राजस्थान में बंद हुआ मीसा बंदियों की पेंशन और सुविधाएं, महापौर व सभापति का चुनाव अब पार्षद करेंगे

राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने आपातकाल के दौरान जेल गए मीसा और डीआरआई बंदियों की पेंशन को बंद करने का निर्णय लिया है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Mon, 14 Oct 2019 03:24 PM (IST) Updated:Mon, 14 Oct 2019 03:24 PM (IST)
राजस्थान में बंद हुआ मीसा बंदियों की पेंशन और सुविधाएं, महापौर व सभापति का चुनाव अब पार्षद करेंगे
राजस्थान में बंद हुआ मीसा बंदियों की पेंशन और सुविधाएं, महापौर व सभापति का चुनाव अब पार्षद करेंगे

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने आपातकाल के दौरान जेल गए मीसा और डीआरआई बंदियों की पेंशन को बंद करने का निर्णय लिया है। अब तक प्रदेश में 1120 मीसा और डीआरआई बंदियों को 20 हजार रुपये मासिक पेंशन, रोड़वेज बस में नि:शुल्क यात्रा और नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा मिल रही थी। इसके साथ ही गहलोत सरकार ने प्रदेश की सभी स्थानीय निकायों में महापौर एवं सभापति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से कराने का निर्णय किया है। इसके तहत अब महापौर एवं सभापति का चुनाव आम जनता के बजाय पार्षद करेंगे। उधर भाजपा ने गहलोत सरकार के इन दोनों फैसलों की आलोचना की है।

वसुंधरा सरकार ने लोकतंत्र सेनानी दिया था नाम

प्रदेश की पिछली वसुंधरा राजे सरकार ने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की सलाह पर आपातकाल के दौरान जेल गए 1120 मीसा और डीआरआई बंदियों को लोकतंत्र सेनानी नाम दिया था। वसुंधरा राजे सरकार ने इन 1120 लोगों को 20 हजार रुपये मासिक पेंशन, यात्रा भत्ता एवं नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा देने का निर्णय लिया था। मीसा और डीआरआई बंदियों को पेंशन और अन्य सुविधाएं देने के लिए वसुंधरा राजे सरकार ने लोकतंत्र रक्षक सम्मान निधि योजना लागू की थी। अशोक गहलोत सरकार ने सत्ता में आते ही इस योजना को बंद करने पर विचार करने की बात कही थी।

सोमवार को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस योजना को बंद करने का निर्णय लिया गया। प्रदेश के संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने बताया कि तत्काल प्रभाव से मीसा और डीआरआई बंदियों को मिलने वाली पेंशन बंद कर दी गई है। उन्होंने बताया कि यह प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर बेवजह का भार थी। इससे बचने वाले पैसे का उपयोग राज्य के विकास में हो सकेंगे।

मोदी लहर और अनुच्छेद-370 के कारण चुनावी वादे से मुकरी कांग्रेस

देश में चल रही पीएम नरेंद्र मोदी की लहर और जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद-370 समाप्त किए जाने के बाद से कांग्रेस को स्थानीय निकाय एवं पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव में नुकसान होने का भय सता रहा है। कांग्रेस को लगता है कि लोकसभा चुनाव के बाद से अब तक देश में पीएम मोदी के पक्ष में माहौल होने के साथ ही अनुच्छेद-370 समाप्त किए जाने का भाजपा को राजनीतिक लाभ हो रहा है। इसी के चलते गहलोत मंत्रिमंडल ने सोमवार को प्रदेश में 7 नगर निगम के महापौर, 34 नगर पालिकाओं और 164 नगरपरिषदों के सभापतियों के चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से कराने का निर्णय लिया है।

अब तक इन पदों के लिए आम जनता सीधे वोट देती थी, लेकिन अब पार्षद ही महापौर एवं सभापति का चुनाव करेंगे। गहलोत सरकार ने यह निर्णय करने से पहले पार्टी विधायकों एवं जिला कांग्रेस अध्यक्षों की राय मांगी थी। इनमें से अधिकांश ने अप्रत्यक्ष चुनाव कराने में पार्टी को लाभ होने की बात कही। इस पर गहलोत मंत्रिमंडल ने सोमवार को निर्णय कर लिया।

उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपने जन घोषणा-पत्र में महापौर एवं सभापति का चुनाव अप्रत्यक्ष कराने का वादा किया था। लेकिन आम जनता का रूख देखते हुए कांग्रेस सरकार अपने वादे से बदल गई। मंत्रिमंडल की बैठक में 14 मामलों पर चर्चा हुई।

भाजपा ने जताई नाराजगी

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया ने मीसा और डीआरआई बंदियों की पेंशन बंद करने पर नाराजगी जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री गहलोत तानाशाही की राजनीति करते है। आपातकाल के दौरान इन बंदियों ने लोकतंत्र की रक्षा की। पूनिया ने कहा कि गहलोत सरकार ने मीसा और डीआरआई बंदियों की पेंशन बंद करके ओछी मानसिकता का परिचय दिया है। महापौर एवं सभापति का चुनाव अप्रत्यक्ष कराने के निर्णय पर आपत्ति जताते हुए पूनिया ने कहा कि कांग्रेस जनघोषणा-पत्र से मुकर गई है। उन्होंने कहा कि देश में जो राष्ट्रवाद की लहर चल रही है, उससे कांग्रेस परेशान है। 

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