गहलोत और पायलट खेमा एक बार फिर आमने-सामने, कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचा मामला

राजस्थान में कांग्रेस की उलझन कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमा एक बार फिर आमने-सामने हो गया।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 18 Oct 2019 01:34 PM (IST) Updated:Fri, 18 Oct 2019 01:34 PM (IST)
गहलोत और पायलट खेमा एक बार फिर आमने-सामने, कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचा मामला
गहलोत और पायलट खेमा एक बार फिर आमने-सामने, कांग्रेस आलाकमान तक पहुंचा मामला

जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। राजस्थान में कांग्रेस की उलझन कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट खेमा एक बार फिर आमने-सामने हो गया। पायलट समर्थक दो मंत्रियों ने मंत्रिमंडल के निर्णय पर ही यह कहते हुए सवालिया निशान लगा दिए कि कैबिनेट की बैठक में हम भी थे, लेकिन उस बैठक में स्थानीय निकाय के महापौर एवं सभापति का चुनाव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष कराने को लेकर बस चर्चा हुई थी, कोई निर्णय नहीं हुआ था।

कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री भरत सिंह ने भी शुक्रवार को मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर महापौर एवं सभापति का चुनाव नये पैटर्न से कराने पर नाराजगी जताई है। वहीं मुख्यमंत्री के खास स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल का कहना है कि सभी से चर्चा करके यह निर्णय लिया गया है।

उन्होंने कहा कि 9 माह पहले ही इसकी जानकारी सार्वजनिक कर दी गई थी, लेकिन लोगों ने नियम नहीं पढ़े, इस कारण अब चर्चा कर रहे है। दरअसल, अशोक गहलोत सरकार ने दो दिन पहले ही तय किया था कि नगर निगम एवं नगर पालिकाओं में महापौर और सभापति का चुनाव प्रत्यक्ष ना होकर अप्रत्यक्ष होगा अर्थात पार्षद चुनेंगे। इसके साथ ही देश में पहली बार राजस्थान सरकार ने हाईब्रिड मॉडल लागू करते हुए यह भी तय किया था कि महापौर और सभापति बनने के लिए पार्षद का चुनाव लड़ना आवश्यक नहीं होगा। इससे कांग्रेस सरकार को सत्ता का लाभ मिलने की उम्मीद है।

कांग्रेस का मानना है कि वह अपने बड़े नेताओं को सभापति और महापौर बना सकेगी, वहीं सत्ता में होने के कारण निर्दलीय पार्षद उसके साथ आ जाएंगे। पायलट समर्थकों ने इस मामले को लेकर आलाकमान तक अपनी बात पहुंचाई है। पायलट समर्थक मंत्रियों और विधायकों का कहना है कि सरकार के इस निर्णय से कार्यकर्ताओं में नाराजगी है। इन मंत्रियों और विधायकों ने प्रदेश प्रभारी राष्ट्रीय महासचिव अविनाश पांडे एवं सचिव विवेक बंसल से बात की है। सूत्रों के अनुसार अगले एक-दो दिन में खुद पायलट इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात कर सकते है।

मंत्रियों से सीएम नाराज

पायलट समर्थक खाघ मंत्री रमेश मीणा ने दावा किया कि मंत्रिमंडल की बैठक में इस मामले को लेकर चर्चा हुई थी, कोई अधिकारिक निर्णय नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि इस निर्णय पर पुनर्विचार होना चाहिए। कांग्रेस के जो कार्यकर्ता पार्षद का चुनाव लड़ना चाहते हैं उनमें असमंजस पैदा हो गया है कि कौन महापौर एवं सभापति बनेगा। वहीं परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने कहा कि महापौर एवं सभापति के चुनाव को लेकर कैबिनेट की बैठक में कब हो गया मुझे जानकारी नहीं है। बैठक में तो मैं भी मौजूद था। उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से कार्यकर्ता नाराज है। कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक और पूर्व मंत्री भरत सिंह ने भी मुख्यमंत्री और स्वायत्त शासन मंत्री को पत्र लिखकर आपत्ति जताई है।

उन्होंने कहा कि निकाय अध्यक्ष जनता की ओर से ही चुना जाने वाला होना चाहिए। किसी भी तरह से थोपा गया अध्यक्ष प्रजातंत्र की मूल भावना के खिलाफ होगा। इससे जनता का अहित होगा। उधर मंत्रियों की बयानबाजी पर सीएम गहलोत ने नाराजगी जताई है। सूत्रों के अनुसार गहलोत ने अपनी नाराजगी मंत्रियों तक पहुंचा दी है।

सीएम के खास धारीवाल ने दी सफाई

विवाद बढ़ने पर स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल ने मीडिया से कहा कि साल,2009 में जो नियम थे,वो ही इस बार है। उस समय निकाय प्रमुख का चुनाव सीधा हुआ था,जिसमें कोई भी पात्र मतदाता खड़ा हो सकता था। इस बार निकाय प्रमुखों का चुनाव पार्षद करेंगे और जो मतदाता होगा वह प्रमुख बन सकेगा। पिछली भाजपा सरकार ने साल, 2008 के नियमों में बदलाव किया था। अब हमारी सरकार ने एक बार फिर 2009 के नियम लागू कर दिए है।

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