हरियाली बचाने का जुनून- एक हजार से अधिक पेड़ों को सुरक्षित जगह पर कर चुके हैं शिफ्ट

हरियाली बचाने के जुनून, डॉ. चौधरी का कहना है किअभी तक वह एक हजार से अधिक पेड़ों को सुरक्षित जगह पर शिफ्ट कर चुके हैं।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Thu, 24 Jan 2019 08:50 AM (IST) Updated:Thu, 24 Jan 2019 08:50 AM (IST)
हरियाली बचाने का जुनून- एक हजार से अधिक पेड़ों को सुरक्षित जगह पर कर चुके हैं शिफ्ट
हरियाली बचाने का जुनून- एक हजार से अधिक पेड़ों को सुरक्षित जगह पर कर चुके हैं शिफ्ट

उदयपुर, सुभाष शर्मा। हरियाली को बचाने के जुनून का दूसरा नाम डॉ. बीएल चौधरी है।सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय से बॉटनी और बॉयोडीजल में पीएचडी करने के बाद उन्होंने अपना जीवन पर्यावरण के नाम कर दिया। वे नहीं चाहते कि किसी पेड़ की बलि व्यर्थ में चली जाए।

इसीलिए उन्होंने पेड़ों को शिफ्ट करने का काम शुरू कर दिया। इनमें कई पेड़ तो पचास से सौ साल पुराने हैं। अब तो नगर निगम और प्रशासन भी उनकी मदद लेने लगा है। डॉ. चौधरी ने इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए नेशनल हाई वे अथोरिटी को भी प्रस्ताव भेजा है ताकि हाई वे निर्माण में आड़े आने वाले पेड़ों को दूसरी जगह लगाया जा सके। उनका यह प्रस्ताव मंजूर होता है तो हजारों पेड़ों को कटने से बचाया जा सकेगा।

डॉ. चौधरी का कहना है कि एक पेड़ को लगाने में लंबी मेहनत, बड़े होने में सालों लगते हैं, लेकिन हम अपने स्वार्थ या फिर विकास के नाम पर उन्हें चंद मिनटों में काट देते हैं। इसलिए उन्होंने यह बीड़ा उठाया है कि वह ऐसे पेड़ों को बचाने के लिए काम करेंगे। अभी तक वह एक हजार से अधिक पेड़ों को सुरक्षित जगह पर शिफ्ट कर चुके हैं। अब तो वह चाहे कितने भी साल पुराना पेड़ क्यों ना हो, वे उसे बड़ी आसानी से एस्केवेटर की मदद से

एक जगह से दूसरी जगह शिफ्ट कर देते हैं।

शुरू में थोड़ी कठिनाई आई। इसके लिए लोगों को समझाना पड़ा और जब काम करके दिखाया और पेड़ फिर से लहलहाने लगे तो लोगों ने एक-दूसरे को इसकी जानकारी देना शुरू किया। अब वह जहां से भी पेड़ों को शिफ्ट करने के लिए फोन आता है वहां जाकर पेड़ों को बचाने के लिए काम करते हैं। यह काम वह उनके लिए आय का स्रोत नहीं, बल्कि उनका शौक है। इसके लिए उन्हें खुद अपनी जेब से खर्चा करना पड़ता है। बाद में कई लोगों ने इस काम में उन्हें मदद भी की। अब उनकी मंशा है कि हाईवे अथोरिटी यदि उनके प्रस्ताव को मंजूर कर ले तो वह हाई वे निर्माण के दौरान काटे जाने वाले पेड़ों को बचाने में मदद कर पाएंगे।

चौधरी ने बताया कि बड़े पेड़ों की शिफ्टिंग के लिए डालियां काटकर पहले उनकी कटाई-छंटाई कर ली जाती है। इससे उसका वजन कम हो जाता है और शिफ्टिंग में परेशानी भी नहीं होती। पेड़ की उम्र के हिसाब से उसकी जड़ को ढाई से तीन फीट तक गहराई तक खोदा जाता है। जड़ों में पानी के साथ रसायनों का घोल का छिडक़ाव करने के बाद उसे फिर से लगा दिया जाता है। रसायनों का छिडक़ाव इसलिए किया जाता है कि ताकि शिफ्टिंग के दौरान भी उसके पोषक तत्व मिलते रहे और वह जिंदा रहे।

रतनजोत की खेती कर उसके तेल से चलाते हैं स्वयं के वाहन मोहन लाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय से बॉटनी और बॉयोडीजल विषय से अलग-अलग पीएचडी करने वाले डॉ. चौधरी ने अपने खेत में जेट्रोफा यानी रतनजोत की खेती कर रखी है। इससे निकलने वाले तेल से वह अपने घर के दोपहिया और चारपहिया वाहनों को चलाते हैं। भारत में ही नहीं, उन्होंने दक्षिण अफ्रिका, इथोपिया, लंदन, तंजानिया, जांबिया और यूरोप के कई देशों में सरकारी और निजी आमंत्रण पर जेट्रोफा की खेती वहां जाकर सिखाई। 

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