हलवाइयों के पास खपत नहीं, घरों व फैक्ट्रियों में दे रहे पशुपालक दूध

मोगा कोरोना वायरस से बचाव के मद्देनजर जारी लॉकडाउन की वजह से पशुपालकों व डेयरी संचालकों के सामने घोर संकट खड़ा हो गया था कि इसकी खपत कैसे करें। क्योंकि लॉकडाउन के मद्देनजर दुकानें बंद थीं और दूध तब भी जरूरी वस्तुओं की सूची में सबसे ऊपर था। मगर इसका उत्पादन करने वालों के सामने तब समस्या खड़ी हो गई जब दूध की खपत हलवाइयों के पास नहीं हो रही थी।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 11 Jul 2020 10:30 PM (IST) Updated:Sat, 11 Jul 2020 10:30 PM (IST)
हलवाइयों के पास खपत नहीं, घरों व फैक्ट्रियों में दे रहे पशुपालक दूध
हलवाइयों के पास खपत नहीं, घरों व फैक्ट्रियों में दे रहे पशुपालक दूध

राज कुमार राजू, मोगा

कोरोना वायरस से बचाव के मद्देनजर जारी लॉकडाउन की वजह से पशुपालकों व डेयरी संचालकों के सामने घोर संकट खड़ा हो गया था कि इसकी खपत कैसे करें। क्योंकि लॉकडाउन के मद्देनजर दुकानें बंद थीं और दूध तब भी जरूरी वस्तुओं की सूची में सबसे ऊपर था। मगर, इसका उत्पादन करने वालों के सामने तब समस्या खड़ी हो गई जब दूध की खपत हलवाइयों के पास नहीं हो रही थी। ऐसे में बिक्री न होने पर उन्हें परिवार पालने की समस्या से भी जूझना पड़ा। इतना ही नहीं उन्होंने दाम कम करके दूध को बेचने का कार्य भी किया था। इतना सबकुछ होने के बावजूद लॉकडाउन 1 व 2 की शुरूआत होने के बाद भी उनका कारोबार बेहद प्रभावित है। जिसका मुख्य कारण हलवाइयों द्वारा दूध के मिष्ठान न बिकने को लेकर दूध न खरीदना मुख्य है। ऐसे में डेयरी संचालकों को अपना दूध कम कीमत पर दूध एकत्रित करने वाली फैक्टियों को बेचने पर भी विवश होना पड़ रहा है। वहीं कुछ ने घरों पर ही दूध से अन्य चीजें बनाकर दूध उत्पादन बरकरार रखा।

दूध उत्पादक किसान हरिदर सिंह ने बताया कि कोरोना संक्रमण के दिनों में दूध की मांग कम होने को लेकर उन्होंने जहां कम दाम पर दूध को बेचकर पशुओं के लिए खर्चो को पूरा करने का प्रयास किया। वही मुफ्त में भी दूध न लेने को देखते हुए उन्होंने घी का उत्पादन बढ़ाने की पहल की। मगर, दही से घी बनाने की प्रक्रिया काफी कठिन और महंगी थी। जिससे पूरा करना कठिन था। कुल मिलाकर कोरोना संक्रमण से उनका कारोबार बहुत प्रभावित हुआ है।

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दो क्विंटल दूध लगता है

हलवाई एसोसिएशन के प्रधान बलवंत राय शर्मा ने कहा कि कोरोना वायरस से पहले उनके पास रोजाना लगभग 5 से 7 क्विंटल दूध की खपत होती थी। संक्रमण के दौरान उनका कारोबार बहुत हद तक प्रभावित हुआ है। उन्होंने बताया कि संक्रमण से पहले पूरे दिन में शहर में हलवाइयों के पास 50 से 60 क्विंटल दूध की खपत होती थी। लेकिन आज खपत न के बराबर होने के कारण दूध उत्पादक परेशानी के आलम से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा कि भले ही दूध उत्पादकों का दूध कम रेट पर एक बड़ी फैक्ट्री द्वारा लिया जा रहा है, लेकिन फिर भी किसानों के खर्चे पूरे नहीं हो रहे हैं।

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पांच किलो पनीर की भी खप रहा

बलवंत राय शर्मा ने कहा कि कोरोना वायरस से पहले प्रत्येक रविवार को उनके स्टोर पर लगभग 50 किलो पनीर उपलब्ध रहता था, लेकिन अब संक्रमण को देखते हुए पांच किलो पनीर भी नहीं लग रहा है। लोग आज भी संक्रमण से डरे हुए हैं वहीं बाजार का खाना खाने में तवज्जो नहीं दे रहे हैं।

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करीब 25 प्रतिशत रहा कारोबार

बिगबैन के एमडी एडवोकेट राजेश सूद ने बताया कि कोरोना वायरस से पहले उनका कारोबार बहुत अच्छा था। मगर, संक्रमण के बाद उनका कारोबार अब करीब 25 प्रतिशत रह गया है। इन दिनों यहां लोग समागम नहीं कर रहे हैं, वहीं बाजार का खाना खाने में परहेज कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि आज उनकी दुकानों पर बहुत से मिष्ठान उपलब्ध नहीं है, जिसका मुख्य कारण ग्राहक की कमी व दूध की खपत न होना है।

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बाजार में है भरपूर दूध

बलवंत राय ने कहा कि पूरे जिले में दूध का उत्पादन भरपूर मात्रा में होता है। हर किसान व दुकानदार का प्रयास है कि शुद्ध दूध से बने खाद्य पदार्थ ही बेचे जाएं। मगर, दूध की खपत कम होने को लेकर आज किसानों की ओर से अपने आसपास ही दूध बेचकर काम चलाने का प्रयास किया जा रहा है, ताकि पशुओं के रखरखाव में परेशानी न आए।

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