राजस्थान में आर्थिक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण की राह खुली

Rajasthan reservation,संसद में हुए 124वें संविधान संशोधन के बाद राजस्थान में आर्थिक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलने की राह खुल गई है।

By Preeti jhaEdited By: Publish:Fri, 11 Jan 2019 02:38 PM (IST) Updated:Fri, 11 Jan 2019 02:38 PM (IST)
राजस्थान में आर्थिक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण की राह खुली
राजस्थान में आर्थिक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण की राह खुली

जयपुर, मनीष गोधा। संसद में हुए 124वें संविधान संशोधन के बाद राजस्थान में आर्थिक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण मिलने की राह खुल गई है। राजस्थान न सिर्फ तीन वर्ष पहले इसके लिए विधेयक पारित कर चुका है, बल्कि आरक्षण देने के लिए आर्थिक पिछड़ों के परिमाणात्मक आंकड़े भी यहां तैयार हैं। ऐसे में राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है, जहां इस आरक्षण को लागू करने के लिए जरूरी सभी शर्ते पूरी हैं।

मौजूदा सरकार ने भी इसे लागू करने के लिए सकारात्मक संकेत दिए हैं।राजस्थान आर्थिक रूप से पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए दो बार बिल पारित कर चुका है और दोनों बार यह इसीलिए अटका कि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं थी और सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण पर रोक लगा रखी थी।

राजस्थान में आर्थिक पिछड़ों को आरक्षण देने की चर्चा सबसे पहले 2003 के विधानसभा चुनाव से पहले शुरू हुई थी जब तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने कार्यकाल के दौरान केंद्र सरकार को पत्र लिखकर आर्थिक रूप से पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग उठाई थी। इसके बाद 2003 के चुनाव में भाजपा सत्ता में आई और गुर्जर आरक्षण विवाद को शांत करने के लिए इस सरकार ने आरक्षण का पूरा एक नया बिल पारित किया। इस बिल में अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के 49 प्रतिशत आरक्षण को बरकरार रखते हुए गुर्जर व अन्य बेहद पिछड़ी जातियों के लिए पांच प्रतिशत तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।

इस प्रकार राजस्थान में कुल 59 प्रतिशत आरक्षण हो गया था। चूंकि यह आरक्षण 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर रहा था, इसलिए हाई कोर्ट ने इस बिल को रद्द कर दिया और मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इसके बाद राजस्थान की पिछली भाजपा सरकार ने 2015 में आर्थिक पिछड़ों को 14 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए फिर से बिल पारित किया। इसके साथ ही आर्थिक पिछड़ा वर्ग आयोग भी गठित किया, जिसने एक सर्वेक्षण के आधार पर राजस्थान में आर्थिक पिछड़ों का क्वांटिफेबल डेटा तैयार किया।

इसकी रिपोर्ट राजस्थान सरकार को मिल चुकी है। चूंकि आर्थिक आधार पर आरक्षण का संवैधानिक प्रावधान नहीं था, इसलिए इस बिल को लागू करने की अधिसूचना जारी नहीं की गई थी। अब यह रुकावट हट गई है।सरकार चाहे तो तुरंत लागू कर सकती हैआर्थिक पिछड़ा वर्ग आयोग के उपसचिव रहे दीप प्रकाश माथुर का कहना है कि राजस्थान अकेला ऐसा राज्य है जहां बिल भी पारित है और डेटा भी तैयार है, इसलिए सरकार चाहे तो यहां इसे तुरंत लागू कर सकती है।

वहीं भाजपा के पहले कार्यकाल में विधि मंत्री के रूप में आरक्षण का बिल तैयार करने वाले वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी कहते है संविधान संशोधन के जरिए अब आर्थिक आधार पर आरक्षण देने में कोई अड़चन नहीं है। वहीं राजस्थान हाई कोर्ट के अधिवक्ता अभिनव शर्मा कहते हैं कि संविधान संशोधन के जरिये केंद्र सरकार ने सामाजिक और शैक्षणिक के साथ आर्थिक पिछड़ों का भी एक वर्ग तय कर दिया है, उसमें प्रतिशत की सीमा नहीं है।

राज्य सरकार अपने यहां की आबादी के अनुसार आरक्षण की सीमा तय कर सकती है। हम तो चाहते ही हैं 14 प्रतिशत होइस आरक्षण के लिए राज्य सरकार की ओर से भी सकारात्मक संकेत मिले हैं। सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री भंवरलाल मेघवाल का कहना है कि हम तो चाहते हैं कि 14 प्रतिशत आरक्षण मिले। हमारे मुख्यमंत्री ने ही इस बारे में पहल की थी। 

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