क्या मिल पाएगा मालेरकोटला को पूरा अधिकार?

विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही बेशक ईद के मौके पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह ने मालेरकोटला को जिला बनाने का एलान कर दिया। लेकिन सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार मालेरकोटला को वो अधिकार दे पाएगी जिसका एक जिला हकदार होता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 15 May 2021 06:43 AM (IST) Updated:Sat, 15 May 2021 06:43 AM (IST)
क्या मिल पाएगा मालेरकोटला को पूरा अधिकार?
क्या मिल पाएगा मालेरकोटला को पूरा अधिकार?

सचिन धनजस, संगरूर

विधानसभा चुनावों की आहट के साथ ही बेशक ईद के मौके पर मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह ने मालेरकोटला को जिला बनाने का एलान कर दिया। लेकिन सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार मालेरकोटला को वो अधिकार दे पाएगी, जिसका एक जिला हकदार होता है। हालांकि, यह सवाल इसलिए उठा है क्योंकि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 2006 में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदर सिंह ने ही बरनाला जिले की घोषणा की थी, लेकिन अभी तक आम जनता को अपने काम करवाने के लिए जिला संगरूर के चक्कर काटने पड़ते हैं। मसलन, सरकार ने चुनावों दौरान मुस्लिम भाईचारे से किए वादे को चुनावों से ठीक पहले पूरा करके वोटरों को लुभाने की कोशिश की है।

गौर हो कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र माने जाते मालेरकोटला को 2002 से विधानसभा चुनावों से ही जिला बनाने की मांग उठती रही है, लेकिन कभी बरनाला, तो कभी लहरागागा को जिला बनाने की मांग उठते ही मालेरकोटला की मांग ठंडी पड़ जाती थी। 2006 में बरनाला से कांग्रेसी नेता व कैप्टन अमरिदर सिंह के करीबी केवल सिंह ढिल्लों मुख्यमंत्री से बरनाला को जिला बनाने की घोषणा करवाकर विधानसभा में पहुंचे। हालांकि, बाद में लहरागागा को जिला बनाने की मांग भी उठने लगी थी, लेकिन इस बार बाजी मालेरकोटला का प्रतिनिधित्व कर रही कैबिनेट मंत्री रजिया सुल्ताना व उनके पूर्व डीजीपी पति मोहम्मद मुस्तफा मार गए।

सिर्फ डीसी नहीं, पूरा अमला चाहिए होगा

मुख्यमंत्री ने जिला बनाने की घोषणा के साथ ही मालेरकोटला में अलग से डीसी नियुक्त करने की बात कही है, लेकिन आर्थिक तंगी का रोना रो रही सरकार अपनी उक्त घोषणा को कैसे पूरा करेगी यह देखने वाला होगा। चर्चाएं तो यह भी होने लगी है कि यह महज एक चुनावी स्टंट है। जिला बनने के साथ ही डिप्टी कमिश्नर समेत हर विभाग का कामकाज मालेरकोटला से होने लगेगा और ऐसे में कर्मचारियों की कमी झेल रही सरकार इसे कैसे पूरा कर पाएगी। बरनाला के पास नहीं है अभी पूरी सुविधा

अगर 2006 में जिला घोषित हुए बरनाला की बात करें, तो जिले का संपूर्ण दर्ज तो बरनाला को नहीं मिल पाया है। कोई छोटे-छोटे कामों के लिए बरनाला की जनता को संगरूर के चक्कर काटने पडते हैं। आरटीओ आफिसर, भाषा विभाग समेत कई ऐसे विभाग है, जो पिछले 18 सालों से संगरूर से ही चल रहे हैं और आम जनता को भारी परेशानियों का समाना करना पड़ रहा है। बरनाला जिले के हालातों का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पिछले 18 सालों में सरकारें बरनाला के सरकारी मुलाजिमों के लिए सरकारी रिहायश का इंतजाम कर नहीं कर पाई है।

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