धार्मिक किताबें सिखाती हैं नारी का सम्मान करना : जस्टिस तलवंत सिंह

नवांशहर केसी ग्रुप आफ इ्स्टीटयूशन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में केसी ग्रुप के चेयरमैन प्रेम पाल गांधी की देखरेख में राष्ट्र स्तरीय का वेबिनार आयोजित किया गया। इसमें प्रमुख वक्ता दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस तलवंत सिंह रहे। उनके साथ सुप्रीम कोर्ट की साइबर वकील डा. कर्निका सेठ (रिसोर्सपर्सन) जींद की सीआरएस यूनिवर्सिटी की सहायक प्रोफेसर डा. ज्योति शैरोइन (रिसोर्सपर्सन) चंडीगढ़ के पीयू के आइईटीवीई की सहायक प्रोफेसर डा. रेखा रानी (रिसोर्सपर्सन) व आइपीएस इलमा अफरोज ने अपने विचार रखे।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 09 Mar 2021 09:30 PM (IST) Updated:Tue, 09 Mar 2021 09:30 PM (IST)
धार्मिक किताबें सिखाती हैं नारी का सम्मान करना : जस्टिस तलवंत सिंह
धार्मिक किताबें सिखाती हैं नारी का सम्मान करना : जस्टिस तलवंत सिंह

जागरण संवाददाता, नवांशहर

केसी ग्रुप आफ इ्स्टीटयूशन में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में केसी ग्रुप के चेयरमैन प्रेम पाल गांधी की देखरेख में राष्ट्र स्तरीय का वेबिनार आयोजित किया गया। इसमें प्रमुख वक्ता दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस तलवंत सिंह रहे। उनके साथ सुप्रीम कोर्ट की साइबर वकील डा. कर्निका सेठ (रिसोर्सपर्सन), जींद की सीआरएस यूनिवर्सिटी की सहायक प्रोफेसर डा. ज्योति शैरोइन (रिसोर्सपर्सन), चंडीगढ़ के पीयू के आइईटीवीई की सहायक प्रोफेसर डा. रेखा रानी (रिसोर्सपर्सन) व आइपीएस इलमा अफरोज ने अपने विचार रखे।

इस अवसर पर जस्टिस तलवंत सिंह ने कहा कि हमारे जितने भी ग्रंथ व धार्मिक किताबें है, सब हमें नारियों का सम्मान ही सिखाते हैं। डा. कर्निका सेठ ने बताया कि आज के युग में महिलाओं पर पुरुषों की नजर ज्यादा रहती है, इस कारण इंटरनेट मीडिया के माध्यम से अपराध होने की संभावना रहती है। महिलाओं को चाहिए कि वे समय-समय पर फेसबुक, ई-मेल आइडी, एटीएम आदि का पासवर्ड बदलती रहें।

डा. ज्योति शैरोइन, डा. रेखा रानी व इलमा अफरोज ने बताया कि देश की आधी आबादी महिलाओं की है और विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार अगर महिला श्रम में योगदान दे, तो भारत की विकास दर दहाई की संख्या में होगी। सिर्फ कुछ लोग महिला रोजगार के बारे में बात करते हैं, जबकि अधिकतर लोगों को युवाओं के बेरोजगार होने की ज्यादा चिता है। महिलाओं का श्रम जनसंख्या में योगदान तेजी से कम हुआ है। यह चिता का विषय है। फिर भी महिला रोजगार को अलग श्रेणी में नहीं रखा गया। जब रोजगार की कमी है, तो महिलाओं के लिए पुरुषों के समान कार्य अवसरों की उम्मीद कैसे की जा सकती है। नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में जनसंख्या के अनुपात के अनुसार महिला रोजगार ज्यादा है। इन क्षेत्रों के पुरुष काम करने के लिए भारत आते हैं और उनके पीछे महिलाएं अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए खेतों में काम करती है। महिलाएं शिक्षा के क्षेत्र में पुरुषों से काफी आगे हैं।

अंत में प्रोफेसर डा. अरविद सिघी ने बताया कि हमें नारियों के प्रति सोच बदलनी चाहिए, तभी हालात बदलेंगे। कैंपस डायरेक्टर डा. प्रवीन कुमार जंजुआ ने बताया कि समाज में स्त्री की भूमिका सदा महत्वपूर्ण रही है, लेकिन इसका मान उसे नहीं मिला। समाज ने जैसी सोच स्त्री की बना दी है, वही जड़ सोच स्थिति अभी तक इसे बदल नहीं पाई है।

प्रोग्राम आर्गनाइजर डीन अकादमिक डा. बलजीत कौर, प्रिसिपल डा. कुलजिदर कौर, डीन रिसर्च डा. शबनम, साक्षी मक्कड़, मनीशा रानी, मोनिका धम्म ने भी अपने विचार रखे। इस मौके पर नवजोत सिंह, इंजीनियर आरके मूम, प्रोफेसर कपिल कनवर, शैफ विकास कुमार, इंजीनियर सरुप पौंडवाल, इंजीनियर देव इंद्र शमर, पीआरओ विपन कुमार भी उपस्थित थे।

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