिवेदी ने कहाा कि कुम्भ 60 के दशक तक साधुओं, खासकर नागा बाबाओं के फोटो तक खींचना मना था। बाबा कैमरा देखते ही नाराज हो जाते थे। यह उनका अपमान भी माना जाता था। आज जब हम इलाहबाद कुम्भ की ओर देखते है तो पाते हैं कि हर तरफ कैमरे है। नागा साधु भी स्वयं पोज देकर अपने फोटो खींचने देते हैं। इलाहबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किये जाने के विवाद पर हरीश त्रिवेदी ने कहा कि यह फिजूल की चर्चा है। इलाहाबाद नाम करीब पांच सौ वर्ष पहले अकबर के साम्राज्य में रखा गया है जबकि प्रयाग अति प्राचीन नाम है जिसका उल्लेख वाल्मीकि और तुलसीदास की रामकथाओं में मिलता है।

चर्चा में भाग लेते हुए कुम्भ के विजुअल डॉक्यूमेंशन प्रोजेक्ट से जुड़ी डिजायनर देशना मेहता ने बताया कि उन्होनें आठ वॉल्यूम में पिछले तीन कुम्भ का डॉक्यूमेंशन किया है। देशना ने बताया कि इस प्रोजेक्ट के लिए उन्होनें कुम्भ के मौखिक इतिहास, साधु-संतों से वार्तालाप, कुम्भ यात्रियों और कुम्भ क्षेत्र के स्थानीय लोगों से बातचीत, कुम्भ आयोजन से जुड़े कार्मिकों और अधिकारियों के साक्षात्कार सहित लगभग दो हजार आठ सौ लोगों के अनुभव का संकलन किया है।

जब उन्होनें कुंभ में ट्रैफिक व्यवस्था के प्रमुख से बात कर यह जानना चाहा कि करीब दो करोड़ लोगों की स्नान की व्यवस्था को संभालना कैसे संभव हो पाता है तो उन्होनें बताया कि हमारा एक ही मंत्र होता है आगे बढ़ते जाओ, रुको नहीं चाहे कभी कभी कोई भीड़ गलत रास्ता पकड़ लेती है तब भी हम उन्हें रोकते नहीं है बल्कि जल्दी से उनका मूवमेंट पूरा कर उन्हें आगे बढ़ने के निर्देश देते है क्योंकि इतनी बड़ी भीड़ में रुकने का मतलब है भगदड और हम हर हाल में इससे बचने का प्रयास करते हैं। इतने सारे लोगों के लिए शौचालय सुविधा पर उन्होनें कहा कि बड़ी संख्या में अस्थायी शौचालय बनाना हमारे लिए चुनौती नहीं होता बल्कि लोगों को उनके उपयोग के लिए तैयार करना एक बड़ी चुनौती बन जाती है। देशना का कहना है कि जीवन के महत्व को समझने के लिए कुम्भ से बड़ा कोई दूसरा स्थान नहीं हो सकता। यह लोगों के विश्वास और धर्म का मेला है।

डेनियल बेबी लेकुआ ने बताया कि कुम्भ में एक साथ लाखों लोगों के बहते रेले को स्नान करते देखना एक अनूठा अनुभव है। कुम्भ में हिस्सा लेकर हमने जाना है कि साधुओं की सामाजिक भूमिका कुम्भ में कितनी बड़ी और महत्वपूर्ण है। दरअसल साधुओं के अखाड़े कुम्भ की आत्मा है। प्रायः समाज से कटकर अपनी ही दुनिया में मस्त रहने वाले साधु समाज का कुम्भ के दौरान आम लोगों से मिलना, बात करना, प्रवचन और बेहतर जीवन की सलाहें देना, भंडारों के माध्यम से अखाड़े में हर समय लोगों के लिए भोजन और नाश्ता उपलब्ध कराना और लोगों की मेजबानी करना इनकी सामाजिक सेवा भावना का महान उदाहरण है और यह सिर्फ कुंभ में ही दिखाई देता है। दूसरी और अखाड़ों के शक्ति प्रदर्शन, एक-दूसरे से श्रेष्ठ बताने की प्रतिस्पर्धा व राजनीति भी कुम्भ में दिखती है। इलाहबाद कुम्भ मेले में पहली बार लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में किन्नर अखाड़े को जूना अखाड़े की तरफ से मान्यता दिया जाना कुंभ के दो सौ साल के इतिहास की एक बड़ी घटना है।

भारत में रहकर गत दस साल से साधु जीवन व्यतीत के रहे अमेरिका निवासी जेम्स मेलिंसन ने बताया कि साधु बन जाने पर जहां एक परिवार छूटता है वहीं एक नया परिवार से आप जुड़ जाते हैं। कुल मिलाकर साधुओं की एक बड़ी फेमिली होती है। इस परिवार का एक साथ कुंभ में जाना, स्न्नान करना, नाचना, गाना , कीर्तन करना अद्भुत अनुभव है। उनहोेंने कहा कि मै दस वर्ष से अपने गुरू के साथ हर कुम्भ मे जा रहा हूं।

पणिनी की व्याकरण बहुत वैज्ञानिक- लिटरेचर फेस्टिवल में ही लेखक विक्रम चंद्रा ने पाणिनी की व्याकरण पर विस्तृत चर्चा की और कहा कि यह व्याकरण तीन हजार से ज्यादा नियमों पर आधारित है। इसे अध्टध्यायी नाम दिया गया है। उन्होने बहुत ही वैज्ञानिक ढंग से इसकी रचना की है। इसमें हर चीज इतनी परफेक्ट है कि जैसे कोई मशीन हो। उन्होने पाणिनी की व्याकरण के विभ्न्नि प्रयोग भी बताए।. 

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