पंजाबी गीत सुन थकान मिटाता है कालेज समय का 'बुलेट वाला बिदास' मुंडा

मोगा अपने पहले ही चुनाव में दिग्गजों को पछाड़कर विधानसभा में पहुंचने वाले डा. हरजोत कमल का सपना कभी राजनीति में करियर बनाने का नहीं था। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान अक्सर लोगों की टिप्पणी सुनते थे कि राजनीति बहुत गंदी है यहां किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। तब मन में एक बात जरूर आती थी कि राजनीति में अगर अछे लोग आएं तो लोगों की इस धारणा को दूर किया जा सकता है। साफ-सुथरी विकास की सोच व कुछ कर दिखाने के जज्बे ने ही डा. हरजोत को आयुर्वेदिक चिकित्सक से राजनीति में लाकर खड़ा कर दिया। कालेज के समय तक बिदास जीवन जीने वाले डा. हरजोत की बुलेट शहर की सड़कों को नापती अक्सर दिख जाती थी।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 24 Apr 2021 10:28 PM (IST) Updated:Sun, 25 Apr 2021 06:40 PM (IST)
पंजाबी गीत सुन थकान मिटाता है कालेज समय का 'बुलेट वाला बिदास' मुंडा
पंजाबी गीत सुन थकान मिटाता है कालेज समय का 'बुलेट वाला बिदास' मुंडा

सत्येन ओझा, मोगा

अपने पहले ही चुनाव में दिग्गजों को पछाड़कर विधानसभा में पहुंचने वाले डा. हरजोत कमल का सपना कभी राजनीति में करियर बनाने का नहीं था। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान अक्सर लोगों की टिप्पणी सुनते थे कि राजनीति बहुत गंदी है, यहां किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। तब मन में एक बात जरूर आती थी कि राजनीति में अगर अच्छे लोग आएं, तो लोगों की इस धारणा को दूर किया जा सकता है। साफ-सुथरी विकास की सोच व कुछ कर दिखाने के जज्बे ने ही डा. हरजोत को आयुर्वेदिक चिकित्सक से राजनीति में लाकर खड़ा कर दिया। कालेज के समय तक बिदास जीवन जीने वाले डा. हरजोत की बुलेट शहर की सड़कों को नापती अक्सर दिख जाती थी। यही वजह थी कि उस समय उनकी पहचान 'बुलेट वाले मुंडे' की बन गई थी।

कालेज के समय के उस बिंदास लड़के के सियासत में आने के बाद अब वह बुलेट वाले मुंडे की छवि कहीं धूमिल हो चुकी है। मगर, दिनभर की भागदौड़, जन संपर्क के बाद देर रात को थककर जब घर लौटते हैं, तो पंजाबी गीत सुनते हैं। अच्छी पुस्तकें पढ़ते हैं।

विधायक डा. हरजोत कमल बताते हैं कि यही वो फुरसत के पल होते हैं। भले ही ये पल हर दिन 20-25 मिनट आते हैं, लेकिन ताजगी दे जाते हैं। बाद में पत्नी डा. राजिदर कौर के साथ डिनर लेते हैं और दिन भर के कामकाज पर चर्चा यहीं पर होती है।

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राजनीति के प्रति सोच बदलने का है प्रयास

डा. हरजोत जिस सोच के साथ राजनीति में आए थे, उसे बदल पाने में कितने सफल हुए यह तो नहीं कहा जा सकता है। इतना जरूर है कि उन्होंने राजनेता के रूप में यह छवि जरूर बनाई है कि वह जिसके साथ जो वादा करते हैं, उसे निभाते हैं। डा. हरजोत के काम की इसी शैली ने रामपाल धवन जैसे सामान्य से कार्यकर्ता को तमाम विरोधों के बावजूद मंडी बोर्ड के चेयरमैन जैसे पद पर पहुंचाकर उन्हें सम्मान दिया। रामपाल धवन भी जिदगी की अंतिम सांस तक डा. हरजोत के लिए लक्ष्मण बनकर साथ निभाते रहे। भले ही रामपाल धवन अब दुनिया में नहीं हैं, लेकिन स्थानीय राजनीति में राम-लक्ष्मण की यह जोड़ी सियासत में भरोसे की मिसाल बन गई।

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मूल रूप से टांडा के हैं निवासी

मूल रूप से टांडा के निवासी डा. हरजोत मोगा मेडिकल (बीएएमएस) की पढ़ाई करने आए थे, बाद में यहीं के बनकर रह गए। सियासी कामकाज के चलते रात को कितनी भी देर से सोएं, लेकिन सुबह साढ़े पांच बजे के आसपास उठ जाते हैं। वह पत्नी के साथ सुबह की चाय लेते हैं, बेटा हमरीत चंडीगढ़ में रहकर यूपीएससी की तैयारी कर रहा है। जब वह होता है, तो 'मार्निग टी टाक' में वह भी शामिल होता है। सुबह की चाय की चुस्कियों के बीच ही डा. कमल पूरे दिन के कार्यक्रमों पर पत्नी के साथ चर्चा करते हैं। कम ही लोगों को पता है कि चुनाव भले ही लोकसभा के हों, विधानसभा के या फिर निगम के। शहरी विधानसभा क्षेत्र में विधायक के रूप में भूमिका क्या रहेगी, उनकी सियासत के प्रबंधन का पूरा काम उनकी पत्नी ही देखती हैं। वही फील्ड में काम करने वाली टीम को दिशा देती हैं, मानीटरिग करती हैं। यही वजह है कि डा. हरजोत पूरा समय विधानसभा क्षेत्र के लोगों को को दे पाते हैं।

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हर दूसरे दिन मां से बात जरूर करते हैं

मां जोगिदर कौर आज भी छोटे बेटे के साथ टांडा में ही रहती हैं। डा. हरजोत कोशिश करते हैं हर दूसरे दिन मां से एक बार बात जरूर कर लें। बस फैमिली लाइफ इन्हीं चंद पलों में सिमट गई है। दिन के बाकी 13-14 घंटे सियासत में गुजरते हैं।

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